ड्राइवर की लापरवाही बता इंश्योरेंस के पैसे देने से मना नहीं कर सकती बीमा कंपनियां, उत्तराखंड HC की दो टूक
बीमा कंपनियां कई बार ड्राइवर की लापरवाही साबित कर इंश्योरेंस यानि मुआवजे के पैसे देने से मना कर देती थी. इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है, जिसने इंश्योरेंस के पैसे तो दिए लेकिन जरूररत पड़ने पर उन्हें इस इंश्योरेंस का लाभ नहीं मिला. अब सड़क दुर्घटना मामले में इंश्योरेंस के पैसे देने से इंकार करने वाली इन बीमा कंपनियों को उत्तराखंड हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. उत्तराखंड हाई कोर्ट के जस्टिस आलोक माहरा ने बीमा कंपनी की अपील को खारिज करते हुए कहा कि सड़क दुर्घटना के मामले में केवल दुर्घटना साबित करना ही पर्याप्त है और इसमें चालक की लापरवाही साबित करना जरूरी नहीं है. सड़क दुर्घटना साबित किए जाने को ही पर्याप्त बताते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बीमा कंपनी को दुर्घटना के शिकार व्यक्ति के परिवार को मुआवजा दिए जाने के मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के आदेश को बरकरार रखा है.
इस मामले में हरप्रीत सिंह उर्फ हैपी अपने दोस्त गौरव को मोटरसाईकिल पर पीछे बैठाकर 13 जून 2016 को कालाढूंगी में कहीं जा रहा था कि तभी सामने से आयी एक कार ने उनके वाहन को चपेट में ले लिया, जिससे दोनों घायल हो गए। बाद में इलाज के दौरान हरप्रीत ने दम तोड़ दिया. हरप्रीत की मां राजिंदर कौर ने नैनीताल में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (एमएसीटी) में मुआवजा याचिका दायर की. ट्रिब्यूनल ने 29 जुलाई 2019 को परिवार को 5.74 लाख रुपये का मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया।
लेकिन, न्यू इंडिया एंश्योरेंस’ नाम की बीमा कंपनी ने इस आदेश को चुनौती देते हुए दलील दी कि इस मामले में प्राथमिकी दुर्घटना होने के 21 दिन बाद दर्ज की गयी. बीमा कंपनी ने यह भी कहा कि चालक के पास जरूरी दस्तावेज नहीं थे और पुलिस ने मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी थी जिसे मजिस्ट्रेट ने भी स्वीकार कर लिया था. हालांकि, पीड़ित के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला दिया और कहा कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 163 ए के तहत लापरवाही को साबित किया जाना जरूरी नहीं है. इस दलील को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने अधिकरण के आदेश को बरकरार रखा और बीमा कंपनी की अपील को खारिज कर दिया.
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