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Writ of Mandamus क्या है और किन परिस्थितियों में यह जारी की जाती है?

आप अपने मौलिक अधिकारों से परिचित तो होंगे ही, लेकिन यदि आपके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो तो आप क्या करेंगें? इसलिए, संविधान में अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपायों का उल्लेख किया गया है, जिसे एक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ देश के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय से मांग कर सकता है.

Written By My Lord Team | Published : March 31, 2023 8:50 AM IST

नई दिल्ली: संविधान में नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) और स्वतंत्रता दिए गए हैं जैसे बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Speech and Expression). परन्तु क्या केवल अधिकार प्रदान करना काफी होता है? नहीं, इन अधिकारों के उल्लंघन होने पर, कोई प्रावधान या कार्रवाई या निवारण तंत्र भी होना चाहिए जो अधिकारों का उल्लंघन होने पर न्याय प्रदान कर सकें.

इसलिए, संविधान में अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपायों का उल्लेख किया गया है, जिसे एक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ देश के सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय से मांग कर सकता है. इसी अनुच्छेद के तहत सर्वोच्च न्यायालय को अधिकारों के प्रवर्तन (Enforcement) के लिए रिट जारी करने का अधिकार है जबकि राज्यों में उच्च न्यायालय के पास भी अनुच्छेद 226 के तहत समान शक्ति है.

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सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय दोनों, नागरिकों के मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए पांच प्रकार की रिट जारी कर सकता है: बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), निषेध (Prohibition), उत्प्रेषण (Certiorari), अधिकार पृच्छा (Quo warranto). आज हम जानेंगे, 'परमादेश का रिट' यानी 'Writ of Mandamus' क्या है.

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Writ of Mandamus

परमादेश का रिट का शाब्दिक अर्थ है 'हम आज्ञा देते हैं'. परमादेश का रिट कानून का एक उपकरण है, जिसे किसी सरकारी अधिकारी को सौंपे गए सार्वजनिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए आदेश देने के लिए जारी की जाती है, जो अपना कर्तव्य निभाने में विफल रहा है या जिसने अपना काम करने से इनकार कर दिया है. यह रिट सार्वजनिक अधिकारियों के अलावा किसी भी सार्वजनिक निकाय, एक निगम, एक अवर न्यायालय, एक न्यायाधिकरण, या फिर सरकार के खिलाफ भी जारी की जा सकती है.

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भारतीय विधि व्यवस्था में तीन प्रकार के परमादेश हैं जो परमादेश से संबंधित निर्णयों को देखकर ज्ञात किए जा सकते हैं: उत्प्रेषित परमादेश (Certiorarified Mandamus), प्रत्याशित परमादेश (Anticipatory Mandamus) और निरंतर परमादेश (Continuing Mandamus).

आपको बता दें कि यदि आप इस तरह के किसी सार्वजनिक कर्तव्य के उल्लंघन या दुरुपयोग से प्रभावित हुए हैं, तो आपको उस कार्य को करवाने का अधिकार है. इसलिए आप परमादेश जारी करने के लिए उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं. परन्तु ध्यान रहे कि परमादेश जारी करने की कुछ शर्तें निर्धारित हैं, जिनके विषय में आपको भी जानकारी होनी चाहिए.

परमादेश जारी करने की शर्तें:

परमादेश रिट तभी जारी की जा सकती है जब निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हों:

-जिस व्यक्ति या प्राधिकारी के खिलाफ परमादेश जारी करने की मांग की जाती है, उसके पास प्रदर्शन करने के लिए कुछ सार्वजनिक कर्तव्य होने चाहिए, जिसे वह करने में विफल रहता है,

-जब कार्य का प्रकार विवेकाधीन हो ना कि अनिवार्य तब किसी को कार्य करने का आदेश दे,

-वह सार्वजनिक कर्तव्य प्रकृति में अनिवार्य होने चाहिए न कि विवेकाधीन (discretionary), और वास्तव में उस कार्य के प्रदर्शन में विफलता हो,

-याचिकाकर्ता के पास कानून द्वारा समर्थित अधिकार होना चाहिए कि वह उस प्राधिकरण या व्यक्ति को बाध्य कर सके जिसके खिलाफ वह परमादेश जारी करना चाहता है, और

-जब याचिकाकर्ता ने प्राधिकरण से उसके सार्वजनिक कर्तव्य निभाने की मांग की तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया हो.

परमादेश जारी करने के अपवाद:

परमादेश के अनुप्रयोग की निम्नलिखित सीमाएँ हैं यानी कुछ ऐसे व्यक्ति हैं जिनके विरुद्ध परमादेश की रिट जारी नहीं की जा सकती. वो निम्नलिखित हैं-

-राष्ट्रपति या राज्यों के राज्यपालों या कार्यकारी मुख्य न्यायाधीशों के विरुद्ध परमादेश की रिट जारी नहीं की जा सकती है,

-परमादेश किसी निजी व्यक्ति या कंपनी के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है, अर्थात जिनके पास प्रदर्शन करने के लिए कोई सार्वजनिक कर्तव्य नहीं है, और

-वैधानिक बल न रखने वाले विभागीय निर्देशों के क्रियान्वयन के लिए परमादेश जारी नहीं किया जा सकता है.

उद्देश्य

मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए, सर्वोच्च न्यायालयों और उच्च न्यायालय, दोनों के द्वारा परमादेश जारी किया जाएगा जो सार्वजनिक अधिकारी या सरकार को पीड़ित व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करने से रोकेगा. लेकिन अनुच्छेद 32 और अनुच्छेद 226 की तुलना करने पर, पता चलता है कि उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा परमादेश जारी किये जाने के उद्देश्यों में कुछ असमानताएं भी हैं.

कुछ ऐसे भी उद्देश्य हैं जिनके लिए उच्च न्यायालय द्वारा परमादेश जारी किया जा सकता है, परन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नहीं, वे निम्नलिखित हैं-

-सरकारी अधिकारी या सरकार को किसी असंवैधानिक कानून को लागू करने से रोकना,

-जब कोई अधिकारी अपने सार्वजनिक अधिकार का अत्यधिक, या अवैध रूप से, या दुर्भावना से, या ऐसे तरीके से उपयोग करता है जो उसके दिमाग के अनुसार होता है, या अपनी विवेकाधीन शक्तियों का दुरुपयोग करता है,

-किसी भी व्यक्ति को उसके संवैधानिक या वैधानिक सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य करना, और

-यदि किसी न्यायालय या अधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने से मना कर दिया हो तो उसे प्रयोग के लिए बाध्य करना.

परमादेश यह सुनिश्चित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है कि राज्य अपने नागरिकों के प्रति जवाबदेह है और इसके माध्यम से नागरिकों के विरुद्ध राज्य द्वारा शक्ति के अत्यधिक उपयोग से बचा जा सकता है.