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स्त्रीधन क्या होता है? जानें स्त्रीधन से जुड़े महिलाओं के अधिकार

स्त्रीधन पर स्त्री का पूरा अधिकार होता है. स्त्रीधन की तुलना दहेज़ से नहीं की जा सकती है क्योंकि दहेज वर पक्ष को दिया जाता है, जबकि स्त्रीधन वधु को ही दिया जाता है.

Written By Nizam Kantaliya | Published : December 28, 2022 10:52 AM IST

नई दिल्ली: शादी या विवाह किसी भी व्यक्ति के लिए उसके जीवन के सबसे बड़े उत्सव में से एक है. विवाह मानव-समाज के लिए संस्था की तरह है जो समाज का निर्माण करने वाली सबसे छोटी इकाई के रूप में परिवार का आधार हैं.

हमारे देश में एक पिता के लिए एक बेटी का विवाह उसके जीवन का सबसे खुबसूरत पल होता है, उसी तरह महिला के नाते भी बेटी के लिए विवाह एक नए जीवन की शुरूआत होती है. चूकि विवाह में एक महिला नए परिवार में शामिल होती है. तो उससे जुड़े सभी संबंधी और रिश्तेदारों से लेकर वर पक्ष के लोग भी कई उपहार और संपंतिया देते है. ये सभी उपहार और संपं​ति एक महिला के लिए स्त्रीधन है.

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विवाह में जो भी सम्पत्ति पत्नी को उपहार में प्राप्त होती है उस पर उसका एक मात्र अधिकार होता है.

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वर्तमान अर्थ में स्त्रीधन

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14 के अनुसार हिन्दू स्त्रियों को उन समस्त सम्पत्तियों में सम्पूर्ण स्वामित्व प्रदान किया गया हैं जो उसे दाय, विक्रय, इच्छापत्र, न्यायालय के निर्णय के द्वारा अथवा विभाजन, भरण-पोषण, स्वाध्यवसाय अथवा अन्य किसी विधिक तरीके से प्राप्त हुई है.

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उसे सम्पत्ति किसी भी सम्बन्धी से प्राप्त हुई हो सकती है, विवाह के पूर्व अथवा बाद में प्राप्त हो सकती है, किन्तु वे समस्त सम्पत्ति स्त्रीधन की कोटि में आयेंगी.

महिला की संपत्ति

मूल रूप से स्त्रीधन महिला की संपत्ति होती है यानि ऐसी संपत्ति जिस पर महिला का पूर्ण स्वामित्व हो. इसमें वह सब चीज़ें शामिल होती हैं जो महिला को शादी के बाद संपत्ति और उपहार शामिल होते हैं। मद्रास हाई कोर्ट ने 1957 में राजम्मा बनाम वरदराजुलु चेट्टी और अन्य के मामले में कहा था कि हिन्दू स्त्री को जो उपहार विवाह से पहले और विवाह के समय पर मिलते हैं, वह उसके स्त्रीधन का हिस्सा होते हैं।

हिन्दू धर्म में शादी के अवसर पर वधु को दिए जाने वाली संपत्ति और उपहार को स्त्रीधन कहा जाता है. स्त्रीधन पर स्त्री का पूरा अधिकार होता है. स्त्रीधन की तुलना दहेज़ से नहीं की जा सकती है क्योंकि दहेज वर पक्ष को दिया जाता है, जबकि स्त्रीधन वधु को ही दिया जाता है. स्त्रीधन पर कानूनी तौर पर भी स्त्री का ही पूर्ण अधिकार है.

स्त्रीधन में क्या चीज़ें आती हैं?

· विवाह विधि के दौरान मिले उपहार

· विदाई के समय दिए गए उपहार

· वह सब उपहार जो महिला को बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते हुए प्राप्त हुए हों

· विवाह के बाद पति के परिवार द्वारा दिए गए उपहार, इनमें साँस-ससुर द्वारा स्नेह भावना से दिए जाने वाले उपहार शामिल हैं

· महिला के माता-पिता के संबंधियों द्वारा दिए गए उपहार.

· महिला के भरण पोषण के लिए दिए गए पैसे या उस पैसे से खरीदी गई कोई अन्य संपत्ति

· महिला द्वारा कमाए गए पैसे और उसके द्वारा की गई बचत

स्त्रीधन से जुड़े अधिकार

1. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के अनुसार वह सभी संपत्ति जो महिला के स्वामित्व में हैं, वह महिला की पूर्ण संपत्ति होती है यानि महिला ही उन संपत्ति की मालिक हैं और संपत्ति से जुड़े सभी अधिकार, उस महिला में निहित हैं।

2. यदि कोई महिला कभी अपना वैवाहिक घर छोड़कर जाती हैं, तो वह अपना स्त्रीधन अपने साथ ले जा सकती है और ऐसा करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता है।

हाल ही में कलकत्ता हाई कोर्ट ने नंदिता सरकार बनाम तिलक सरकार के मामले में कहा था कि यदि पति के परिवार के सदस्य, महिला को स्त्रीधन देने से इंकार करते हैं तो यह भी घरेलू हिंसा के दायरे में आएगा.उनके खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 के तहत कार्यवाही की जाएगी और सख्त सज़ा प्रदान की जाएगी.

3. महिला चाहे तो इस संपत्ति को, किसी भी अन्य व्यक्ति को उपहार में दे सकती हैं. वह इस संपत्ति के उत्तराधिकार के संबंध में वसीयत भी बना सकती हैं.

4. स्त्रीधन से जुड़े किसी भी फैसले में महिला को पति से सहमति लेने की ज़रूरत नहीं है और न ही उसका पति या ससुराल वाले महिला को स्त्रीधन संपत्ति से जुड़े उनके फैसले से बाध्य कर सकते हैं.

क्या मेहर भी स्त्रीधन है

जैसे हिंदू धर्म में स्त्रीधन की अवधारणा है, वैसे ही मुस्लिम धर्म में विवाह अनुबंध के समय पति द्वारा पत्नी को दिए गए उपहार को "मेहर" कहा जाता है. यह उपहार किसी भी तरह की संपत्ति के रूप में हो सकता है यानि नकद, आभूषण, घर या कोई अन्य संपत्ति हो सकती, जो मुस्लिम पत्नी की एकमात्र संपत्ति बन जाती है.

मुस्लिम कानून के अनुसार, विवाह में मेहर अदा करना अनिवार्य है. वादा की गई मेहर का भुगतान न करने को मुस्लिम कानून का उल्लंघन माना जाता है, जो आगे चलकर पति के लिए प्रतिकूल सजा और परिणाम का कारण बन सकता है.