लैंडलॉर्ड-टेनेंट का विवाद सिविल नेचर का, पुलिस इसमें पुलिस नहीं कर सकती हस्तक्षेप, जानें जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने क्यों कहा ऐसा
पुलिस केवल अपराधिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है, जबकि लैंडलॉर्ड और किरायेदार के बीच का विवाद सिविल नेचर का है. ये बातें जम्मू एंड कश्मीर हाई कोर्ट ने तब कहीं, जब एक जमींदार ने अदालत के सामने दावा किया कि उसके किरायेदारों, जिन्होंने जमीन पर कब्जा कर लिया है, को हटाने में पुलिस मदद नहीं कर रही है. जमीन मालिक ने यह भी कहा कि उसके पैतृक जमीन पर 13 दुकानें बनी है, जिसमें से 6 उसके पास है, बाकी पर किरायेदारों ने कब्जा जमा लिया है. जमींदार ने दावा किया कि ये मकानें बेहद जर्जर स्थिति में है और कभी-कभी गिर सकती है, इसलिए बनवाने की जरूरत है, लेकिन किरायेदारों ने जमीन खाली करने से इंकार किया है. हालांकि, जम्मू एंड कश्मीर हाई कोर्ट ने उसे राहत देने से इंकार करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी. आइये जानते हैं कि सुनवाई के दौरान क्या-कुछ हुआ...
जम्मू एंड कश्मीर हाई कोर्ट में जस्टिस वसीम सादिक डार ने इस मामले पर सुनवाई की. जस्टिस ने इस मामले में पुलिस के हस्तक्षेप नहीं करने की वजह बताई. उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्यवाही केवल आपराधिक मामलों तक सीमित है. वहीं जमींदार और किरायेदार के बीच होने वाले विवाद सिविल नेचर के होते हैं जिसमें पुलिस हस्तक्षेप नहीं कर सकती. ऐसे मामले को सुलझाने का अधिकार सक्षम अदालतों के पास ही है.
बता दें कि किरायेदारों के घर नहीं खाली करने पर शख्स ने इसकी शिकायत पुलिस के पास दर्ज करवाई थी लेकिन पुलिस की ओर से कोई पर्याप्त कार्रवाई नहीं होता देख उसने जम्मू एंड कश्मीर हाई कोर्ट में याचिका दायर किया. हाई कोर्ट ने पाया कि पुलिस के पास शिकायत जमींदार सुरक्षा एजेंसिया का उपयोग अपना सिद्ध साधने के लिए कर रहा है. वह पुलिस के जरिए दबाव बनाकर जमीन पर अपना अधिपत्य बनाने की कोशिश की है.इसके बाद हाई कोर्ट ने इस याचिका को बिना मेरिट के बताते हुए खारिज किया है.
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