Juvenile Justice Act का क्या है? जानिये इससे जुड़े महत्वपूर्ण प्रावधान
नई दिल्ली: किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम का उद्देश्य 16 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों द्वारा किए गए अपराधों को कम करना है। जघन्य अपराधों के मामले में 16 से 18 वर्ष के बच्चों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का प्रावधान शामिल करके, यह कानून ऐसे अपराधों के पीड़ितों को न्याय प्रदान करता है।
किशोर न्याय का उद्देश्य युवा आपराधिकता के प्रभावों को समझना और सुधारना होता है।यह न्याय प्रणाली उन किशोरों के लिए बनाई गई है जो आपराधिक अवस्थाओं में आते हैं, क्योंकि उन्हें उनकी आयु और मानसिक परिस्थितियों के आधार पर अलग प्रकार के उपयुक्त संरक्षण और सज़ा देने की आवश्यकता होती है।
इस उम्र के बच्चों के लिए किशोर न्याय अधिनियम बनाया गया है जो इन पर लागू किया जाता है। आइये जानते है क्या है किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम के विषय में विस्तार से -
Also Read
Juvenile Justice Act क्या है
किशोर अथवा बालक इस अधिनियम में शामिल किशोर या बालक शब्द से आशय है ऐसे व्यक्ति का जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी न की हो। यह परिभाषा 18 वर्ष की आयु से कम किशोर अवस्था के सभी व्यक्तियों के प्रति लागू होती है चाहे वह लड़का हो या लड़की।
इस अधिनियम के पहले किशोर न्याय अधिनियम, 1986 के अधीन 'किशोर' की परिभाषा में सोलह वर्ष से कम आयु के किशोर अथवा अठारह वर्ष से कम आयु की किशोरी को ही किशोर आयु का माना गया और इस अधिनियम के पूर्व, बाल-अधिनियम, 1960 के अधीन यह आयु किशोर एवं किशोरियों, दोनों के लिए इक्कीस वर्ष से कम आयु रखी गयी थी।
परन्तु वर्तमान किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के लड़के या लड़की को 'किशोर' अथवा 'बालक' की श्रेणी में रखा गया है। विधि-विरोधी किशोर इस अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें शामिल अपराध कारित करने वाले किशोर को अपराधी या अपचारी किशोर संबोधित न करते हुए विधि-विरोधी किशोर कहा गया है।
विधि-विरोधी किशोर की आयु का अभिनिर्धारण-न्यायिक दृष्टिकोण- विधि विरोधी किशोरों के विचारण में उनके आयु के संबंध में इन दो बिन्दुओं पर प्रमुखता से विचार किया जाना आवश्यक होता है- पहला- विधि विरोधी व्यक्ति की आयु किशोर /वयस्क की कोटि में आती है या नहीं। दूसरा- किशोर माने जाने के लिए विधि विरोधी व्यक्ति की आयु निर्धारण की तिथि उसके द्वारा कारित अपराध की तिथि हो, अथवा वह तिथि हो, जिस दिन उसे सक्षम अधिकारी के समक्ष विचारण हेतु प्रस्तुत किया गया था।
इस अधिनियम के तहत, जो बच्चे छोटे अपराध करते हैं, उनसे किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) द्वारा निपटाया जाना चाहिए, जबकि गंभीर अपराध करने वाले बच्चों से किशोर न्याय बोर्ड द्वारा प्रारंभिक मूल्यांकन के बाद किशोर न्याय बोर्ड द्वारा निपटा जाना चाहिए। बोर्ड या तो बच्चे को अधिकतम तीन साल की अवधि के लिए पुनर्वास गृह भेज सकता है या यदि किया गया अपराध जघन्य है तो बच्चे पर वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का आदेश दे सकता है।
कई लोगों ने जघन्य अपराध करने वाले किशोरों पर बहुत अधिक उदार होने के लिए अधिनियम की आलोचना की है। अधिनियम में प्रावधान है कि जघन्य अपराध करने वाले किशोर को तीन साल तक की अवधि के लिए सुरक्षित स्थान पर रखने का आदेश दिया जा सकता है। हालाँकि, तीन साल की अवधि पूरी होने के बाद, बच्चे को परिवीक्षा (probation) पर रिहा किया जा सकता है। कई लोगों ने इसकी आलोचना की है कि यह बच्चे के प्रति बहुत अधिक उदार है और किए गए अपराध के लिए पर्याप्त सज़ा का प्रावधान नहीं करता है।
अधिनियम की एक और आलोचना यह है कि इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है। किशोर गृहों में बच्चों को भीड़भाड़ और अस्वच्छ परिस्थितियों में हिरासत में रखे जाने की खबरें आई हैं। इन घरों में बच्चों के साथ दुर्व्यवहार और हिंसा की भी खबरें आई हैं। अधिनियम बच्चों की देखभाल और सुरक्षा की निगरानी के लिए किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) और बाल कल्याण समितियों (Child welfare committee) की स्थापना का प्रावधान करता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 - इस धारा के अनुसार, कोई भी बच्चा जो किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, वह अग्रिम जमानत का अनुरोध या मांग कर सकता है जो उच्च न्यायालय के साथ-साथ सत्र न्यायालय में भी स्वीकार्य है।
देवकी नन्दन दायमा Vs उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य का मामला
उच्चतम न्यायालय ने अपना फैसला में कहा कि अभियुक्त के किशोर आयु के होने या न होने की जाँच करते समय विचारण न्यायालय स्कूल रजिस्टर में अंकित की गयी विधि-विरोधी किशोर की जन्म तारीख को साक्ष्य के रूप में ग्राह्य कर सकता है परन्तु उसे स्वीकार किया जाए अथवा नहीं, यह इसके प्रमाणक मूल्य (probative value) पर निर्भर करेगा। जहाँ स्कूल सर्टिफिकेट में दर्शायी गयी जन्म तारीख और मेडिकल प्रमाण- पत्र में अंकित जन्म तिथि में अन्तर हो, तो स्कूल सर्टिफिकेट की तारीख को बेहतर साक्ष्य माना जायेगा क्योंकि मेडिकल प्रमाण- पत्र में दर्शायी गई जन्म तारीख अनुमान पर आधारित हो सकती है ।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सुनील तथा अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य के वाद में अभिनिर्धारित किया कि विधि विरोधी व्यक्ति किशोर आयु की कोटि में आता है या नहीं, यह साबित करने का भार 'किशोर' पर नहीं होगा, अपितु इसका निर्धारण न्यायालय की हो स्वप्रेरणा (Suo Motu) से किया जाना चाहिए।
इस वाद में सत्र न्यायालय ने किशोर की जमानत को अर्जी इस आधार पर नामंजूर कर दी थी कि उसकी मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता था कि वह किशोर आयु को कोटि में नहीं आता है। न्यायालय ने विनिश्चित किया कि आयु सिद्ध करने का भार विधि- विरोधी किशोर पर नहीं होगा और न्यायालय को स्वयं ही स्व-प्रेरणा से इसका निर्धारण करना चाहिए।