Rape का आरोप लगाने वाली महिला को Live-In पार्टनर से गुजारा भत्ता पाने का हक नहीं! जानें जम्मू एंड कश्मीर HC ने क्यों सुनाया ये फैसला
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महिला को उसके लिव-इन पार्टनर से गुजारा-भत्ता दिलाने की मांग को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि दोनों की आपस में शादी नहीं हुई थी, यानि वे कानूनी रूप से पति-पत्नी नहीं है. हालांकि, अदालत पहले लिव-इन के मामलों में गुजारा भत्ता देने का फैसला सुनाती थी. लेकिन इस मामले में महिला ने अपने लिव-इन पार्टनर के खिलाफ रेप (Rape) का मुकदमा दर्ज करवाया था, जिसमें उसे सजा मिली थी.
अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने प्रधान सत्र न्यायाधीश, कठुआ के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें ट्रायल मजिस्ट्रेट द्वारा महिला याचिकाकर्ता को अंतरिम भरण-पोषण (इंटरिम मेंटेनेंस) देने के आदेश को रद्द कर दिया गया था. याचिकाकर्ता महिला प्रतिवादी के साथ लिव-इन रिलेशनशिप (Live In Relationship) में थी. महिला की शिकायत पर प्रतिवादी को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था.
जस्टिस विनोद चट्टर्जी कौल की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की लिव-इन पार्टनर से कानूनी रूप से शादी नहीं हुई थी, इसलिए वह दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती. अदालत ने यह भी कहा कि ट्रायल मजिस्ट्रेट ने प्रतिवादी के बलात्कार के दोषसिद्ध होने के बावजूद याचिकाकर्ता को अंतरिम भरण-पोषण देने में गलती की थी.
Also Read
- पुरुषों के चेहरे पर खिल जाएगी मुस्कान, जब अपनी मर्जी से अलग रह रही पत्नी को नहीं देना पड़ेगा गुजारा-भत्ता, जान लें इलाहाबाद हाई कोर्ट ये फैसला
- Divorce के बाद भी महिला का लिविंग स्टैंडर्ड ससुराल जैसा बनाए रखना पति की जिम्मेदारी, एलिमनी की राशि बढ़ाते हुए Supreme Court ने कहा
- उत्तराखंड सरकार की UCC पोर्टल Live, मैरिज, लिव-इन और तलाक के रजिस्ट्रेशन करने के लिए फॉलो करें ये सिंपल स्टेप्स
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता महिला ने दावा किया कि वह प्रतिवादी के साथ दस साल तक रही, उनके एक बच्चा भी हुआ और प्रतिवादी ने उससे शादी करने का वादा किया था जो कभी पूरा नहीं हुआ. इसलिए, उसने कहा कि वह भरण-पोषण पाने की हकदार है क्योंकि वे पति-पत्नी की तरह साथ रहते थे.
इस हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत पर ही प्रतिवादी को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था. ऐसे में भरण-पोषण का दावा करने के लिए दोनों को पति-पत्नी नहीं माना जा सकता. अदालत ने स्पष्ट किया कि धारा 125 Cr.P.C. के तहत भरण-पोषण का अधिकार उसी रिश्ते में लागू होता है जिसे कानूनी तौर पर मान्यता मिली हो और यह उस स्थिति में लागू नहीं हो सकता जहां उसी रिश्ते के संदर्भ में यौन शोषण का अपराध सिद्ध हो चुका हो. हाई कोर्ट ने महिला की याचिका खारिज कर दी.