आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 क्यों बनाया गया, जानिए क्यों है ये महत्वपूर्ण
नई दिल्ली: तुर्की और सीरिया सहित चार देशों में भूकंप ने अपना तांडव मचाया हुआ है. भूकंप के रूप में आई इस प्राकृतिक आपदा ने कई जिंदगियों को समाप्त कर दिया है, तो वही सैकड़ो इमारतों को धराशायी भी किया. प्रकृति की तरफ से मिलने वाली इन आपदाओं का अनुमान लगाना बेहद मुश्किल है लेकिन बेहतर उपायों के जरिए इन आपदाओं से हुए नुकसान कम किया जा सकता है. दुनिया भर के देशों नें इस तरह की आपदा से निपटने के लिए अपने - अपने देशों में न केवल आपदा प्रबंधन के लिए विशेष विभाग गठित कर रखें है बल्कि ऐसे समय में आम नागरिकों की सुरक्षा के कई कानून भी बनाए है.
हमारे देश में भी इन परिस्थितियों से निपटने के लिए प्राकृतिक आपदा अधिनियम 2005 बनाया गया है. आइए समझते हैं इस अधिनियम के तहत क्या प्रावधान किए गए है.
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 ( Disaster Management Act, 2005) की धारा 2 (d) में आपदा को परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार,आपदा का तात्पर्य किसी भी क्षेत्र में प्राकृतिक या मानव निर्मित कारणों से उत्पन्न "तबाही, दुर्घटना एवं गंभीर घटना" से है.
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एक्ट ऑफ गॉड या लैटिन भाषा में विस मेजर, को भूकंप, बाढ़, या बवंडर जैसी प्राकृतिक स्थितियों के कारण भीषण और इंसान के काबू से बाहर वाली घटनाओं के तौर पर परिभाषित किया गया है."
आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
इस अधिनियम को साल 2005 में आपदाओं के कुशल प्रबंधन और इससे जुड़े अन्य मामलों के लिए पारित किया गया था. हालांकि इसे जनवरी 2006 में लागू किया गया. साल 2021 में, गृह मंत्रालय ने आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 को लागू करके ऑक्सीजन ले जाने वाले वाहनों के मुक्त अंतर-राज्य संचालन का आदेश दिया गया.
अधिनियम के तहत सरकार ने कोविड-19 महामारी को आपदा घोषित किया गया था और आवश्यकतानुसार दिशा-निर्देश भी जारी किए. राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन भी इसी अधिनियम के तहत लगाया गया था.
अधिनियम का उद्देश्य
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य आपदा के समय देश के विभिन्न क्षेत्रों में शांति बनाए रखते हुए पुनर्निर्माण और आपदा से हुए नुकसान के दौरान आम लोगों को तेजी से राहत पहुंचाना है.
इस अधिनियम के तहत आपदा के समय आम नागरिकों के कई अधिकारों को सीमित करने की ताकत होती है. जैसे कोविड के समय देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा के लिए लॉकडाउन लगाना जरूरी था.
ऐसे समय में जब सामूहिक सुरक्षा के लिए व्यक्तिगत आजादी के अधिकार को सीमित किया गया था, क्योंकि ऐसा नहीं किए जाने की स्थिति में पूरे देश में अफरा तफरी की स्थिति बन जाती है और कोविड पर नियंत्रण करना मुश्किल हो जाता.
इसके साथ ही इस अधिनियम का उद्देश्य आपदा प्रबंधन में शमन रणनीति तैयार करना. यानि आपदा आने की स्थिति में या आने के बाद उससे निपटने के लिए योजना बनाना, क्षमता निर्माण करना आदि शामिल है यानि कि एक टीम तैयार करना, जो आपदा के वक्त लोगों को बचा सके.
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं
नोडल एजेंसी: यह अधिनियम गृह मंत्रालय को समग्र ( पूरा) राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन को संचालित करने के लिए नोडल मंत्रालय के रूप में नामित करता है.
संस्थागत संरचना: यह राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तरों पर संस्थानों की एक व्यवस्थित संरचना बनाए रखता है.
महत्त्वपूर्ण संस्थाएं
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण: यह आपदाओं के प्रति समय पर और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये नीतियां बनाते हैं, योजनाएं तैयार करने के साथ- साथ दिशा-निर्देश तैयार करने के लिए यह एक शीर्ष निकाय है.
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 8 के तहत राष्ट्रीय प्राधिकरण को उसके कार्यों के निष्पादन में सहायता देने के लिये इसका गठन किया गया है.इस समिति को आपदा प्रबंधन के लिए समन्वयकारी और निगरानी निकाय के रूप में कार्य करने, राष्ट्रीय योजना बनाने और राष्ट्रीय नीति का कार्यान्वयन करने का उत्तरदायित्व दिया गया है.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान: यह संस्थान प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के लिये प्रशिक्षण देता है और क्षमता विकास कार्यक्रमों को संचालित करता है.
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल: यह आपदा के समय विशेषीकृत कार्रवाई करने में सक्षम एक प्रशिक्षित पेशेवर यूनिट है.
राज्य और ज़िला स्तरीय संस्थाएं
इस अधिनियम के तहत राज्य और ज़िला स्तर के अधिकारियों को भी राष्ट्रीय योजनाओं को लागू करने और स्थानीय योजनाओं को तैयार करने के लिये ज़िम्मेदारी दी गई है. आपदा के समय अंतिम छोर तक लोगो को राहत पहुंचाने के उद्देश्य से ही राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण स्थापित किए गए है.
आपदा के समय अधिनियम लागू होने या ना होने की स्थिति में भी जिला कलेक्टर जरूरत के अनुसार अधिकारियों और यहां तक की आम लोगो को भी व्यवस्था में शामिल कर सकते है.
सजा
इस अधिनियम के कई अनुभागों के उल्लंघन पर दंड का भी प्रावधान किया गया है यानि की आपको सजा भी मिल सकती है.
आपदा के समय लोगों के हित के लिए जिम्मेदार लोगों की और से कुछ आदेश दिए जाते हैं. जिनका पालन ना करने से भारी क्षति हो सकती है, तो ऐसे में आदेशों का पालन ना करने वाला व्यक्ति सजा का पात्र होगा.
इस अधिनियम की 'धारा 51' के अनुसार एक साल की जेल की सजा दोषी को हो सकती है या जुर्माना लगाया दजा सकता है अथवा दोनों सज़ा एक साथ दी जा सकती है और अगर आदेश का पालन ना करने से किसी की मृत्यु हो जाती है तो उत्तरदायी व्यक्ति को दो साल तक की जेल हो सकती है.
पूर्व प्राकृतिक आपदाएं
कशमीर बाढ़ आपदा: सितंबर 2014, में झेलम नदी का पानी लगातार मूसलाधार बारिश के कारण काफी बढ़ गया था इसीलिए कश्मीर क्षेत्र के रिहायशी इलाकों में पानी घुस गया था. तबाही की इस आपदा में करीब 550 लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी और लगभग 5000 करोड़ से 6000 करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ था.
उत्तराखंड फ्लैश फ्लड, 2013: इसने राज्य के 13 में से 12 जिलों को प्रभावित किया था. रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ और चमोली ये चार जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. इस त्रासदी में करीब 5, 700 लोगों की भारी बारिश और बड़े पैमाने पर भूस्खलन के कारण जान चली गई थी. इसे हमारे देश के इतिहास में सबसे विनाशकारी बाढ़ माना जाता है. लोगों ने 14 से 17 जून तक बाढ़ और भूस्खलन का दंश झेला था और लगभग 1 लाख तीर्थयात्री केदारनाथ मंदिर में फंस उस वक्त फंसे हुए थे.
बिहार बाढ़ आपदा, 2007: साल 2007 में जब बारिश ने 30 साल का रिकॉर्ड तोड़ा था तब बिहार में लगभग 1,287 लोगों ने अपना दम तोड़ा था और हजारों पशुओं की जान चली गई थी.