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'बात रखने का मौका नहीं दिया गया', इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रेनी जजों को वापस से बहाल किया, शराब पीकर हंगामा करने का मामला

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2012 में 'चरण क्लब एंड रिसॉर्ट' में हंगामा करने वाले ट्रेनी जजों को सेवा से हटाने के आदेशों को निरस्त किया.

Written By Satyam Kumar | Published : March 11, 2025 4:58 PM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने अयोध्या रोड स्थित चरण क्लब एंड रिसॉर्ट’ में 2012 में कथित तौर पर शराब पीकर हंगामा करने वाले ट्रेनी जजों को सेवा से हटाने संबंधी सभी आदेशों को निरस्त कर दिया है. पीठ ने उन्हें फिर से परिवीक्षाधीन अधिकारी के पद पर बहाल करने का आदेश दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि भले ही ये जजों पर लगे ये आरोप बेहद गंभीर है लेकिन हटाने से पहले अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया, जो कि न्याय सिद्धांत के खिलाफ है. यह मामला 2012 का है और रिसॉर्ट में कथित रूप से हंगामा करने वाले सभी ट्रेनी जज 2012 बैच के हैं. घटना को लेकर शुरूआती जांच में सीनियर रजिस्ट्रार (न्यायिक) की रिपोर्ट में कहा कि ये मामला गंभीर है और इसे न्यायिक ध्यान देने की आवश्यकता है. रिपोर्ट को हाई कोर्ट की प्रशासनिक समिति के समक्ष रखा गया था, जिसने इस मामले को फुल बेंच के पास रखने का फैसला लिया. अब इस मामले में हाई कोर्ट के फुल बेंच का फैसला आया है.

ट्रेनी जजों को किया बहाल

इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस जसप्रीत सिंह, जस्टि मनीष माथुर और जस्टि सुभाष विद्यार्थी की पूर्णपीठ ने ट्रेनी जज सुधीर मिश्रा और अन्य ट्रेनी जजों की याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जिन आरोपों के आधार पर ट्रेनी जजों को हटाया गया था, वे उन पर कलंक लगाने वाले है, इसके बावजूद उन्हें हटाए जाने से पहले अपना पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं दिया गया, जो सुनवाई का अवसर दिए जाने के स्थापित सिद्धांत के विरुद्ध है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छह अधिकारियों की याचिकाओं पर विचार करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कार्रवाई बिना उचित जांच और सुनवाई के की गई थी.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 311(2) के तहत अनुशासनात्मक जांच का पालन नहीं करने के कारण, यह आदेश मनमाना और असंगत था. अदालत ने यह भी कहा कि यह न केवल अनुच्छेद 311(2) का उल्लंघन है, बल्कि अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है. अदालत ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय लिया.

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