क्या बीमारियों पर भी मिलती है टैक्स छूट Income Tax Act के तहत?
नई दिल्ली: हर कोई व्यक्ति खूब मेहनत करके पैसा कमाता है और यह भी चाहता है कि इस पैसे को ज्यादा से ज्यादा बचाया जा सके. इस बात का ध्यान इनकम टैक्स एक्ट भी रखता है. यही वजह है कि सरकार के द्वारा अलग अलग प्रकार के डिडक्शन भी दिए गए है. इन डिडक्शन्स में कुछ ऐसे प्रावधान हैं जिनके बारे में ज्यादातर टैक्स पेयर्स को नहीं पता होता .ऐसा ही एक बेनिफिट है मेडिकल खर्चों में मिलने वाला बेनिफिट. चलिए आज जानते हैं कैसे और किस किस को मिलती है मेडिकल खर्चों पर टैक्स छूट.
Income Tax Act Section 80DDB
इनकम टैक्स एक्ट का सेक्शन 80DDB बीमारीयों के खर्च में मिलने वाली टैक्स छूट के बारे में बताता है. इस एक्ट के तहत देश में कुछ निश्चित टैक्सपेयर्स कुछ निश्चित बीमारीयों के इलाज में होने खर्च पर टैक्स छूट मांग सकता है.हालाँकि इसमें कुछ शर्तें भी लागू है. चलिए इन शर्तों पर नजर डालते हैं.
कौन कर सकता है डिडक्शन क्लेम
इस कानून के तहत मिलने वाली छूट सिर्फ इंडिविजुअल टैक्स पेयर्स और हिन्दू अनडिवाइडेड फॅमिली को ही मिल सकती है. इन बेनिफिट्स को क्लेम करने के लिए आपका भारतीय होना जरूरी है.अगर आप NRI हैं तो भी आपको ये छूट नहीं मिल सकती.
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सेक्शन 80DDB के अनुसार आपकी फैमिली में केवल आपकी पत्नी/पति, बच्चे, भाई-बहन और माता-पिता ही गिने जायेंगें और इनके इलाज में खर्च पैसे पर भी आपको टैक्स में छूट मिलेगी.
कितना डिडक्शन मिलेगा
IT Act Section 80DDB के अनुसार उम्र के आधार पर टैक्स डिडक्शन की राशि तय की गई है. अगर आपकी उम्र 60 साल से कम है तो आपको 40 हजार रूपये तक के मेडिकल खर्चे पर डिडक्शन मिल सकता है.
अगर आपकी उम्र 60 साल से ज्यादा है तो आपको 1 लाख रूपये तक के मेडिकल खर्चे पर टैक्स डिडक्शन मिल सकता है.
किन बीमारियों की इलाज पर है 80DDB Deduction?
Hematological disorders :
Hemophilia ;
Thalassaemia.
1. न्यूरोलॉजिकल डिसीसेस
डेमेंटिया (Dementia);
Dystonia Musculorum Deformans ;
Full Blown Acquired Immuno-Deficiency Syndrome (AIDS) ;
Chronic Renal failure ;
Motor Neuron Disease ;
Ataxia ;
Chorea ;
Hemiballismus ;
Aphasia ;
Parkinsons Disease
Malignant Cancers
कैसे कर सकते है डिडक्शन क्लेम
- डिडक्शन क्लेम करने के लिए आपको सेंट्रल या स्टेट गवर्नमेंट मेडिकल बोर्ड के द्वारा बीमारी की जानकारी देते हुए जारी मेडिकल सर्टिफिकेट की हार्ड कॉपी जमा करवानी होती है .
- जिस व्यक्ति के नाम पर टैक्स असेसमेंट हो रहा है, उसके नाम पर लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी भी होनी चाहिए. इससे टैक्स असेसर की आकस्मिक मृत्यु पर एनुइटी दी जाती है. डिपेंडेंट को इसपर डेथ बेनेफिट मिलता है.
- अगर टैक्सेशन के पहले डिसेबल डिपेंडेंट का निधन हो जाता है तो पॉलिसी अमाउंट असेसर को लौटा दिया जाता है. लेकिन इस अमाउंट को इनकम के तौर पर देखा जाता है और इस पर टैक्स लगता है.