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रेप पीड़िता का ये अधिकार, इसमें किसी की मनमर्जी नहीं चलेगी.. अर्बाशन से जुड़े मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

Pregnant Woman (AI Image)

अर्बाशन से जुड़े इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भधारण जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, क्योंकि ऐसा करना उसके जीवन के मार्ग को चुनने के अधिकार का हनन करना होगा.

Written By Satyam Kumar | Published : June 21, 2025 11:50 PM IST

हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने अर्बाशन से जुड़े मामले की सुनवाई की. हाई कोर्ट ने कहा कि रेप पीड़िता अपना आगे का जीवन कैसे जीना चाहती है, इसमें माता-पिता या किसी अन्य की दखलअंदाजी नहीं चलेगी. अदालत भी अगर गर्भपात कराने को लेकर रेप पीड़िता की इच्छा के विरूद्ध जाकर अगर कोई फैसला सुनाती है तो यह उसे उसके जीवन का भविष्य तय करने के अधिकार से वंचित करना होगा. आइये जानते हैं पूरा मामला और बॉम्बे हाई कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा...

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न की शिकार किसी लड़की को उसके अनचाहे गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. इस टिप्पणी के साथ न्यायालय ने चिकित्सा विशेषज्ञों की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद 28 सप्ताह की गर्भवती 12 वर्षीय लड़की को गर्भपात की अनुमति दे दी. हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाता है तो अदालत उसे अपने जीवन का मार्ग तय करने के अधिकार से वंचित कर देगी. जांच के बाद एक मेडिकल बोर्ड ने राय दी थी कि लड़की की उम्र और भ्रूण के विकास के चरण को देखते हुए, गर्भपात की प्रक्रिया अत्यधिक जोखिम भरी होगी.

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हालांकि, जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस सचिन देशमुख की पीठ ने 17 जून के अपने आदेश में कहा कि गर्भपात की अनुमति देनी होगी.

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पीठ ने कहा,

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यह अदालत पीड़िता को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भ को जारी रखने के लिए मजबूर नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसी स्थिति में पीड़िता से उसके जीवन के तात्कालिक और लंबे जीवन यापन का मार्ग तय करने के अधिकार को छीना जा रहा है.’’

इस मामले में लड़की का उसके एक करीबी रिश्तेदार ने यौन उत्पीड़न किया था. लड़की के पिता ने यौन उत्पीड़न के परिणामस्वरूप उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया. अदालत ने गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा कि प्रक्रिया के दौरान सभी सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा ताकि कोई जटिलता उत्पन्न न हो.

बता दें कि कानूनन, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) के तहत 20 सप्ताह के बाद गर्भपात निषिद्ध है, जब तक कि न्यायालय इसकी अनुमति न दे.

(खबर भाषा इनपुट के आधार पर लिखी गई है)