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कार्यकारी मजिस्ट्रेट की क्या भूमिका है, CrPC के तहत जानिये उसकी कार्य और शक्तियां

कानूनन मजिस्ट्रेट दो प्रकार के होते हैं. एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दूसरा कार्यकारी मजिस्ट्रेट. दोनों को उनके अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से अलग करते हैं.

Written By My Lord Team | Published : May 23, 2023 5:26 PM IST

नई दिल्ली: कानून व्यवस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए विभिन्न विभागों की जिम्मेदारियां निर्धारित की गई हैं. साथ ही उन्हें समाज में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए कई तरह की शक्तियां भी दी गई हैं. सरकार की व्यवस्था के अंतर्गत कार्यकारी मजिस्ट्रेट एक अभिन्न हिस्सा है. CrPC के तहत उसके कार्य और शक्तियां के बारे में प्रावधान किया गया है.

कानूनन मजिस्ट्रेट दो प्रकार के होते हैं. एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दूसरा कार्यकारी मजिस्ट्रेट. सीआरपीसी की धारा 3(4) के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट और न्यायिक मजिस्ट्रेट के कार्यों में बहुत अंतर है. जहां न्यायिक मजिस्ट्रेट का काम जांच प्रक्रिया में मिले साक्ष्य के माध्यम से दंड या सजा सुनाना होता है.

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वहीं लाइसेंस देना, निलंबन और रद्द करने जैसे मामलों की जिम्मेदारी एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट की भूमिका के दायरे में आते हैं. कहा जा सकता है कि एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के कार्यों का दायरा मुख्य रूप से प्रशासनिक मामलों, निवारक उपाय करने और कानून और व्यवस्था के रखरखाव से संबंधित मुद्दों तक सीमित है.

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कार्यकारी मजिस्ट्रेट की भूमिका

कार्यकारी मजिस्ट्रेट की सबसे बड़ी भूमिका होती है यह सुनिश्चित करना की नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन या अवहेलना न हो. किसी राज्य की विधान सभा के परामर्श से न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यकारी मजिस्ट्रेट के कार्यों को निर्वहन करने की अनुमति देने के प्रावधान किए गए हैं .

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जब सीआरपीसी की धारा 116 और धारा 107 के तहत एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट शांति और व्यवस्था बनाए रखने के संबंध में जांच करते है तब वह एक अदालत के रूप में भी कार्य करते हैं. उनकी यह भूमिका तब समाहित (कंटेन) हो जाती है जब वह अपने प्रशासनिक कर्तव्यों को ग्रहण करता है और इसलिए यह कहा जाता है कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट अपने कामकाज में अक्सर दोहरी भूमिका निभाते हैं.

एक कार्यकारी मजिस्ट्रेटों की भूमिका काफी हद तक प्रशासनिक ही होती है. CrPC की धारा 107, 108, 109 और 110 के तहत कार्यकारी मजिस्ट्रेट को शांति बनाए रखने या अच्छा व्यवहार बनाए रखने के लिए बॉन्ड या सुरक्षा प्राप्त करने और सार्वजनिक उपद्रवों (न्यूसेंस) और संभावित खतरे का कारण बनने वाले मुद्दों से निपटने के अलावा धारा 133 और 144 के तहत सार्वजनिक शांति के लिए गैरकानूनी सभाओं को तितर-बितर करने के लिए अधिकृत (ऑथराइज) किया गया है.

कार्यकारी मजिस्ट्रेट के CrPC के तहत कार्य

किसी भी जगह पर जब कोई दंगा होता है तो उससे एक नहीं बल्कि भारी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं. जिसके कारण लोगों की सुरक्षा पर खतरा मंडराने लगता है इसी से संबंधित है CrPC की धारा 107.

CrPC की धारा 107 प्रभावी रूप से सभी परिस्थितियों में शांति बनाए रखने के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने से संबंधित है. इसकी जिम्मेदारी कार्यकारी मजिस्ट्रेट की होती है. धारा 107 के तहत जब किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में शांति भंग की स्थिति होती है या होने की आशंका होती है तो वह जरूरी कार्यवाही को अंजाम दें सकते हैं.

आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 129 के तहत एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट को सिविल बल के प्रयोग द्वारा गैरकानूनी सभा को तितर-बितर करने का भी अधिकार होता है.

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गोपाल जी प्रसाद बनाम सिक्किम राज्य केस में, यह फैसला सुनाया गया था कि मजिस्ट्रेट को अपने कारणों को लिखित रूप में दर्ज करने की आवश्यकता थी और उन्हें अपना दिमाग लगाना चाहिए था और मनमाना नहीं होना चाहिए था. यह एक सामान्य प्रशासनिक आदेश के दायरे में नहीं आता है, लेकिन इसकी दक्षता (एफिशिएंसी) और आवेदन की सीमा का परीक्षण करने के लिए न्यायिक जांच की आवश्यकता होती है. सौंपी गई शक्ति न तो पूर्ण है और न ही सर्वोच्च है बल्कि उच्च न्यायालयों द्वारा जांच के अधीन है.

CrPC के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की शक्ति

नमन सिंह बनाम यूपी राज्य के 2018 के फैसले में यह चर्चा की गई थी कि एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट एफआईआर दर्ज करने के लिए सक्षम है या नहीं, सीआरपीसी की धारा 154 में प्रावधान है कि शिकायतकर्ता द्वारा प्रदान की गई जानकारी को स्टेशन के प्रभारी अधिकारी द्वारा लिखित रूप में रखा जाना चाहिए और धारा 154 (3) के तहत एक और अतिरिक्त प्रावधान शिकायतकर्ता को पुलिस अधीक्षक से संपर्क करने की अनुमति देता है, यदि प्रभारी अधिकारी द्वारा ऐसी सूचना दर्ज करने से इंकार किया जाता है.

सीआरपीसी के तहत सभी कार्यों के निष्पादन के लिए जहां “मजिस्ट्रेट” शब्द का उल्लेख किया गया है, इसका अर्थ है न्यायिक मजिस्ट्रेटों, न कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट, जब तक कि अन्यथा निर्दिष्ट न किया गया हो.

यहां आपको बता दें कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट की भूमिका केवल उस समय काम आती है जब न्यायिक मजिस्ट्रेट को कार्यपालिका से समर्थन की आवश्यकता होती है.