जूनियर पर कंट्रोल नहीं बनाने के चलते Jail Superintendent के पेंशन में कटौती, इस वजह से Allahabad HC ने सरकार का फैसला पलटा
हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जेल अधीक्षक की पेंशन का 10% तीन साल के लिए काटने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को रद्द किया है. हाई कोर्ट ने कहा कि कदाचार (misconduct) और लापरवाही या निष्क्रियता (carelessness or inaction) में अंतर है. मामले में जेल अधीक्षक (Jail Superintendent) पर अपने अधीनस्थों पर नियंत्रण न रख पाने का था, जिसकी वजह से कैदी भाग गए. जस्टिस नीरज तिवारी ने कहा कि जेल की सुरक्षा में अधीक्षक की भूमिका केवल पर्यवेक्षी (Suprervisory) है, असल जिम्मेदारी उनके अधीनस्थ अधिकारियों की होती है. अदालत ने कहा कि कैदियों को भागने से रोकने में जेलर और उप जेलर की भूमिका बड़ी जिम्मेदारी. अदालत ने माना कि यह गंभीर कदाचार या सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने जैसा नहीं है, जिसके लिए नियम 351-A के तहत जेल सुपरिटेंडेंट की पेंशन रोकी जा सकती है.
क्या है मामला?
1994 में याची यूपीपीएससी के तहत डिप्टी जेलर चयनित हुए थे. बाद में पदोन्नति हुई तो एटा के जेल सुपरिटेंडेंट बनाए गए. जेल अधीक्षक रहने के दौरान दो कैदी जेल से भाग निकले. इनके खिलाफ जांच शुरू की गई और साल 2019 में चार्जशीट दाखिल हुई.
इस चार्जशीट में जेल सुपरिटेंडेंट पर आरोप लगाया कि ये घटना अधिकारी के अपने अधीनस्थ अधिकारियों पर नियंत्रण की कमी की वजह से घटी है. आरोप पत्र में दावा किया गया कि उनके अधीनस्थ अधिकारियों पर उनका नियंत्रण नहीं था, जिसके कारण आवश्यक सुरक्षा उपाय नहीं किए गए. नवंबर 2021 में, सेवानिवृत्ति के बाद भी, सिविल सेवा विनियमन के नियम 351-A के तहत जांच जारी रही. विभागीय जांच पूरी होने के बाद जेल अधीक्षक के पेंशन से 15% की कटौती का आदेश पारित किया गया. याचिकाकर्ता ने आदेश को चुनौती दिया. बाद में राज्य ने इस फैसले को बदलते हुए तीन साल तक 10 प्रतिशत पेंंशन राशि काटने का आदेश सुनाया. .याचिकाकर्ता-पीड़ित जेल सुपरिटेंडेंट ने इसे हाई कोर्ट में चुनौती दिया था.
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हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को खारिज करते हुए पूरा पेंशन देने के फैसले को बहाल किया है.