किसी व्यक्ति को अदालत कब Proclaimed Offender घोषित करती है, इससे जुड़े CrPC में क्या हैं प्रावधान?
नई दिल्ली: आपराधिक कार्यवाही में अदालत के पास किसी व्यक्ति की उपस्थिति को सुरक्षित करने के दो प्रमुख तरीके होते हैं, पहला समन जारी करना और दूसरा वारंट जारी करना है। जब एक समन जारी किया जाता है, तो यह व्यक्ति का कर्तव्य बन जाता है कि वह खुद को अदालत में पेश करें, जबकि वारंट के निष्पादन (execution) में, आमतौर पर एक पुलिस अधिकारी को आदेश दिया जाता है कि वह व्यक्ति को गिरफ्तार करें और उसे अदालत में पेश करें।
लेकिन जब पुलिस आरोपी को गिरफ्तार करने जाती है तो पता चलता है कि वो अपने स्थान से फरार है और फिर पुलिस न्यायालय द्वारा उसे भगोड़ा घोषित करवाती है । आइये जानते है कब किसी अपराधी को भगोड़ा घोषित किया जाता है ,और क्या है इससे जुड़े कानूनी प्रावधानों ।
कोई अपराधी कब भगोड़ा घोषित होता है?
अगर किसी आरोपी के खिलाफ कोर्ट की ओर से गैर जमानती वारंट जारी हो जाता है और कई बार नोटिस और समन मिलने के बाद भी अगर आरोपी कोर्ट में या पुलिस के सामने सरेंडर नहीं करता है तो सीआरपीसी की धारा 82 के तहत फरार आरोपी की घोषणा की जाती है.
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भले ही आम भाषा में ऐसे व्यक्ति को 'भगोड़ा' कहा जाता है, लेकिन कानून की भाषा में इसे 'फरार व्यक्ति की उद्घोषणा' जैसे शब्दो का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे मामलों में अगर आरोपी देश छोड़कर भागता है या भागने की कोशिश करता है, तो उसे भगोड़ा घोषित कर दिया जाता है।
सीआरपीसी की धारा 82 की उपधारा (2) उस प्रक्रिया से संबंधित है जिसके माध्यम से एक उद्घोषणा जारी की जाती है। एक लिखित उद्घोषणा के माध्यम से, अदालत आरोपी को एक खास स्थान पर और एक विशिष्ट समय पर पेश होने का आदेश देती है। यह उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से 30 दिनों से कम नहीं होना चाहिए।
इसे कस्बे या गाँव के किसी प्रमुख स्थान पर पढ़ा जाता है जहाँ अभियुक्त व्यक्ति आमतौर पर रहता है या फिर इसे उस आरोपी के घर के किसी विशिष्ट भाग पर चिपकाया जाता है जहाँ ऐसा व्यक्ति आमतौर पर रहता है। शहर या गांव के किसी खास हिस्से में भी लगाया जा सकता है। उद्घोषणा कि एक प्रतिलिपि न्यायालय के एक खास भाग पर चिपकाया जाएगा जहां उसे आसानी से देखा जा सके। उद्घोषणा उस स्थान पर परिचालित (circulated) दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से भी परिचालित की जा सकती है जहां व्यक्ति आमतौर पर रहता है।
कौन से अपराध इसमें शामिल हैं?
इसके तहत बेनामी लेन-देन करना, मनी लॉन्ड्रिंग, टैक्स की चोरी करना, नकली सरकारी स्टाम्प या करंसी तैयार करना, लेन-देन के मामले में धोखाधड़ी करने जैसे कई मामले आते हैं। किसी आरोपी को भगोड़ा घोषित करने के बाद अदालत की ओर से कभी भी आरोपी की सम्पत्ति को कुर्क करने का आदेश जारी किया जा सकता है. CrPC की धारा 83 में ऐसा करने का नियम है।
भगोड़ा घोषित होने पर अगर अपराधी खुद पेश हो जाता है, तो विशेष अदालत उसके खिलाफ होने वाली कार्यवाही को खारिज भी कर सकती है। अगर वो खुद पेश न होकर अपने वकील को भेजता है, तो वकील को एक हफ्ते के भीतर यह बताना होगा कि आरोपी पेश कब होगा और अगर ऐसा नहीं होता है तो कुर्की की कार्रवाई शुरू की जा सकती है।
भगोड़ा घोषित होने के बाद आरोपी विशेष अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकता है। गौरतलब है कि विशेष अदालत के आदेश के 30 दिन के भीतर हाई कोर्ट में अपील करनी होती है. अगर आरोपी देरी करता है तो उसे देरी की वजह भी बतानी होगी।