Advertisement

बीजेपी विधायक कपिल मिश्रा को दिल्ली हाई कोर्ट से भी राहत नहीं, चुनाव के समय आपत्तिजनक ट्वीट करने के मामले की सुनवाई रहेगी जारी

Delhi HC

दिल्ली हाईकोर्ट ने कपिल मिश्रा की अर्जी पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है और निचली अदालत की कार्यवाही को रद्द करने की उनकी मांग को ठुकरा दिया है.

Written By Satyam Kumar | Published : March 18, 2025 4:32 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट से दिल्ली सरकार में मंत्री कपिल मिश्रा को राहत नहीं मिली है. हाईकोर्ट ने आपत्तिजनक ट्वीट करने के चलते 2020 में दर्ज हुए आचार संहिता उल्लंघन के मामले में उनके खिलाफ निचली अदालत में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. आज हाई कोर्ट ने निचली अदालत में चल रही कार्यवाही को रद्द करने की कपिल मिश्रा की अर्जी पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है. हाई कोर्ट 19 मई को आगे सुनवाई करेगा. सुनवाई के दौरान कपिल मिश्रा की ओर से पेश वकील ने सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की लेकिन हाई कोर्ट ने इससे इंकार करते हुए कहा कि इस स्टेज पर हमे निचली अदालत की कार्यवाही को रोकने की कोई ज़रूरत नहीं लगती. ट्रायल कोर्ट आगे सुनवाई जारी रख सकता है. कपिल मिश्रा ने 2020 में ट्विटर पर दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर दो कथित आपत्तिजनक पोस्ट किए थे, जिसके चलते उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज किया गया था.

राउज एवेन्यू कोर्ट से भी हुई याचिका खारिज

इससे पहले, विशेष न्यायाधीश जितेंद्र सिंह ने 7 मार्च को राऊज एवेन्यू कोर्ट में मिश्रा की याचिका को खारिज करते हुए अदालत के सामने हाजिर होने के समन को रद्द करने से इनकार कर दिया. जज ने मिश्रा के उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि उनके बयानों में पाकिस्तान और शाहीन बाग किसी विशेष धार्मिक समुदाय का संदर्भ नहीं देते हैं. जस्टिस ने कहा कि दुर्भाग्यवश, 'पाकिस्तान' शब्द अक्सर एक विशेष धर्म को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है. उन्होंने कहा कि कपिल मिश्रा के इन कथित बयानों में धार्मिक आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है.

Advertisement

अदालत ने चुनावों के दौरान साम्प्रदायिक भाषण देने की प्रवृत्ति की भी निंदा की. जज ने कहा कि यह एक दुखद संकेत है कि भारत में अभी भी 'बांटों और राज करो' की उपनिवेशी प्रथा का पालन किया जा रहा है. अदालत ने यह भी कहा कि धार्मिक विविधताओं को स्वीकार किया जाता है, लेकिन ऐसे नाजुक माहौल में धार्मिक उत्तेजना को आसानी से भड़काया जा सकता है. यह प्रवृत्ति विभाजन की राजनीति और बहिष्करण की राजनीति का परिणाम है, जो देश के लोकतांत्रिक और बहुलवादी ताने-बाने के लिए खतरा है.

Also Read

More News

कपिल मिश्रा ने बचाव के लिए तर्क किया कि किसी देश के बारे में टिप्पणी करना धारा 125 के तहत अपराध नहीं है. अदालत ने इस तर्क को बेतुका और अवास्तविक बताया. अदालत ने कहा कि इस बयान का निहित संदर्भ एक विशेष धार्मिक समुदाय के लोगों की ओर इशारा करता है, जिससे धार्मिक समुदायों के बीच दुश्मनी उत्पन्न होती है.

Advertisement

जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धारा 125

अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 125 के तहत हुए अपराध गंभीर संज्ञेय अपराध होते हैं, और इसमें पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए मजिस्ट्रेट से पहले से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है. जनप्रतिनिधिनियम की धारा 125 में सजा कम-से-कम तीन साल तक की होती है. कोर्ट ने यह भी बताया कि RP अधिनियम की धारा 125 के तहत अपराध संज्ञानात्मक है, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है. विशेष न्यायाधीश ने उल्लेख किया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले एक मामले में कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के तहत भी तीन साल की सजा वाले अपराध को संज्ञानात्मक माना था. विशेष कोर्ट ने कहा कि RP अधिनियम की धारा 125 भी संज्ञानात्मक अपराध है, क्योंकि इसकी सजा का समय समान है.

राउज एवेन्यू कोर्ट ने कपिल मिश्रा की समन आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण याचिका (Revision Petition) को खारिज कर दिया.