गिरफ्तारी वारंट कब जारी होता है, और CrPC में इसके एग्जीक्यूशन की क्या प्रक्रिया है?
नई दिल्ली: गिरफ्तारी को लेकर आपने अक्सर सुना होगा कि किसी व्यक्ति के ख़िलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी हुआ है. फिल्मों में भी आपने देखा होगा कि पुलिस अरेस्ट करने के लिए वारंट लेकर आती है, लेकिन सवाल यह उठता है कि ये वारंट कौन जारी करता है कैसे जारी किया जाता है. इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1908 में कई प्रावधान किया गया है.
आपको बता दें कि गिरफ्तारी का वारंट हमेशा किसी अदालत या फिर सेमी ज्यूडिशियल कोर्ट (Semi-Judicial Court) जैसे कलेक्टर, एसडीएम इत्यादि द्वारा जारी किया जाता है. इनके अलावा किसी भी व्यक्ति के पास गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार नहीं है.
वारंट कब जारी किया जाता है
किसी मामले में अगर अदालत को किसी व्यक्ति का बयान लेना है तब भी वह उस संबंधित व्यक्ति को गिरफ्तारी का वारंट जारी कर सकती है.
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वहीं अगर कोई व्यक्ति किसी मामले में आरोपी है और वह व्यक्ति अदालत के सामने उपस्थित नहीं हो रहा है जिससे कार्यवाही को आगे चलाया जा सके तब अदालत गिरफ्तारी का वारंट जारी कर उस संबंधित व्यक्ति को अदालत के सामने पेश होने के लिए बुलाती है.
CrPC की धारा 72
अदालत वारंट बनाकर संबंधित थाना क्षेत्र के थाना प्रभारी के नाम पर जारी कर यह आदेश देती है कि किसी भी सूरत में उक्त नामित व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश किया जाए.
CrPC की धारा 72 में यह प्रावधान किया गया है कि अदालत किसी भी व्यक्ति को ऐसा वारंट जारी कर सकती है जो वारंट में नामित व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए सक्षम होगा.
जब किसी मामले में अदालत किसी के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी करती है तब उस वारंट की अवधी दो स्थितियों में ही समाप्त होती है. पहली स्थिति में जब पुलिस नामित व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश कर देती है तब, वहीं दूसरी वारंट में नामित व्यक्ति खुद को सरेंडर कर दे.
गिरफ्तारी वारंट में जेल जाना होता है या नहीं
व्यक्ति को जेल भेजना है या नहीं यह उस मूल प्रकरण पर निर्भर करता है जिसके लिए किसी व्यक्ति को अदालत ने बुलाया है. गैर जमानती अपराधों में व्यक्ति को जेल ही जाना पड़ता है. वहीं किसी जमानती अपराध में जेल नहीं जाना पड़ता है.
पुलिस का काम केवल अदालत द्वारा जारी किए गए गिरफ्तारी के वारंट पर व्यक्ति को गिरफ्तार कर अदालत के सामने पेश करना है. सीधे जेल भेजने की शक्ति पुलिस के पास नहीं होती है. लेकिन वह उक्त वारंट में नामित व्यक्ति को चौबीस घंटे तक थाने में अपनी अभिरक्षा में रख सकती है.