पब्लिक प्लेस से अवैध धार्मिक संरचनाओं को हटाने का मामला, Delhi HC ने सरकार से मांगी कार्रवाई की पूरी जानकारी
दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली की धार्मिक समिति को निर्देश दिया कि वह सार्वजनिक भूमि पर 249 अनधिकृत धार्मिक ढांचों के बारे में भूमि स्वामित्व एजेंसियों से जानकारी एकत्र करें और उन्हें हटाने के लिए की गई कार्रवाई पर एक रिपोर्ट पेश करें. चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि सूचना एकत्र करने के बाद दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) या उनके द्वारा अधिकृत अधिकारी छह सप्ताह के भीतर अदालत में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करें. यह मामला सुप्रीम कोर्ट से भेजा गया है, जो पब्लिक प्लेस से अवैध धार्मिक ढांचों को हटाने से संबंधित था.
127 अवैध संरचानाओं को किया ध्वस्त
सुनवाई के दौरान, दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) के वकील ने कहा कि उसने 127 अवैध धार्मिक ढांचों की पहचान की और उन्हें ध्वस्त कर दिया, जिनमें से कुछ संजय वन और जहांपनाह सिटी फॉरेस्ट में बनाए गए थे. डीडीए ने अदालत को बताया कि 127 संरचनाओं में से 82 की पहचान वन विभाग ने की थी.
पीठ ने कहा कि धार्मिक समिति का नेतृत्व दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव (गृह) करते हैं. तदनुसार, हम निर्देश देते हैं कि धार्मिक समिति उन 249 मामलों की पूरी जानकारी एकत्र करे, जिनकी पहचान अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं को हटाने के लिए की गई है. ये जानकारी उन एजेंसियों से एकत्र की जाए जिनकी भूमि पर ऐसी संरचनाएं मौजूद हैं और उन एजेंसियों से भी जो ऐसी अनधिकृत संरचनाओं को हटाने के लिए जिम्मेदार हैं.
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पब्लिक प्लेस से धार्मिक संरचनाओं को हटाने का मामला
अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि 14 मई को निर्धारित की. धार्मिक समिति ने कहा है कि उसने अब तक 51 बैठकें की हैं और अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं को हटाने के लिए 249 मामलों की सिफारिश की है. अदालत ने कहा कि ये संरचनाएं नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद, डीडीए, दिल्ली छावनी बोर्ड, दिल्ली नगर निगम और रेल मंत्रालय, वन विभाग, लोक निर्माण विभाग और दिल्ली सरकार के कई अन्य विभागों की भूमि पर थीं. अदालत ने कहा कि एजेंसियों ने कार्रवाई धार्मिक समिति के फैसले के अनुसरण में की.
वर्ष 2009 में, शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया था कि सार्वजनिक सड़कों, सार्वजनिक पार्क और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक संरचनाओं के नाम पर कोई अनधिकृत निर्माण नहीं किया जाना चाहिए या इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और राज्य सरकारों को ऐसे मौजूदा ढांचों की समीक्षा करने और उचित कदम उठाने का निर्देश दिया था. वर्ष 2018 में, इसने मामले को उच्च न्यायालयों को भेज दिया था.
(खबर पीटीआई भाषा से है)