हुजूर, बिहार में जमानत याचिकाओं का अंबार लगा है... वकील की आपत्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने जो जबाव दिया, वह सुनकर दिन बन जाएगा
सुप्रीम कोर्ट में एक जमानत याचिका (Bail Plea) से जुड़े मुकदमे की सुनवाई चल रही थी. वकील साहब ने अपना दुखड़ा सुनाते हुए कहा कि हुजूर, बिहार में जमानत के मामलों के निपटारे में भी बहुत समय लगता है, जज साहब मुकदमे को महीने-महीने भर टाल देते हैं. जमानत याचिका की सुनवाई में नौ महीने लग जाते हैं, हुजूर हमें अग्रिम जमानत दे दीजिए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जो जबाव दिया है, वह निश्चय ही आपका दिन बना देगा. साथ ही बिहार के असल हालात पर सोचने को मंजूर करेगा. आइये जानते हैं इस पूरे मामले को विस्तार से...
जमानत में देरी और राज्य की शांति
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ एक अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. वकील साहब ने अपने मुवक्किल (नंदन महतो) के लिए राहत की मांग की, जोड़ देकर हुजूर, इस अदालत का दिशानिर्देश है कि जमानत याचिका का निपटारा जल्द से जल्द होना चाहिए. बिहार में ठीक उल्ट हो रहा है, जमानत याचिका में सुनवाई की डेट महीने भर के बाद मिलती है, इसी मामले को देखिए पिछले नौ महीने से अधर में लटका पड़ा है. आप कुछ दिशानिर्देश दें, जिससे कि जमानत याचिका पर सुचारू रूप से सुनवाई हो सके.
जस्टिस विक्रम नाथ ने बड़ी गंभीरता से वकील की दलीलो पर कुछ क्षण के लिए विचार किया, फिर कहा, बिहार में बाहर कुछ शांति इसी वजह से है. अदालत ने न्यायिक विलंब और राज्य की शांति के बीच एक संभावित संबंध पर जोड़ दिया है.
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आत्मसमर्पण करें याचिकाकर्ता
साथ ही अदालत ने नंदन महतो की जमानत याचिका को खारिज किया. साथ ही ट्रायल कोर्ट को प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ाने को लेकर निर्देश देने से भी इंकार किया. हलांकि अदालत ने महतो को अपनी याचिका वापस लेने और ट्रायल कोर्ट में पुनः जमानत के लिए आवेदन करने का विकल्प दिया है. अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह याचिका वापस ली गई है, याचिकाकर्ता आज से दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने और ट्रायल कोर्ट में नियमित जमानत के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी जाती है. साथ ही अगर आगे नियममित जमानत के लिए आवेदन किया जाता है, तो ट्रायल कोर्ट इसे अपनी मेरिट पर विचार करेगा. अदालत ने प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश देने के बजाय याचिकाकर्ता को वैकल्पिक रास्ता प्रदान किया है.