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क्या है अस्पृश्यता और क्यों इसकी Practice है दंडनीय अपराध?

Untouchability

हमारे देश का संविधान हर किसी को एक समान नजरों से देखता है और सबको एक दूसरे का सम्मान करना भी सिखाता है. साथ ही अगर कोई किसी के साथ भेदभाव करता है तो वह दंडनीय अपराध माना जाएगा.

Written By My Lord Team | Published : April 25, 2023 11:03 AM IST

नई दिल्ली: भारतीय समाज, जो की जाति प्रथा से प्रभवित रहा है, में स्वतंत्रता के बाद भी ऊंची जाति और लोग नीची जाति के विभाजन से ग्रस्त रहा. समाज में ऊंची जाति के लोगो ने निम्नवर्ग को अपने से नीचा समझा और उन पर जुल्म भी किया. इस कुरीति की वजह से समाज दो वर्गों में बंट गया था. समाज को एक एवं सशक्त बनाने हेतु और समानता लाने के लिए संविधान में अनुच्छेद 17 को शामिल कर इस कुप्रथा को खत्म किया गया. चलिए जानते हैं क्या है अनुच्छेद 17 और इसका उल्लंघन करने वालों के साथ कानून में क्या है सजा का प्रावधान.

संविधान के अनुच्छेद 17 में छुआछूत को अस्पृश्यता कहा गया है.

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संविधान का अनुच्छेद 17

अस्पृश्यता का अर्थ ऐसी वस्तुओं से लिया जाता है, जिनको स्पर्श करना वर्जित हो. हमारे देश में इस शब्द का अर्थ विशेषकर उन जातियों से दूर रहने के लिये किया जाता रहा जो निम्न जाति के हैं और जिनका मुख्य कार्य कूड़ा, मैला उठाना या सफाई करना है. इसलिए संविधान के अनुच्छेद 17 में यह स्पष्ट किया गया है कि “अस्पृश्यता" को खत्म किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है. “अस्पृश्यता" से उपजी किसी निर्योग्ता को लागू करना अपराध होगा, जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा.

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आसान भाषा में कहा जाए तो “अस्पृश्यता" यानि छुआछूत को खत्म कर दिया गया है अगर कोई इसे बढ़ावा देगा या किसी के साथ “अस्पृश्यता" का कोई बर्ताव करेगा तब वह कानूनी रूप से दंडित किया जाएगा.

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“अस्पृश्यता"  एक अपराध है इसके बारे में अनुच्छेद 17 में बताया गया है लेकिन इसके नाम पर क्या- क्या कृत अपराध माना जाएगा और सजा क्या हो सकती है उसके बारे में सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम (Protection of Civil Rights Act), 1955 की धारा तीन,चार,पांच,छ: और सात में बताया गया है.

धारा 3,अस्पृश्यता के आधार पर रोकना

किसी सार्वजनिक पूजा-स्थान में प्रवेश करने से, एक ही धर्म के कुछ लोगों पर प्रतिबंध लगाना, बल्कि बाकियों के लिए खुला हो.

किसी सार्वजनिक पूजा-स्थान में पूजा या प्रार्थना या कोई धार्मिक सेवा अथवा किसी तालाब, कुएं, जल स्रोत (जल-सारणी, नदी या झील में स्नान या उसके जल का उपयोग या ऐसे तालाब, जल-सरणी, नदी या झील के किसी घाट पर स्नान) का इस्तेमाल के लिए बाकियों पर कोई प्रतिबंध नहीं बल्कि कुछ लोगों के लिए रोक हो.

ऐसा करना अपराध माना जाएगा, जिसकी कम से कम सजा एक महीने की और ज्यादा से ज्यादा छ: महीने की सजा मिल सकती है. इतना ही नहीं कम से कम एक सौ रुपये का जुर्माना और ज्यादा से ज्यादा 500 रुपये का जुर्माना भीदेना पड़ सकता है.

धारा 4, अस्पृश्यता, कोई निर्योग्यता लागू करने के आधार पर रोकने के संबंध में

  •  किसी दुकान, लोक उपहारगृह, होटल या लोक मनोरंजन स्थान में प्रवेश करना; अथवा
  • किसी लोक उपहारगृह, होटल, धर्मशाला, सराय या मुसाफिर खाने में, जन साधारण के उपयोग के लिए रखे गए किन्हीं बर्तनों और अन्य वस्तुओं का उपयोग करना; अथवा
  • कोई वृत्ति करना या उपजीविका, कारोबार या व्यापार (या किसी काम में नियोजन) करना; अथवा
  • ऐसी किसी नदी, जल-धारा, जल-स्रोत, कुएं, तालाब, हौज, पानी के नल या जल के अन्य स्थान का या किसी स्नान घाट, कब्रिस्तान या शमशान भूमि, स्वच्छता संबंधी सुविधा, सड़क, अथवा रास्ते या लोक अभिगम के अन्य स्थान का जिसका उपयोग करने के लिए या जिसमें प्रवेश करने के लिए जनता के अन्य सदस्य, या व्यक्ति जिसका वह अधिकारवान हों, उपयोग करना अथवा उसमें प्रवेश करना; अथवा
  • किसी ऐसी धर्मशाला, सराय या मुसाफिरखाने का, जो जन साधारण के उपयोग के लिए खुला हो, का उपयोग करना; अथवा
  • किसी सामाजिक या धार्मिक रूढ़ि, प्रथा या कर्म का अनुपालन करना; अथवा

    आभूषणों और अलंकारों का उपयोग करना;

इस धारा के तहत बताए गए अपराध के लिए वही सजा है जो धारा 3 में बताया गया है.

धारा 5, अस्पृश्यता के आधार पर प्रवेश करने से इनकार करना

  • किसी व्यक्ति को किसी अस्पताल, औषधालय, शिक्षा संस्थान या किसी छात्रावास में, यदि वह अस्पताल, औषधालय, शिक्षा संस्थान या छात्रावास जनसाधारण के फायदे के लिए स्थापित हो या चलाया जाता हो, प्रवेश करने देने से; अथवा
  • पूर्वोक्त संस्थाओं में से किसी में प्रवेश के पश्चात् ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध कोई भेदभाव करना.

इस धारा के तहत बताए गए अपराध के लिए वही सजा है जो धारा 3 में बताया गया है.

धारा 6

अगर कोई व्यापारी अपने ग्राहकों में अस्पृश्यता के आधार पर भेदभाव करते हुए किसी को माल और अपनी सेवा देता है लेकिन किसी को नहीं देता है तो वह दोषी माना जाएगा और धारा 3 में निहित सजा का पात्र होगा.

धारा 7 (1)

  • अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 17 के अधीन 'अस्पृश्यता' के अंत होने के बावजूद उसके अधिकारों को इस्तेमाल से रोकेगा. अथवा;
  • किसी व्यक्ति को किसी ऐसे अधिकार के प्रयोग से उत्पीड़ित करेगा, क्षति पहुंचाएगा, क्षुब्ध करेगा, बाधा डालेगा या बाधा कारित करेगा या कारित करने का प्रयत्न करेगा
  • किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के वर्ग या आम जनता को मौखिक या लिखित या संकेतों या दृश्य प्रस्तुतियों या अन्यथा किसी भी रूप में शब्दों द्वारा "अस्पृश्यता" का अभ्यास करने के लिए उकसाता या प्रोत्साहित करता है; या
  • अनुसूचित जाति के सदस्य का ''अस्पृश्यता'' के आधार पर अपमान करेगा, या अपमान करने का प्रयत्न करेगा. तो वह धारा तीन में प्रावधान किये गए सजा से दंडनीय होगा.