Marital Rape क्यों नहीं है भारत में एक दंडनीय अपराध? जानें क्या कहता है कानून
नई दिल्ली: महिलाओं के खिलाफ होने वाली ऐसी कई घटनाएं और गतिविधियां हैं, जिन्हें कानून की नजर में, दुनियाभर में अपराध माना गया है और जिनको करने पर कड़ी सजा काटनी पड़ सकती है। ऐसी ही एक गतिविधि वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप (Marital Rape) है जो कई देशों में एक कानूनी अपराध है।
क्या आप जानते हैं कि भारत में, कानून की नजर में मैरिटल रेप अपराध नहीं है? इसे अपराध की श्रेणी में क्यों नहीं रखा जाता है, इसको लेकर कानूनी प्रावधान क्या कहते हैं और इसकी चर्चा इस समय क्यों हो रही है, आइए सबकुछ जानते हैं.
वैवाहिक बलात्कार?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि क्योंकि देश में वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है, इसके खिलाफ कई याचिकाएं दायर हुई हैं जिन्हें इस साल जनवरी में भी उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) में सुना गया था।
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यह मुद्दा एक बार फिर इसलिए उठा है क्योंकि इसी से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान देश के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud), न्यायाधीश पी एस नरसिम्हा (Justice PS Narasimha) और न्यायाधीश मनोज मिश्रा (Justice Manoj Mishra) की पीठ ने यह नोट किया कि उन्होंने अब तक भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद (2) की चुनौती का समाधान नहीं किया है।
इसपर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि संविधान पीठ की सुनवाई जब आज खत्म हो जाएगी, तो वो मैरिटल रेप को लेकर दायर याचिकाओं की तारीख तय कर देंगे और इस सिलसिले में वो आज ही रेजिस्ट्रार से भी बात करेंगे।
भारतीय कानून के तहत 'रेप' की परिभाषा
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (Section 375 of The Indian Penal Code) 'बलात्कार' (Rape) को लेकर है। इस धारा के तहत अगर महिला की रजामंदी के बिना, जबरदस्ती से, धमकाकर, धोखे से, नशे में धुत करके, ऐसी स्थिति में जब वो अपनी कन्सेंट अभिव्यक्त न कर सके या जब उसकी उम्र 18 साल से कम हो, पुरुष-
- अपने लिंग को किसी भी हद तक, किसी महिला की योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश कराता है या उसे अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है।
- किसी महिला की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में किसी भी हद तक कोई वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा, जो लिंग नहीं है, डालता है या उसे अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है।
- किसी महिला के शरीर के किसी भी हिस्से में हेरफेर करता है ताकि उसकी योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भी हिस्से में प्रवेश किया जा सके या उसे अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर किया जा सके।
- किसी महिला की योनि, गुदा, मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है या उसे अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ ऐसा करने के लिए मजबूर करता है।
उसे बलात्कार यानी रेप माना जाता है।
Marital Rape क्यों नहीं है दंडनीय अपराध?
आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में, बलात्कार की परिभाषा के तहत वैवाहिक बलात्कार का कहीं कोई जिक्र नहीं है। इस धारा के कुछ अपवाद हैं जिनमें दूसरा अपवाद यह स्पष्ट करता है कि मैरिटल रेप भारत में अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
आईपीसी की धारा 375 का अपवाद (2) यह कहता है कि यदि कोई आदमी अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है और पत्नी की उम्र 15 साल से कम नहीं है तो यह रेप नहीं माना जाएगा। यह अपवाद कहता है कि पत्नी की रजामंदी का महत्व नहीं है और विवाह के बाद पति अगर जबरदस्ती भी शारीरिक संबंध बनाता है तो वो बलात्कार नहीं होगा।
इस अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं कोर्ट में दायर की गई हैं जिनमें मैरिटल रेप को देश में अपराध मानने की बात की गई है।
हाईकोर्ट ने मैरिटल रेप के मामले में पत्नी के हक में सुनाए फैसले
हालांकि यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता, फिर भी कई ऐसे उच्च न्यायालय हैं, जिन्होंने मैरिटल रेप के मामलों में पत्नी के हक में फैसले सुनाए हैं।
मार्च, 2022 में कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) के न्यायाधीश एम नागाप्रसन्ना (Justice M Nagaprasanna) ने एक पति के खिलाफ अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने के आरोपों को रद्द करने से इनकार कर दिया था। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने यह कहा था कि शादी का बंधन किसी भी आदमी को कोई खास अधिकार नहीं प्रदान करता है और उन्हें अपनी पत्नी के साथ शोषण या क्रूरता करने का लाइसेंस नहीं देता है। इस फैसले पर जुलाई, 2022 में उच्चतम न्यायालय ने स्टे कर दिया था।
बता दें कि मैरिटल रेप का एक मामला मई, 2022 में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) में आया था जिसमें न्यायाधीश राजीव शकधर (Justice Rajiv Shakdher) और न्यायाधीश सी हरी शंकर (Justice C Hari Shankar) की खंडपीठ ने एक स्प्लिट वर्डिक्ट दिया था। जहां जस्टिस शकधर ने मैरिटल रेप को अपवाद बताने वाले प्रावधान को असंवैधानिक बताया था वहीं जस्टिस शंकर ने इसे अपहोल्ड किया था। बता दें कि इस खंडित फैसले के खिलाफ याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पिछले साल सितमर में उच्चयम न्यायालय ने 'चिकित्सीय गर्भ समापन अधिनियम, 1971' (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) के संदर्भ में यह कहा था कि महिलाओं को जबरदस्ती गर्भधारण (Forceful Pregnancy) से बचाने के लिए 'वैवाहिक बलात्कार' को 'रेप' की परिभाषा के तहत मानना जरूरी है।