Happy Women's Day: Equal Remuneration Act कैसे बना रहा महिलाओं को सशक्त- जानिए
नई दिल्ली: आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपना दमखम दिखा रहीं हैं, लेकिन उनका घर से आसमान में प्लेन उड़ाने तक का सफर इतना आसान नहीं रहा है. हमारे समाज में जब महिलाओं ने घर से बाहर निकल कर नौकरी पेशा करना शुरू किया, तो उन्होंने कई तरह की चुनौतियों को अपने सामने खड़ा पाया. लिंग के आधार पर उनकी काबिलियत पर शक किया गया, ज्यादा काम करने के बावजूद सैलरी में भी भेदभाव किया गया. लेकिन धीरे-धीरे ऐसे मामले कोर्ट तक पहुंचने लगे जिसके बाद महिलाओं के लिए अच्छा वर्किंग माहौल बनाने की दिशा में कई तरह के प्रशासनिक कदम उठाए गए. इस तरह के भेदभाव संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों में देखे गए हैं .
महिलाओं और पुरुषों को समान काम के लिए एक समान वेतन देने के लिए समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976’ पारित किया गया. हालांकि यह अधिनियम मूलत महिलाओं के लिए नहीं बनाया गया था, लेकिन यह विशेषतौर पर महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने में मदद करता है. आईए जानते हैं यह अधिनियम क्या कहता है.
समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976
समान पारिश्रमिक अधिनियम (Equal Remuneration Act ) 1976 पूरे भारत में लागू होता है. केन्द्र और राज्य सरकार के पास यह शक्ति है कि इसे विभिन्न योजनाओं में लागू करें. समान काम के लिए समान मजदूरी यानि समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 के तहत जिस काम को एक महिला और पुरुष दोनों कर रहें हैं यानि एक ही प्रकृति के काम दोनों कर रहें हैं या करते हैं उन्हें एक समान वेतन मिलना चाहिए.
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यहां पारिश्रमिक से तात्पर्य उस आधिकारिक मजदूरी, वेतन और अतिरिक्त उपलब्धियों से है, जो नकद या वस्तु के रूप में हो, सभी काम करनेवाले को बिना किसी लैंगिक भेदभाव के मिले.
वहीं दूसरी ओर एक ही काम और समान प्रकृति के काम का तात्पर्य ऐसे काम से है जिसमें कौशल, प्रयत्न तथा उत्तरदायित्व एक जैसे हैं. जब काम का दायित्व महिला और पुरुष द्वारा किया जाता है. महिला और पुरुष, दोनों के कौशल, कोशिश और जिम्मेदारी में कोई अंतर नहीं होता है.
इस अधिनियम के अनुसार महिलाएं किसी भी क्षेत्र में काम करने के लिए कानूनी रूप से स्वतंत्र हैं. उनको उसके लिए समान अवसर मिलें. महिला व पुरुष में नौकरी आवेदन और सेवा शर्तों में कोई भी भेदभाव नहीं किया जाएगा. यह ऐक्ट किसी भी रूप में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, पूर्व कर्मचारी के आरक्षण को प्रभावित नहीं करता है.
बाबा साहब आंबेडकर ने की थी समान काम और समान वेतन की मांग
भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर ने समान काम के लिए समान वेतन की बात उठाई थी. जब डॉ आंबेडकर संविधान का मसौदा तैयार कर रहे थे, तो उन्होंने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के भाग-4 में महिला और पुरुषों दोनों को समान काम के लिए समान वेतन के लिए अनुच्छेद 39(d) के लिए प्रमुख प्रावधान दिया. वहीं भाग पांच में उन्होंने पुरुष और महिलाओं को भर्ती करते समय कोई विभेद ना किया जाए इसका प्रावधान किया गया है.