जमीन अवाप्ति के 41 साल बाद हैदराबाद के किसानों को मिलेगा अब मुआवजा
नई दिल्ली, देश में अग्रणी प्राणी उद्यान के रूप में पहचाने जाने वाले हैदराबाद स्थित नेहरू जूलॉजिकल पार्क के लिए वर्ष 1981 में अवाप्त की गई जमीन का मुआवजा जमीन मालिक किसानों को 41 साल बाद मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद रेवेन्यू डिपार्टमेंट की अपील को खारिज करते हुए विभाग को आदेश दिए हैं कि वो जमीन मालिकों को 2 माह के भीतर मुआवजे का भुगतान करें.
पार्क के लिए अधिग्रहण
पिछले 41 साल से हैदराबाद निवासी इसमाईल भाई व अन्य याचिकाकर्ता पार्क के लिए दी गयी जमीन का मुआवजा प्राप्त करने के लिए दर्जनों लंबी कानूनी लड़ चुके है. वर्ष 1981 में नेहरू जूलॉजिकल पार्क के विस्तार के लिए रंगा रेड्डी जिले के अट्टापुर गांव स्थित याचिकाकर्ता की 3.23 गुंटा जमीन अवाप्त की गई.
अप्रैल 1981 में जमीन का कब्जा लेने के बावजूद न तो जमीन के बदले में कोई जमीन ही दी गयी और ना ही मुआवजे की राशि का भुगतान किया गया. हाईकोर्ट के दखल के बाद वर्ष 1997 में राजस्व विभाग ने याचिकाकर्ताओं की अधिग्रहित जमीन का मुआवजा देने की कार्यवाही शुरू की.
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6 रुपये प्रति वर्ग गज
जमीन अधिग्रहण के करीब 17 वर्ष बाद शुरू हुई इस कार्रवाई से भी किसानों को राहत मिलने की बजाए उनके जख्मों पर नमक छिड़का गया. विभाग ने जमीन के बदले में मात्र 6 रुपये प्रति गज के हिसाब से मुआवजा पारित करने का निर्णय लिया.
नाममात्र का मुआवजा जारी करने पर याचिकाकर्ताओं ने पुन: हाईकोर्ट में याचिकाए दायर की. हाईकोर्ट के बार बार आदेश और लगातार कानूनी कार्रवाई के बाद भी राजस्व विभाग द्वारा मुआवजा तय नहीं करने पर अवमानना याचिका दायर की गयी.
अवमानना का नोटिस मिलने पर विभाग की ओर से जिला अदालत में मुआवजे का रेफरेंस पेश किया गया.विभाग के रेफरेंस के आधार पर कोर्ट ने 250 रुपये प्रति गज मुआवजे के आदेश दिए.
मध्यस्थता के बाद अपील
जिला अदालत के फैसले से असंतुष्ट जताते हुए राजस्व विभाग ने फिर से हाईकोर्ट में अपील दायर की. फरवरी 2016 में हाईकोर्ट ने मामले में सभी पक्षकारों की सहमति के बाद मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया.
मध्यस्थता की कार्यवाही के दौरान राजस्व विभाग और याचिकाकर्ताओं के बीच 350 रुपये प्रति वर्ग गज के मुआवजे पर सहमति बनी. जिस पर मध्यस्थ ने 3,48,46,578 रुपये का मुआवजा तय करते हुए हाईकोर्ट में रिपोर्ट पेश की. दोनों पक्षों की सहमति और मध्यस्थ की रिपोर्ट के आधार हाईकोर्ट ने मामले का निस्तारण कर दिया.
राजस्व विभाग के उच्चाधिकारियों ने मामले में मुआवजा जारी करने की बजाए हाईकोर्ट के आदेश के रिकॉल के लिए अपील दायर कर दी. हाईकोर्ट ने भी राजस्व विभाग की अपील को स्वीकार करते हुए मुआवजे की राशि 350 रुपये प्रति गज से कम करते हुए 100/प्रति वर्ग गज कर दिया.
मुआवजे की गणना में त्रुटि
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ भूमि मालिक और राजस्व विभाग दोनो ही अपील दायर करते हुए सुप्रीम कोर्ट आए. भूमि मालिक याचिकाकर्ताओं ने जहां रेफरेंस कोर्ट के अनुसार ब्याज सहित पर्याप्त मुआवजे की मांग रखी. वही राजस्व विभाग ने हाईकोर्ट द्वारा दिए गए 100 रुपये प्रति गज के मुआवजे को बरकरार रखने की मांग की गयी.
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने संयुक्त अपीलों पर सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद रेफरेंस कोर्ट द्वारा दिए गए 250 रुपये प्रति गज के मुआवजे को उचित ठहराया. फैसले में पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने 100 रुपये प्रति वर्ग गज मुआवजे की गणना करने में त्रुटि की और भूमि मालिकों द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों और ठोस सामग्री की अनदेखी की हैं.
हो चुके विकास के लिए विकास शुल्क नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता से अधिग्रहित भूमि हैदराबाद के केन्द्र में स्थित हैं जो कृषि विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय पुलिस अकादमी और आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के बेहद पास स्थित हैं.
हैदराबाद शहर का विकास पहले ही हो चुका है और याचिकाकर्ता की भूमि का उपयोग 40 वर्ष से किया जा रहा है. ऐसे में अब शहर के हो चुके विकास के लिए विकास शुल्क देने के लिए भूमि मालिकों को बाध्य नहीं किया जा सकता है, केवल उस भूमि के लिए जिसके लिए उन्हे 4 दशक से मुआवजा तक नहीं दिया गया हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विभाग द्वारा इस महत्वपूर्ण भूमि को अधिग्रहित किए हुए 40 वर्ष से अधिक समय हो चुका है ऐसे में उक्त भूमि के मूल्य की गणना 250 रुपये प्रति वर्ग गज से कम कतई नहीं की जा सकती. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राजस्व विभाग की याचिका को खारिज करने के आदेश दिए.
हैदराबाद की पहचान है पार्क
हैदराबाद के नेहरू जूलॉजिकल पार्क को हैदराबाद चिड़ियाघर के नाम से भी जाना जाता है. पंडित जवाहरलाल नेहरू के नाम पर यह चिड़ियाघर शहर का प्रमुख आकर्षण है, इसे 1963 में जनता के लिए बनाया गया था. वर्ष 1980 में इस पार्क के विस्तार की योजना पर कार्य शुरू किया गया था. जिसके बाद आस पास के गांवों की जमीन का अधिग्रहण किया गया. वर्तमान में 380 एकड़ जमीन पर फैले हुए इस चिड़ियाघर का रखरखाव आंध्र प्रदेश सरकार के वन विभाग द्वारा किया जाता है.
इस पार्क में मिनी ट्रेन सवारी, हाथी की सवारी, संग्रहालय, मिरलम टैंक झील और प्रवासी पक्षियों की उपलब्धता से स्थानीय पर्यटकों की पसंद बना हुआ हैं. बाघ सफारी, शेर सफारी और भालू सफारी बाहरी पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण में से हैं.