अभिव्यक्ति की आजादी कब बन जाती है राजद्रोह, कानून के तहत कहां तक है इसकी सीमा
नई दिल्ली: हर भारतीय को देश में कई तरह के अधिकार दिए गए हैं, आजादी दी गई है और इनके बदले में उन्हें कुछ कर्तव्य भी निभाने होते हैं। देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की बात करें तो उनमें 'भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार' (Right to Freedom of Speech and Expression) शामिल है।
इस अधिकार के तहत क्या कुछ आता है, इस अधिकार की सीमा क्या है और इस अधिकार की वो कौन सी पतली रेखा है जिसे शख्स आसानी से पार करके राजद्रोह के क्षेत्र में कदम रख सकता है, जानिए...
भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1) (Article 19(1) of The Constitution of India) यह कहता है कि देश के हर नागरिक के पास बोलने और अपने मन की बात को अभिव्यक्त करने की आजादी का अधिकार होगा। यह अधिकार सिर्फ भारतीयों के लिए है और इसके तहत एक शख्स अपने मन की बात और किसी भी विषय पर अपने मत को स्वतंत्रता से, अपनी पसंद के माध्यम के जरिए अभिव्यक्त कर सकता है।
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भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध
बता दें कि अनुच्छेद 19 में निहित ये 'भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार' एक पूर्ण अधिकार (absolute right) नहीं है; यह अधिकार कुछ 'उचित प्रतिबंधों' (reasonable restrictions) के साथ आता है जो अनुच्छेद 19(2) में स्पष्ट किये गए हैं।
संविधान सरकार को यह अनुमति देता है कि वो इस भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार पर तब प्रतिबंध लगा सके जब उसका असर देश की अखंडता और संप्रभुता पर पड़ता है या किसी भी हाल में वो देश के मूल्यों को खंडित करे।
अभिव्यक्ति की आजादी कब बन जाती है राजद्रोह?
अभिव्यक्ति की आजादी सभी को है और उस अधिकार को इस्तेमाल करने का हक सबके पास है लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी और राजद्रोह को एक बेहद पतली रेखा एक दूसरे से अलग करती है जो कई बार बहुत आसानी से मिट जाती है। अदालत में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर ऐसी परिस्थितियों ने जन्म लिया है जिनमें बात राजद्रोह की आ जाती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (Section 124A of The Indian Penal Code) 'राजद्रोह' (Sedition) की बात करती है। 'राजद्रोह' वो है जब कानून एक शख्स को इसलिए सजा देती है क्योंकि वो सरकार के प्रति अवमानना या नफरत का भाव उत्पन्न करने की कोशिश करता है। ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं जहां 'अपना मत' या 'मन की बात' कहना इंसान को भारी पड़ गया क्योंकि उसकी गिनती राजद्रोह में होने लगी।
सरकार पर टिप्पणी करने और उनकी आलोचना करना 'भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी' है लेकिन अगर इससे लोगों में नफरत के बीज बोए जाएंगे, लोगों को सरकार के खिलाफ भड़काया जाएगा तो ये राजद्रोह में तब्दील हो जाता है; यहां, इस अधिकार की सीमा समझना जरूरी है।
K'taka HC में आया ये मामला
हाल ही में, कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) ने इसी मामले से संबंध रखने वाली एक याचिका को खारिज किया था। एक स्कूल और वहां के कुछ विद्यार्थियों के खिलाफ राजद्रोह का एक मामला उच्च न्यायालय में दर्ज हुआ क्योंकि उन्होंने एक नाटक किया था जो Citizenship Amendment Act (CAA) और National Register of Citizens (NRC) पर था। इस नाटक में सरकार और प्रधानमंत्री को लेकर कुछ आपत्तिजनक स्टेटमेंट्स दिए गए थे।
इस याचिका को उच्च न्यायालय ने खारिज तो कर दिया लेकिन उन्होंने साथ में यह भी कहा कि स्कूल में बच्चों को सरकार की योजनाओं की आलोचना नहीं सिखाई जानी चाहिए और नाटक के दौरान उनका यह कहना कि प्रधानमंत्री को फुटवेयर से मारा जाना चाहिए, वो न सिर्फ अपमानजनक था बल्कि गैर-जिम्मेदाराना भी था।
इस सबके बावजूद कर्नाटक हाईकोर्ट ने यह कहकर याचिका को खारिज किया स्कूल और बच्चों का उद्देश्य समाज में अराजकता फैलाने, समाज में हिंसा का बीज बोने या कानून व्यवस्था को खराब करना नहीं था।