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ममता सरकार को बड़ा झटका, नियुक्त रद्द होने के बाद भी नॉन-टीचिंग स्टॉफ को स्टाइपेंड देने के फैसले पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने लगाई रोक

Calcutta HC, Mamta Banerjee

साल 2016 में पश्चिम बंगाल सरकार ने 25,000 टीचिंग, नॉन-टीचिंग स्टॉफ की नियुक्ति की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया. इस बर्खास्तगी के बाद बंगाल सरकार द्वारा ग्रुप सी कर्मचारियों को 25,000 रुपये और ग्रुप डी कर्मचारियों को 20,000 रुपये प्रति माह भत्ता दिया जा रहा था.

Written By Satyam Kumar | Published : June 23, 2025 10:34 AM IST

कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले को रद्द कर दिया है, जिसके तहत सरकार नॉन-टीचिंग स्टॉफ को गुजारा स्टाइपेंड दे रही थी. राज्य में ममता सरकार बेरोजगार ग्रेड सी और डी कर्मचारियों को आर्थिक मदद के तौर पर भत्ता दे रही थी, हाईकोर्ट ने फिलहाल इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी है.  ग्रुप सी और ग्रुप डी के बर्खास्त कर्मचारियों को क्रमशः 25 हजार रुपये और 20 हजार रुपये भत्ता देने का फैसला किया था. शुक्रवार को जस्टिस अमृता सिन्हा की अदालत ने राज्य के निर्णय पर अंतरिम रोक लगा दी, जो 26 सितंबर तक प्रभावी रहेगी.

इस फैसले का विरोध करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट में एक मामला दायर किया गया था। याचिकाकर्ता वो उम्मीदवार थे, जो 2016 की भर्ती प्रक्रिया के दौरान प्रतीक्षा सूची में थे. उनका तर्क था कि अगर राज्य भत्ता दे रहा है तो ये सभी को मिलना चाहिए. भ्रष्ट तरीकों से नौकरी हासिल करने वाले और बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण नौकरी गंवाने वालों को भत्ते देना वास्तव में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना है. उन्होंने राज्य के फैसले को गैरकानूनी बताया. मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस अमृता सिन्हा ने फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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हाईकोर्ट के फैसले पर बीजेपी ने कहा कि बर्खास्त कर्मचारियों को भत्ता देने का राज्य सरकार का फैसला गैरकानूनी था. अदालत ने जो फैसला दिया है, वो बिल्कुल सही है. पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार इन 11 साल में बिना किसी उचित नीति, नियुक्ति या व्यवस्था के लगातार काम कर रही है. कोई वित्तीय नियम या विनियमन नहीं है और एक व्यक्ति वित्तीय अनुशासनहीनता के साथ मनमाने ढंग से काम करता है. इसलिए अदालत की ओर से जारी अंतरिम आदेश और प्राथमिक अंतरिम रोक कानूनी रूप से इस वित्तीय अनुशासनहीनता को उजागर करती है.

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बता दें कि इसी साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल चयन आयोग (WBSSC) द्वारा की गई लगभग 25000 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया ही भ्रष्ट है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला पश्चिम बंगाल सरकार के लिए बड़ी मुश्किलें खड़े करनेवाला था, जो एक राज्य के तौर पर नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने में असफल रही. इससे पहले कलकत्ता हाई कोर्ट ने शिक्षक नियुक्ति से जुड़ी प्रक्रिया रद्द करने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई थी.

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(खबर IANS इनपुट से है)