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राज्य सरकार एक ही समुदाय को Reservation के लिए दो अलग ग्रुप में नहीं रख सकते: Karnataka HC

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कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि राज्य द्वारा शिक्षा और रोजगार दोनों के लिए एक ही समुदाय को दो अलग-अलग आरक्षण श्रेणियों में नहीं रखा जा सकता.

Written By Satyam Kumar | Updated : April 22, 2025 4:02 PM IST

आज कर्नाटक हाई कोर्ट (karnataka High Court) ने शिक्षा और रोजगार के लिए एक ही समुदाय को दो अलग-अलग आरक्षण केटेगरी में रखने के कर्नाटक राज्य के फैसले को असंवैधानिक करार दिया. हाई कोर्ट ने पाया कि राज्य का मौजूदा वर्गीकरण, जो बालाजीगा/बनजिगा समुदाय को शिक्षा के लिए समूह 'बी' और रोजगार के लिए समूह 'डी' में रखता है. फैसले को भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक बताते हुए जस्टिस सूरज गोविंदराज ने राज्य सरकार को शिक्षा और रोजगार दोनों के लिए बालाजीगा/बनजिगा समुदाय को समान रूप से समूह 'बी' (Group B) में वर्गीकृत करने का निर्देश दिया. बता दें कि कर्नाटक हाई कोर्ट ने बालाजीगा/बनजिगा समुदाय के वर्गीकरण को चुनौती देने वाली सुमित्रा की याचिका पर यह फैसला सुनाया है. इसके साथ ही अदालत ने सुमित्रा को समूह 'बी' आरक्षण के तहत प्राथमिक स्कूल शिक्षिका के रूप में उनकी नौकरी को बरकरार रखा.

कर्नाटक हाई कोर्ट का अहम फैसला

जस्टिस सूरज गोविंदराज ने कहा कि कर्नाटक सरकार को निर्देश देते हुए कि बलाजीगा/बनाजीगा समुदाय को शिक्षा और रोजगार दोनों के लिए समान रूप से समूह 'बी' के तहत वर्गीकृत किया जाए. फैसले में अदालत ने यह भी कहा कि राज्य की मौजूदा वर्गीकरण व्यवस्था, जिसमें समुदाय को शिक्षा के लिए समूह 'बी' (अनुच्छेद 15(4) के तहत) और रोजगार के लिए समूह 'डी' (अनुच्छेद 16(4) के तहत) में रखा गया है, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है.

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क्या है मामला?

याचिकाकर्ता सुमित्रा, साल 1993 में ओबीसी कोटा के तहत प्राथमिक विद्यालय शिक्षक के रूप में नियुक्त की गई थी. ओबीसी कोटा का लाभ लेने के लिए उन्होंने दावा किया कि उनकी जाति रिजर्वेशन समूह 'बी' में आती है, लेकिन 1996 में उन्हें विभाग की ओर से एक नोटिस मिला जिसमें कहा गया कि उनकी समुदाय को रोजगार के लिए समूह 'डी' में वर्गीकृत किया गया है, जिससे उनका जाति प्रमाण पत्र नौकरी से संबंधित आरक्षण के लिए अमान्य हो गया. सुमित्रा ने विभागीय अपीलों और कर्नाटक प्रशासनिक अदालत के माध्यम से कई बार अपने अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की, लेकिन सभी प्रयास विफल रहे. अंततः उन्होंने 1986 के एक सरकारी अधिसूचना को खोज निकाला, जो इस दोहरी वर्गीकरण को दर्शाती थी. उन्होंने तर्क किया कि अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के पीछे का संविधानिक उद्देश्य समान है और यह समान रूप से वंचित समूहों के लिए सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए है.

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जस्टिस गोविंदराज ने उनके तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत के तहत आरक्षण के मामले में समान व्यवहार भी शामिल है. उन्होंने यह भी कहा कि एक ही समुदाय को संदर्भ के आधार पर विभिन्न समूहों में नहीं रखा जा सकता है, इस तरह का विभाजन स्वाभाविक रूप से भेदभावपूर्ण है. जस्टिस ने कहा कि यदि किसी समुदाय को शिक्षा के लिए पिछड़ा माना जाता है, तो रोजगार के मामले में इसे भिन्न तरीके से नहीं माना जा सकता. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इस दोहरी वर्गीकरण को शून्य घोषित करते हुए उस आदेश को रद्द कर दिया जो सुमित्रा के रोजगार में समूह 'बी' आरक्षण के दावे को अस्वीकार करते थे. अदालत ने राज्य को निर्देश दिया कि वह सुमित्रा की प्राथमिक विद्यालय शिक्षक के रूप में नियुक्ति को जारी रखे क्योंकि वह समूह 'बी' के तहत पात्र हैं.

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