वसीयत को कौन दे सकता है चुनौती और क्या है कानूनी तरिका? जानिये
नई दिल्ली: अक्सर सुनने में आता है कि संपत्ति के लालच में हिस्सेदार वसीयत के साथ छेड़छाड़ करते हैं जिससे बाकी के हिस्सेदारों के साथ नाइंसाफी होती है और घरों में विवाद भी हो जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसे में आपको क्या कानूनी कदम उठाना चाहिए.
अगर आपको शक है कि वसीयत के छेड़छाड़ किया गया है या यह अमान्य है या फिर आपको लगता है कि आपको जितना हक मिलना चाहिए उतना नहीं मिला है, तो ऐसे में आप वसीयत को कानूनी चुनौती दे सकते हैं. लेकिन ऐसा करने के लिए कुछ आधार होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य़ होता है. ये वो आधार होते हैं जिसके बल पर आप वसीयत का विरोध कर सकते हैं.
क्या होती है वसीयत
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज है जिसमे बताया जाता है कि कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा संपत्ति किसके नाम किया गया है या मरने के बाद संपत्ति पर किसका हक होगा. इसके अलावा शेयरों और संपत्ति का विभाजन आदि से संबंधित जानकारी को शामिल किया जाता है.
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वसीयत को वैध कानूनी दस्तावेज बनाने के लिए भारतीय पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत कराना पड़ता है. वसीयतकर्ता की मृत्यु हो जाने के बाद, परिवार का कोई भी सदस्य अदालत से वसीयत का प्रोबेट प्राप्त कर सकता है. प्रोबेट विधि के द्वारा अदालत की मुहर के तहत एक वसीयत को प्रमाणित किया जाता है.
प्रोबेट इस बात का निर्णायक सबूत है कि वसीयत को वैध रूप से निष्पादित किया गया था और यह वास्तविक और मृतक की अंतिम वसीयत है. कह सकते हैं कि यह वसीयत की प्रमाणित प्रति होती है.
अदालत तब उत्तराधिकारियों से आपत्तियां मांगती है, यानि नोटिस के माध्यम से पूछती है कि क्या किसी को कोई आपत्ति है. तो यदि कोई आपत्ति दर्ज नहीं करता है तो वसीयत प्रभावी हो जाती है.
कब दे सकते हैं वसीयत को चुनौती
अगर दस्तावेज़ पंजीकृत नहीं है, तो आप वसीयत को चुनौती दे सकते हैं. इसके लिए आपके पास आवश्यक सहायक दस्तावेज और वैध कारण होने चाहिए.
ऐसे स्थिति में आप वसीयत को चुनौती देते हुए मामले को अपने पक्ष में कर सकते हैं. कुछ ऐसे आधार हैं जिन पर यदि वसीयत को चुनौती दी जाती है, तो इसके किसी भाग में या पूर्ण रूप को अमान्य किया जा सकता है.
वसीयत को चुनौती देने की प्रक्रिया
- 1. वसीयत को चुनौती देने के लिए सबसे पहले आपको सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर करना होगा. दस्तावेज़ पंजीकरण से संबंधित सभी मामले भारतीय पंजीकरण अधिनियम की धारा 18 के तहत दायर किए जाते हैं.
- 2. अदालत में मामला दर्ज करने के बाद वकालतनामा जारी करना होगा. यह एक वकील को अदालत में अपना मामला पेश करने का अधिकार देने वाला दस्तावेज़ होता है. साथ ही आपको कोर्ट फीस का भुगतान करना होगा.
- 3. इन सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने बाद अदालत आपके मामले को स्वीकार करेगी. उसके बाद कार्यवाही शुरू हो जाएगी. अदालत पहले विरोधी पक्ष को अदालत में पेश होने के लिए एक नोटिस जारी करेगी. कार्यवाही के दौरान, चुनौती देने वाले को यह साबित करना होगा कि या तो वसीयत अभिप्रेत नहीं थी या अमान्य थी यानि एक मजबूत कारण प्रस्तुत करना होगा.
- 4. इसके बाद आपको अदालत में सहायक दस्तावेज दाखिल करना होगा. सुनवाई को दौरान अदालत आपसे आपके मामले का समर्थन करने वाले दस्तावेज पेश करने के लिए कहेगी जो कि आपको प्रस्तुत करना होगा. सुनवाई के बाद अगर अदालत को लगा कि आपका आरोप सही था तो वसीयत पूरी तरह से या इसके कुछ हिस्सों को अमान्य करार कर दिया जाएगा.
संपत्ति का बंटवारा फिर निर्वसीयतता कानून के तहत किया जाएगा. अगर आपको वसीयत से कोई समस्या है, तो तुरंत मामला दर्ज करने का सुझाव दिया जाता है, क्योंकि एक बार वसीयत निष्पादित हो जाने के बाद, आपको और अधिक परेशानी हो सकती है.
कौन दे सकता है वसीयत को चुनौती
- 1. वह लोग जो मृतक की संपत्ति के वारिस होतें हैं या उन्हें वारिस के रूप में नामित किया जाता है. मुख्य लाभार्थी वारिसों में बच्चे, पति-पत्नी, दादा-दादी, भाई-बहन और माता-पिता शामिल हैं. उत्तराधिकारी वसीयत का विरोध कर सकते हैं यदि उन्हें उनका सही हिस्सा नहीं मिलता है या विरासत से हटा दिया जाता है.
- 2. जो अवयस्क हैं वह वसीयत नहीं कर सकते क्योंकि कानूनी कार्यवाही करने के लिए आयु का 18 वर्ष होना अनिवार्य है, लेकिन उनके बदले उनके माता पिता मुकदमा दायर कर सकते हैं.
- 3. वसीयत कर्ता वसीयत में विश्वास समुदायों, दोस्तों, दान, विश्वविद्यालयों, आदि को भी शामिल कर सकता है. इन लाभार्थियों को वसीयत को चुनौती देने का पूरा अधिकार है.