अदालतों में गवाह अब ऐसे लेते हैं शपथ, जानिए क्या है नया नियम
नई दिल्ली: आज अगर आप किसी से पूछें कि अदालत में गवाही देने से पहले शपथ कैसे ली आती है तो अधिकतर लोगों का जवाब होगा कि गीता, कुरान या बाइबल पर हाथ रखकर लोग शपथ लेते हैं. कई लोगों के बीच आज भी ऐसी धारणा इसलिए बनी हुई हैं क्योंकि हम सभी बचपन से फिल्मों में यही देखते हुए आ रहे हैं कि जज साहब जब किसी को अदालत में गवाही देने के लिए बुलाते हैं तो कटघरे में खड़े व्यक्ति को गवाही देने से पहले गीता, कुरान या बाइबल पर हाथ रख कर ये शपथ दिलाई जाती थी.
लेकिन फिल्मी दुनिया और हकीकत में बहुत फर्क है अब शपथ लेने की प्रक्रिया बदल गई है. पहले समझतें हैं की कानून में शपथ (Oath) क्या है, इसका कितना महत्त्व है कानून की नज़र में.
कानूनी भाषा में शपथ एक औपचारिक वादा है जो कोई व्यक्ति अदालत से करता है. ऐसे में शपथ लेने के बाद वो व्यक्ति झूठ नहीं बोल सकता है. पहले लोगों को उनके धर्म के अनुसार उन्हें मार्ग दर्शन दिखाने वाले ग्रंथों पर हाथ रख कर शपथ दिलाई जाती थी. जैसे गीता को हिंदू धर्म में एक ऐसा ग्रंथ माना गया है जिसमें जीवन के लिए मार्गदर्शन उपलब्ध कराया गया है. इस्लाम में कुरान और क्रिश्चियनिटी में बाइबल को समान रूप से मानव जीवन को मार्गदर्शन करने वाले धर्म ग्रंथ के रूप में माना गया है. लेकिन अब यह नियम बदल चुकें हैं . .
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कैसे हुई थी शपथ की शुरुआत
जानकारी के अनुसार हमारे देश में मुगल शासकों ने धार्मिक किताबों पर हाथ रखकर शपथ लेने की प्रथा की शुरुआत की थी. तब यह प्रक्रिया केवल एक दरबारी प्रथा थी यह कोई कोई कानून नहीं था. मुगल शासकों के इस प्रथा को अंग्रेजों ने कानून का रूप दे दिया और भारतीय शपथ अधिनियम, (Indian Oaths Act),1873 को पास किया गया और सभी अदालतों में लागू कर दिया .
इस एक्ट के अनुसार, जो लोग हिंदू संप्रदाय के थे वो गीता पर हाथ रखकर, जितने भी मुस्लिम संप्रदाय के लोग थे वो कुरान पर हाथ रख कर, और जो लोग ईसाई थे अगर अदालत उन्हे शपथ लेने के लिए बुलाती थी तो वो बाइबल पर हाथ रख कर शपथ लेते थे.
कब बदला नियम
जब हमारा देश आजाद हुआ उसके बाद भी अदालतों में कसम खाने की यह प्रथा जारी रही लेकिन वर्ष 1969 में किताब पर हाथ रखकर कसम खाने की यह प्रथा को समाप्त कर दिया गया, जब लॉ कमीशन ने अपनी 28वीं रिपोर्ट सौंपी.
देश में भारतीय ओथ अधिनियम, 1873 में सुधार का सुझाव दिया गया और इसके जगह पर ओथ्स एक्ट 1969 को पास किया गया और नए नियम के तहत पूरे देश में एक समान शपथ कानून को लागू किया गया.
अब ऐसे ली जाती है शपथ
नए कानून के अनुसार, अब शपथ सिर्फ एक सर्वशक्तिमान भगवान के नाम पर दिलाई जाती है, यानि अब शपथ को सेक्युलर बना दिया गया है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी या ईसाई सभी धर्म के लोग नए नियम के तहत ही शपथ लेते हैं.
अब सभी के लिए इस प्रकार की शपथ है, “मैं ईश्वर के नाम पर कसम खाता हूं / ईमानदारी से पुष्टि करता हूं कि जो मैं कहूंगा वह सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं कहूंगा.”
बच्चों के लिए अलग नियम
गवाह कोई भी हो सकता है कोई बड़ा भी और कोई बच्चा भी. कई बार अदालत में बच्चे भी गवाह के रूप में जाते हैं. ओथ एक्ट,1969 में तो शपथ लेने के जो नियम बनाए गए हैं उसके अंतर्गत यदि गवाह 12 साल (Child Witness) से कम उम्र का है तो उसे किसी प्रकार की शपथ नहीं लेनी होगी क्योंकि कानून के नजर में बच्चे मासूम होते हैं, बुराई से दूर होते हैं, वो झूठ नहीं बोलते हैं.
शपथ लेने के दौरान झूठ बोलने पर कानून
वर्तमान में गवाह के द्वारा अदालतों में दो तरह से शपथ ली जाती है पहला, जज के सामने मौखिक रूप से और दूसरा, शपथ पत्र पेश करके. शपथ लेते वक्त गवाह सत्य कहने की कसम खाता है लेकिन कुछ गवाह गलत मंशा के साथ सामने वाले को फंसाने के लिए अदालत में झूठा बयान देते हैं. जो की एक क्राइम है. ऐसे अपराधों को रोकने के लिए और लोग सच बोलें और सच को बाहर आने दें इसलिए कानून बनाए गए हैं .
IPC की धारा 193
किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी भी चरण में यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठी गवाही देता है तो झूठी गवाही देने वाला व्यक्ति किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा का भागी होगा जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
IPC की धारा 196
जो कोई भी किसी ऐसे साक्ष्य को, जिसके बारे में वह जानता है कि वह झूठा या मनगढ़ंत है, भ्रष्ट रूप से सच्चे या वास्तविक साक्ष्य के रूप में उपयोग करता है या उपयोग करने का प्रयास करता है, तो उसे उसी तरह दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने मिथ्या साक्ष्य दिया या गढ़ा हो.
IPC की धारा 199
घोषणा में किया गया झूठा बयान जो कानून द्वारा साक्ष्य के रूप में प्राप्य है. यदि कोई व्यक्ति जो साक्ष्य प्राप्त करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है, एक झूठा बयान देता है, जिसे वह जानता है कि यह सच नहीं है और ऐसा बयान मामले में किसी महत्वपूर्ण तथ्य से संबंधित है, उसे उसी तरह से दंडित किया जाता है जैसे कि उसने झूठा सबूत दिया हो.