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कोलकाता हाईकोर्ट में 28 जजों की कमी, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने पांच वकीलों को न्यायाधीश बनाने की सिफारिश की

वर्तमान में कलकत्ता हाई कोर्ट में 72 स्वीकृत जजों में से 44 पद पर हैं, जिससे 28 पद रिक्त हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को पांच वकीलों को जज के तौर पर नियुक्ति के लिए सिफारिश की है.

Written By Satyam Kumar | Published : February 28, 2025 1:03 PM IST

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने कलकत्ता हाईकोर्ट में पांच नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश की है. इस लिस्ट में स्मिता दास डे, रीतोब्रोतो कुमार मित्रा, मोहम्मद तलय मसूद सिद्दीकी, कृष्णराज ठाकर और ओम नारायण राय शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की गत 25 फरवरी को हुई बैठक में इन पांच अधिवक्ताओं को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी. बता दें कि कोलकाता हाई कोर्ट के लिए कुल स्वीकृत 72 जजों में से वर्तमान में 44 जज हैं और 28 पद खाली हैं.

केन्द्र की मंजूरी अहम

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से जजों की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद इसे केंद्र सरकार के पास भेजा जाता है. इसके बाद केंद्र सरकार नियुक्ति पर मुहर लगा सकती है या सभी या कुछ नामों पर आपत्ति जता सकती है. इससे पहले, भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट में तीन और मद्रास उच्च न्यायालय में चार अतिरिक्त न्यायाधीशों को स्थायी न्यायाधीशों के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी. वहीं, पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के रूप में पांच अधिवक्ताओं की नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी.

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वकील से एडिशनल जज बनने की प्रक्रिया

वकीलों को जजशिप में एडिशनल जज के रूप में शामिल किया जाता है, और उनके प्रदर्शन के आधार पर उन्हें स्थायी नियुक्ति दी जाती है. एडिशनल जज से जज बनने में लगभग दो साल का समय लगता है. हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति एक मेमोरेडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) के तहत किया जाता है. इस प्रक्रिया के तहत, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश द्वारा जज की नियुक्ति का प्रस्ताव शुरू किया जाता है. यदि राज्य का मुख्यमंत्री किसी व्यक्ति के नाम की सिफारिश करता है, तो उसे यह नाम मुख्य न्यायाधीश को विचार के लिए भेजना होता है. गवर्नर, जो मुख्यमंत्री द्वारा सलाहित होते हैं, उन्हें अपनी सिफारिश के साथ सभी दस्तावेज केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री को भेजने होते हैं. यह प्रक्रिया छह सप्ताह के भीतर पूरी होनी चाहिए, अन्यथा केंद्रीय मंत्री मान लेंगे कि गवर्नर के पास सिफारिश के लिए कुछ नहीं है. केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री सिफारिशों पर विचार करते समय अन्य रिपोर्टों को भी ध्यान में रखते हैं। इसके बाद, सभी दस्तावेज मुख्य न्यायाधीश के विचार के लिए भेजे जाते हैं।

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सीजेआई की अगुवाई वाली कॉलेजियम इन नामों पर विचार कर अपनी राय केंद्र सरकार को भेजती है. यह प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी की जाती है. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद, न्याय विभाग के मुख्य सचिव इस बारे में चीफ जस्टिस और राज्य के मुख्यमंत्री को सूचित करेंगे और इस मामले में नोटिफिकेशन जारी करेंगे.

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