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एक्टिविस्ट मेधा पाटकर को नहीं जाना पड़ेगा जेल, Delhi LG से जुड़े मानहानि मामले में Court से मिली राहत

मेधा पाटकर (IANS)

Delhi Court ने मेधा पाटकर को एक साल के अच्छे आचरण बनाए रखने के प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश दिया है. साथ ही उनके जुर्माने की राशि को दस लाख से घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया.

Written By Satyam Kumar | Published : April 9, 2025 12:32 PM IST

समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा दायर एक दशक पुराने मानहानि के मामले में पांच महीने की साधारण कैद और 10 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई थी. हालांकि, Delhi Court ने मेधा पाटकर को एक साल के अच्छे आचरण बनाए रखने के प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश दिया है. साथ ही उनके जुर्माने की राशि को दस लाख से घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया. अदालत ने पाटकर की उम्र और उनके सामाजिक कार्य के योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्हें परिवीक्षा पर रिहा करने का फैसला किया है.

साल भर का होगा प्रोबेशन पीरियड

साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विशाल सिंह ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को संशोधित किया, जिसमें पाटकर को पांच महीने की साधारण कैद की सजा सुनाई गई थी और उन्हें सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था.

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अदालत ने कहा,

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"अपीलकर्ता को तुरंत सजा नहीं दी गई है और उन्हें अच्छे आचरण की परिवीक्षा पर रिहा करने का लाभ दिया जा रहा है."

फैसले के अनुसार, परिवीक्षा अवधि के दौरान मेधा पाटकर को 25,000 रुपये का प्रोबेशन बॉन्ड जमा करना होगा और हर तीन महीने में जिला परिवीक्षा अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना होगा. अगर इस दौरान वे कोई अपराध करती हैं, तो उन्हें पहले सुनाई गई सजा भुगतनी होगी. जिला परिवीक्षा अधिकारी उनकी गतिविधियों पर नज़र रखेंगे और हर तीन महीने में रिपोर्ट देंगे.

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अदालत ने यह भी कहा कि मेधा पाटकर एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उम्र से संबंधित विभिन्न बीमारियों से ग्रस्त हैं. अदालत ने यह माना कि दूसरों की प्रतिष्ठा के प्रति असंवेदनशीलता और स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग आपराधिक दंड के लायक है.

अदालत ने कहा,

"पाटकर को खुद एक प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के नाते यह समझना चाहिए कि मानहानि से पीड़ित व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सार्वजनिक सम्मान को नुकसान पहुंच सकता है."

अदालत ने यह भी कहा कि अपराधी एक वृद्ध महिला हैं और उनके खिलाफ कोई पूर्व अपराध का आरोप नहीं है. इस आधार पर समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को परिवीक्षा पर रिहा करने का लाभ देने से इनकार करने का कोई कारण नहीं है.

पिछले सप्ताह, ट्रायल कोर्ट ने पाटकर की अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने मानहानि मामले में अपनी सजा को चुनौती दी थी. पिछले वर्ष, 1 जुलाई को, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को पांच महीने की जेल की सजा सुनाई थी और उन्हें सक्सेना को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था.

2001 का मामला

मानहानि का मामला 2001 में शुरू हुआ था जब वीके सक्सेना ने मेधा पाटकर के खिलाफ एक टेलीविजन इंटरव्यू और एक प्रेस बयान में कथित रूप से अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए दो मानहानि के मुकदमे दायर किए थे. उपराज्यपाल वीके सक्सेना उस समय अहमदाबाद स्थित एनजीओ नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज के प्रमुख थे. यह मामला मेधा पाटकर द्वारा 2000 में सक्सेना के खिलाफ दायर एक मुकदमे से जुड़ा हुआ था जिसमें उन्होंने सक्सेना पर उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन के खिलाफ मानहानिकारक विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया था.