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50 प्राइमरी स्कूलों के विलय करने के मामले में UP सरकार ने क्या कहा? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रिपोर्ट के साथ मांगा जवाब

Government Primary School

उत्तर प्रदेश सरकार के 50 प्राइमरी स्कूल के विलय करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाएं बुधवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के लिए पेश की गई थी लेकिन सरकारी वकीलों ने बहस के लिए बृहस्पतिवार तक का समय मांगा था. अदालत ने सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों को चेतावनी दी कि वह शु्क्रवार को मामले की सुनवाई और आगे नहीं टाले.

Written By Satyam Kumar | Published : July 4, 2025 12:01 PM IST

उत्तर प्रदेश सरकार के 50 प्राइमरी स्कूलों के विलय करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए रजामंदी दे दी है. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने यूपी सरकार से तल्ख सवाल किए. हाई कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार ने 50 प्राइमरी स्कूलों के विलय करवाने से पहले कोई सर्वेक्षण करवाया था. यदि कोई सर्वेक्षण रिपोर्ट है, उसे अगली सुनवाई में लेकर पेश होने का आदेश दिया. बता दें कि यूपी सरकार के 50 प्राइमरी स्कूलों के विलय के फैसले को चुनौती देते हुए दावा किया कि स्कूलों का विलय शिक्षा के अधिकार अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 21-ए का उल्लंघन है. वहीं, सरकार ने तर्क दिया कि कई स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत कम है, इसलिए विलय किया गया है.

जस्टिस पंकज भाटिया की एकल पीठ ने सीतापुर की कृष्णा कुमारी और 50 अन्य की ओर से दायर याचिका पर आदेश पारित करते हुए यह भी कहा कि सरकार विलय के खिलाफ याचिका पर पूरी तैयारी और तथ्यों के साथ अपना पक्ष रखे. यह याचिका बुधवार को सुनवाई के लिए पेश की गई थी लेकिन सरकारी वकीलों ने बहस के लिए बृहस्पतिवार तक का समय मांगा था. अदालत ने सरकार की ओर से पेश हुए वकीलों को चेतावनी दी कि वह शु्क्रवार को मामले की सुनवाई और आगे नहीं टालेगी. अदालत ने कहा कि अगर शुक्रवार को भी सरकार का पक्ष पूरी तैयारी और तथ्यों के साथ पेश नहीं किया गया तो वह उस पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगा सकती है.

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इससे पहले, याचिकाकर्ताओं के वकील एल. पी. मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ने दलील दी कि राज्य सरकार का प्राथमिक स्कूलों के परस्पर विलय का 16 जून का फैसला मनमाना और अवैध है. याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत प्रदत्त शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने साल 2009 में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया था. इसके तहत छह से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है. इस संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के तहत राज्य में बड़ी संख्या में प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना की.

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याचिका के मुताबिक, कानून की मंशा के अनुरूप शिक्षा का संवैधानिक अधिकार देने के लिए एक किलोमीटर के दायरे में हर 300 की आबादी पर विद्यालय स्थापित किए गए और अब सरकार प्रशासनिक आदेश के जरिए बड़ी संख्या में उक्त विद्यालयों को विलय करके बंद कर रही है. याचिका में दलील दी गई कि राज्य सरकार का यह कृत्य संविधान के अनुच्छेद 21-ए और शिक्षा के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ है. यह भी तर्क दिया गया कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत संवैधानिक अधिकार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जब बड़े पैमाने पर स्कूल स्थापित हो गए हैं तो अधिनियम के तहत किए गए काम को महज एक प्रशासनिक आदेश से पलटा नहीं जा सकता.

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राज्य सरकार की ओर से नवनियुक्त अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया और मुख्य अधिवक्ता एस.के. सिंह उपस्थित हुए. इसके अलावा, सीतापुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी के अधिवक्ता के रूप में संदीप दीक्षित पेश हुए. सरकारी वकील ने कहा कि राज्य ने विलय का निर्णय इसलिए लिया है क्योंकि कई स्कूलों में छात्रों की संख्या बहुत कम है और करीब 56 स्कूलों में तो बिल्कुल भी छात्र नहीं हैं.

इस पर अदालत ने पूछा कि क्या सरकार ने कोई सर्वेक्षण कराया है? अगर कराया है तो उसकी रिपोर्ट कहां है. रिपोर्ट पेश नहीं किये जाने पर अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए सरकारी वकीलों को फटकार लगानी शुरू कर दी. हालांकि, अदालत ने एक बार फिर सुनवाई शुक्रवार तक के लिए टाल दी और कहा कि अब आगे सुनवाई नहीं टाली जाएगी. हालांकि, इलाहाबाद एक बार ने सुनवाई बार स्थगित करते हुए सरकार को अगले दिन की सुनवाई पूरी तैयारी के साथ पेश होने को कहा.

(खबर इनपुट से है)