Advertisement

तलाकशुदा पत्नी को मिलने वाले Alimony कानून के बारे में जानिए यहां

तलाक को हमारा समाज बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखता है इसलिए जब भी कोई महिला तलाक के बारे में सोचती है तो सबसे पहले वो यही सोचती है कि समाज क्या कहेगा लेकिन महिलाएं इन सबसे ऊपर उठ रही हैं क्योंकि महिलाएं अब जागरूक हो रही है अपने अधिकारों के प्रति.

Written By My Lord Team | Updated : March 3, 2023 8:11 AM IST

नई दिल्ली: हमारे समाज में आज कल जितनी तेजी से शादियां हो रही है उतनी ही तेजी से तलाक भी हो रहे हैं. पहले तलाक का चलन इतना नहीं था और महिलाएं तमाम घरेलू हिंसा को सहन करके भी परिवार में रहती थी क्योंकि सोच बनी हुई थी कि समाज क्या कहेगा. लेकिन बदलते वक्त के साथ सोच बदल रही है. महिलाएं अब अपने अधिकारों के प्रति सचेत हैं.

कानून ने महिलाओं को कई तरह के अधिकार दिए हैं. उन्ही में से एक है तलाक के बाद गुजारा भत्ते का अधिकार. आईए जानते हैं एक तलाक शुदा महिला के कानूनी रूप से गुजारे भत्ते का अधिकार, इसके तहत कितना भत्ता दिया जाता है और इससे जुड़ी शर्तें क्या हैं.

Advertisement

गुजारा भत्ते (Alimony) का अधिकार

तलाक के बाद हर पति या पत्नी को गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है. हालांकि यह एक पूर्ण अधिकार नहीं है, अदालत का फैसला पति-पत्नी की परिस्थिति और वित्तीय स्थिति दोनों पर निर्भर करता है. यानि अदालत ये देखती है कि पति या पत्नी की आर्थिक स्थिति कैसी है. कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण से जुड़े गुजारा भत्ता अधिकार की व्यवस्था की गई है.

Also Read

More News

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अनुसार, केवल एक महिला जो अपने पति से तलाक लेती है या जिसे अपने पति द्वारा तलाक दे दी गई हो और जिसने किसी अन्य पुरुष से दोबारा शादी नहीं की है, वह भरण-पोषण पाने की हकदार है. एक विवाहित महिला जो अपने पति के साथ रहने से इंकार करती है क्योंकि उसका पति परित्याग के लिए उत्तरदायी है या क्रूरता के लिए उत्तरदायी है या कुष्ठ रोग से पीड़ित है या पत्नी की सहमति के बिना द्विविवाह के लिए उत्तरदायी है या अपने धर्म को परिवर्तित करता है तो पत्नी इस अधिनियम के तहत भी विशेष भत्ते का दावा कर सकती है.

Advertisement

धारा 125 के अंतर्गत पत्नी के अलावा भी कई और लोग जोकि आर्थिक रूप से कमजोर है भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं.

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत निम्नलिखित व्यक्ति भरण-पोषण के उत्तरदायी हैं :

  • पत्नी, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है.
  • नाबालिग बच्चा चाहे शादीशुदा हो या न हो, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो.
  • पिता और माता, जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं.

इतना ही नहीं महिलाएं हिंदू विवाह कानून, 1955 के तहत भी गुजारा भत्ते का दावा कर सकती हैं.

हिंदू विवाह कानून, 1955 की धारा 24

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 रखरखाव के बारे में बात करती है कि पत्नी/पति अंतरिम भरण-पोषण का दावा कैसे कर सकते हैं. इस प्रावधान के तहत पति और पत्नी दोनों में से कोई भी जो कि आर्थिक रूप से कमजोर है वह भरण-पोषण का दावा कर सकता है.

केवल हिंदू विवाह अधिनियम और पारसी विवाह अधिनियम के तहत पति और पत्नी दोनों अंतरिम भरण-पोषण के लिए दावा कर सकते हैं. अन्य विधियों में, केवल पत्नी ही अंतरिम भरण-पोषण का दावा कर सकती है.

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25

हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 स्थायी भरण पोषण की अवधारणा से जुड़ी है, जो एक व्यक्ति (पति/पत्नी) को अदालत के आदेश के अनुसार सकल राशि या समय-समय पर या हर महीने रखरखाव के रूप में किसी अन्य व्यक्ति (पति/पत्नी) को भुगतान करना पड़ता है.

हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956

हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 18(1) के अनुसार पत्नी अपने पति की मृत्यु तक या पत्नी की मृत्यु होने तक भरण-पोषण की राशि प्राप्त करने की हकदार है. हिंदू पत्नी निम्नलिखित आधारों के तहत अपने पति से अलग रहने पर भी भरण-पोषण पाने की हकदार है:

  • जब पति परित्याग के लिए उत्तरदायी हो,
  • जब पति क्रूरता के लिए उत्तरदायी हो,
  • जब पति कुष्ठ रोग से पीड़ित हो.
  • जब पति द्विविवाह के लिए उत्तरदायी है,
  • जब पति पत्नी की सहमति के बिना धर्म परिवर्तन करता है,

हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 23

इसके अधिनियम के तहत भरण-पोषण की राशि के बारे में बताया गया है. भरण-पोषण के लिए दी जाने वाली राशि कितनी होगी इसका निर्धारण कैसे किया जाए, यह इस धारा में स्पष्ट किया गया है. भरण-पोषण की राशि तय करते समय निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है:

  • पार्टियों की स्टेटस और पोजीशन.
  • दावेदार की मूल आवश्यकता.
  • उचित बुनियादी आराम जो एक व्यक्ति को चाहिए.
  • प्रतिवादी की चल और अचल संपत्ति का मूल्य.
  • प्रतिवादी की आय.
  • प्रतिवादी पर आर्थिक रूप से निर्भर सदस्यों की संख्या.
  • दोनों के बीच संबंधों की डिग्री.

गुजारा भत्ता के प्रकार

1. Separation गुजारा भत्ता

यह गुजारा भत्ता उस स्थिति में मिलता है जब तलाक नहीं हुआ हो और पति-पत्नी अलग रह रहे हों. ऐसी स्थिति में यदि पत्नी या पति खुद का भरण-पोषण करने में समर्थ ना हो तो सेपरेशन गुजारा भत्ता देना आवश्यक होता है. अगर दंपति में सुलह हो जाती है तो गुजारा भत्ता देना बंद हो जाता है. अगर तलाक हो जाता है तो सेपरेशन गुजारा भत्ता परमानेंट गुजारा भत्ता बन जाता है यानि जीवन पर गुजारा भत्ता देना होगा.

2. Permanent गुजारा भत्ता

Permanent गुजारा भत्ता की कोई निर्धारित समाप्ति तिथि नहीं होती है. यह कुछ परिस्थितियों से निर्धारित होता है कि गुजारा भत्ता किस प्रकार मिलेगा.

. यह तब तक दिया जाता है जब तक पति या पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो जाते.

.जब तक अपना और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने का कोई तरीका नहीं निकाल लेते.

.जब तक पति या पत्नी दोबारा शादी नहीं करते.

.जब प्राप्तकर्ता के पास शादी से पहले कोई काम करने का इतिहास नहीं हो, शादी के बाद कभी काम नहीं किया हो.

3. Rehabilitative गुजारा भत्ता

Rehabilitative गुजारा भत्ता की कोई भी निर्धारित समाप्ति तिथि नहीं होती है. यानि इसमें ऐसी कोई निश्चित अवधि नहीं होती कि उतने दिन या उतने साल तक ही देना है. यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्धारित होता है. यह तब तक दिया जाता है जब तक पति या पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो जाते या स्वयं और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने का कोई तरीका नहीं देख लेते. बच्चों के स्कूल जाने तक जीवनसाथी को गुजारा भत्ते का भुगतान करना अनिवार्य होता है. यह देखने के लिए नियमित रूप से मूल्यांकन किया जाता है. परिस्थितियों के हिसाब से इसमें परिवर्तन भी किया जाता है.

4. Reimbursement गुजारा भत्ता

जब एक पक्ष ने कॉलेज, स्कूल या किसी भी तरह के रोजगार परख कोर्स के माध्यम से पति या पत्नी को पढ़ाने पर या किसी अन्य तरह से पैसा खर्च किया हो. तो ऐसे में अदालत खर्च की गई राशि या आधी राशि तक गुजारा भत्ता देने का फैसला सुना सकता है.

5) Lump-Sum गुजारा भत्ता

यह गुजारा भत्ता एक बार दिया जाता है. इसके तहत शादी में जमा हुई संपत्ति या अन्य संपत्ति के स्थान पर गुजारा भत्ता की पूरी रकम एक बार में मिल जाती है.

गुजारा भत्ता से जुड़े फैसले सुनाते समय कोर्ट निम्नलिखित बातों का रखती है ध्यान: 

  • पति और पत्नी की संपत्ति
  • विवाह की अवधि
  • पति और पत्नी की उम्र
  • स्वास्थ्य, सामाजिक स्थिति और जीवनशैली
  • बच्चों की शिक्षा और पालन-पोषण से जुड़े खर्चे
  • पति की आय
  • पति की आय की गणना करते समय आयकर
  • ईएमआई

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता को लेकर एक फैसले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण और दूरगामी फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा कि यदि पति शारीरिक रूप से सक्षम है तो उसे अलग रह रही पत्नी और नाबालिग बच्चों के भरण-पोषण के लिए मजदूरी करके भी पैसे कमाने होंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि CrPC की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता का प्रावधान सामाजिक न्‍याय के लिए है, जिसे खासतौर पर महिलाओं और बच्‍चों के संरक्षण के लिए कानून का रूप दिया गया है. ऐसे में पति अपने दायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने पति की उस दलील को ठुकरा दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि व्यवसाय बंद होने के कारण उनके आय का स्रोत नहीं रहा है, ऐसे में वह अलग रह रही पत्नी और नाबालिग बच्चों के लिए गुजारा भत्ता नहीं दे सकते हैं.

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि प्रतिवादी (पति) शारीरिक रूप से सक्षम है, ऐसे में उन्हें उचित तरीके से पैसे कमाकर पत्‍नी और बच्‍चों के भरण-पोषण का दायित्व निभाना पड़ेगा. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 का मकसद ससुराल छोड़ कर अलग रहने वाली महिलाओं को वित्तीय मदद मुहैया कराना है, ताकि वह खुद अपनी और बच्चों का अच्‍छी तरह से भरण-पोषण कर सके.