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वक्फ संशोधन एक्ट 2025 आज से लागू , केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर बताया, सुप्रीम कोर्ट में कैविएट भी दायर किया

Waqf Amendment Act 2025

आज केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी कर कहा है कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 मंगलवार से लागू होगा. साथ ही केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर मामले में कोई भी आदेश सुनाने से पहले सुनवाई का मौका देने की मांग की है.

Written By Satyam Kumar | Published : April 8, 2025 9:34 PM IST

आज केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी किया है. इस अधिसूचना में केन्द्र सरकार ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025, जिसे पिछले सप्ताह संसद द्वारा पारित किया गया था, मंगलवार से लागू होगा. साथ ही आज केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर मामले में कोई भी आदेश सुनाने से पहले सुनवाई का मौका देने की मांग की है. सूत्रों के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 15 अप्रैल को सुनवाई करेगा. कैविएट कब दाखिल की जाती है?  किसी पक्ष द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की जाती है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसे सुने बिना कोई आदेश पारित न किया जाए.

आज से लागू होगा वक्फ एक्ट 2025

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी स्वीकृति दी, जिसे दोनों सदनों में गरमागरम बहस के बाद संसद ने पारित कर दिया. विधेयक को राज्यसभा में 128 सदस्यों ने पक्ष में और 95 ने विरोध में वोट दिया. इसे लोकसभा ने 288 सदस्यों के समर्थन और 232 के विरोध में पारित किया. आजअल्पसंख्यक मंत्रालय द्वारा जारी की गई अधिसूचना में कहा गया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 (2025 का 14) की धारा 1 की उपधारा (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, केंद्र सरकार 8 अप्रैल, 2025 को उक्त अधिनियम के प्रावधानों के लागू होने की तिथि के रूप में नियुक्त करती है. इस बीच शीर्ष अदालत में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें राजनेताओं और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिकाएं शामिल हैं, जो नए कानून की वैधता को चुनौती देती हैं. इस घटनाक्रम से जुड़े वकीलों ने कहा कि याचिकाएं 15 अप्रैल को एक पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की संभावना है, हालांकि यह अभी तक सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर दिखाई नहीं दे रही है.

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त्वरित सुनवाई की मांग

7 अप्रैल को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने जमीयत उलमा-ए-हिंद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल को याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार करने का आश्वासन दिया. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी और मोहम्मद जावेद, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी, आरजेडी सांसद मनोज झा और फैयाज अहमद, आप विधायक अमानतुल्लाह खान ने भी अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है.

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डीएमके ने अपने उप महासचिव ए राजा के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख किया और एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि व्यापक विरोध के बावजूद, जेपीसी के सदस्यों और अन्य हितधारकों द्वारा उठाई गई आपत्तियों पर उचित विचार किए बिना केंद्र सरकार द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 पारित किया गया. पार्टी ने कहा कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 का तत्काल कार्यान्वयन तमिलनाडु में लगभग 50 लाख मुसलमानों और देश के अन्य हिस्सों में 20 करोड़ मुसलमानों के अधिकारों का उल्लंघन और पूर्वाग्रह करता है.

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AIMPLB ने 6 अप्रैल को शीर्ष अदालत में याचिका दायर की. AIMPLB के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने एक प्रेस बयान में कहा कि याचिका में संसद द्वारा पारित संशोधनों पर कड़ी आपत्ति जताई गई है, क्योंकि ये संशोधन मनमाने, भेदभावपूर्ण और बहिष्कार पर आधारित हैं. इस याचिका में कहा गया है कि संशोधनों ने न केवल भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, बल्कि यह स्पष्ट रूप से सरकार की मंशा को भी उजागर करता है कि वह वक्फ के प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहती है, इसलिए मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने धार्मिक बंदोबस्त के प्रबंधन से वंचित किया जा रहा है. साथ ही ये विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 अंतरात्मा की स्वतंत्रता, धर्म का पालन करने, प्रचार करने और धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन करने का अधिकार सुनिश्चित करते हैं. याचिका का निपटारा अधिवक्ता एम आर शमशाद ने किया, जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता तल्हा अब्दुल रहमान ने अपने महासचिव मौलाना फजलुर रहीम मुजद्दिदी के माध्यम से किया. जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने की एक खतरनाक साजिश है. अपनी याचिका में, जमीयत ने कहा कि यह कानून कि देश के संविधान पर सीधा हमला है, जो न केवल अपने नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करता है, बल्कि उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता भी प्रदान करता है.

संविधान के उल्लंघन होने का दावा

सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपनी अलग याचिका में, केरल में सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और मौलवियों के एक धार्मिक संगठन, समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने दावा किया है कि यह अधिनियम धार्मिक मामलों में अपने मामलों का प्रबंधन करने के धार्मिक संप्रदाय के अधिकारों में स्पष्ट हस्तक्षेप है. जावेद की याचिका में आरोप लगाया गया है कि अधिनियम ने वक्फ संपत्तियों और उनके प्रबंधन पर मनमाने प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता कमजोर हुई है.

अधिवक्ता अनस तनवीर के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि कानून ऐसे प्रतिबंध लगाकर मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है जो अन्य धार्मिक बंदोबस्तों के शासन में मौजूद नहीं हैं. एक अलग याचिका में ओवैसी ने कहा कि विधेयक ने वक्फ से विभिन्न प्रकार की सुरक्षा छीन ली है जो वक्फ और हिंदू, जैन और सिख धार्मिक और धर्मार्थ निधियों को समान रूप से दी जाती है. वक्फ को दी गई सुरक्षा को कम करना जबकि अन्य धर्मों के धार्मिक और धर्मार्थ निधियों के लिए उन्हें बनाए रखना मुसलमानों के खिलाफ शत्रुतापूर्ण भेदभाव है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, जो धर्म के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है.