Advertisement

किसी भी Contract में Consideration की क्या भूमिका होती है - जानिए

'प्रतिफल, अनुबंध का एक अनिवार्य तत्व है ' जिसे अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(d) के तहत परिभाषित किया गया है. बिना प्रतिफल के अनुबंध वैध नहीं होता, परन्तु इस अधिनियम के धारा 25 के तहत इसके कुछ अपवाद भी है.

Written By My Lord Team | Updated : February 28, 2023 8:32 AM IST

नई दिल्ली: हमारे देश में बढ़ते निगमों (Corporations) के साथ, सभी के लिए अनुबंध, प्रतिफल (consideration) और उनके घटकों के बारे में जानना आवश्यक है. भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 में अनुबंधों के कानून का उल्लेख मिलता है. इस अधिनियम की धारा 2 एक interpretation clause (व्याख्या खंड) है, जिसके तहत एक अनुबंध को संपूर्ण और मूल रूप से परिभाषित किया गया है तथा इसकी अनिवार्यताओं को सूचीबद्ध किया गया है. यह अधिनियम, एक वैध अनुबंध के लिए प्रस्ताव और स्वीकृति, अनुबंध करने की क्षमता, मुक्त सहमति, कानूनी उद्देश्य, लेखन और पंजीकरण आदि को आवश्यक तत्व बताता है.

अनुबंध का ऐसा ही एक अनिवार्य तत्व है 'प्रतिफल' जिसे अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(d) के तहत परिभाषित किया गया है. अनुबंध को "प्रतिफल के बदले में वादा" भी कहा जा सकता है. यह प्रतिफल, एक या हजार रुपये हो सकता है, पर आवश्यक नहीं की यह हमेशा मौद्रिक हो. प्रतिफल अधिकांश अनुबंधों का एक अनिवार्य हिस्सा होता है. आइए जानते है, एक अनुबंध में प्रतिफल की क्या भूमिका होती है.

Advertisement

प्रतिफल क्या है

प्रतिफल का अर्थ उस मूल्य या प्राप्ति से है जो वचनग्रहीता, वचनदाता के वचन के बदले में देता है. एक अनुबंध के दो भाग होते हैं- एक वचन और दूसरा प्रतिफल. कोई व्यक्ति किसी काम को करने या न करने के लिए तभी वचन देता है जब उसे ऐसा करने के बदले में कुछ अधिकार, हित, धन या लाभ दिया जाए. इसी प्राप्ति को प्रतिफल कहते हैं.

Also Read

More News

भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 2(d) के अनुसार, जब वतनदाता की इच्छा पर वचनग्रहीता या अन्य व्यक्ति- कुछ करता है, या कुछ करने से मना करता है या ऐसा कोई वादा करता है; तब ऐसे कार्य करने, मना करने या वचन देने को प्रतिफल के रूप में माना जाता है. सरल शब्दों में, प्रतिफल शब्द का अर्थ बदले में कुछ’ देना है.

Advertisement

अनुबंध में प्रतिफल क्यों जरूरी है

प्रतिफल एक अनुबंध का एक अभिन्न अंग है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अनुबंध को अदालत में लागू होने के लिए प्रतिफल का आदान-प्रदान किया जाना चाहिए. भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 10 के अनुसार, किसी समझौतों को एक वैध अनुबंध करार तब दिया जाता है यदि वे अनुबंध के लिए सक्षम पार्टियों की स्वतंत्र स्वीकृति से, एक वैध प्रतिफल के लिए और एक सही उद्देश्य के साथ किए जाते हैं, और कानून द्वारा स्पष्ट रूप से शून्य घोषित नहीं किए जाते हैं.

कोई प्रतिफल नहीं, कोई अनुबंध नहीं का सिद्धांत: इस सिद्धांत का अर्थ है कि एक अनुबंध को वैध और कानून में लागू करने योग्य होने के लिए, इसमें शामिल पक्षों के बीच कुछ मूल्य या वस्तु या लाभ का आदान-प्रदान अर्थात प्रतिफल होना चाहिए, जो की एक अनुबंध का जरूरी तत्व माना जाता है, और यह किसी भी रूप में हो सकता है. प्रतिफल के बिना, कोई अनुबंध वैध नहीं होता है.

उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति एक कार को ठीक करने का वादा करता है, वह बदले में कुछ भी नहीं लेता तो उसे कोई अनुबंध नहीं माना जाएगा, क्योंकि इसमें कोई प्रतिफल नहीं है. हालांकि, अगर वही व्यक्ति भुगतान के बदले में कार ठीक करता है, तो यह एक अनुबंध बनता है, क्योंकि दोनों पक्षों के बीच एक भुगतान का आदान-प्रदान होता है. यह आवश्यक नहीं कि पक्षों के बीच प्रतिफल समान मूल्य का हो, परन्तु यह प्रतिफल कुछ मूल्य का होना ही चाहिए.

अत: प्रतिफल एक अनुबंध को कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाता है. प्रतिफल के बिना, कोई अनुबंध नहीं होता है, और पक्षों द्वारा किए गए किसी भी वादे को अदालत में मान्य नहीं माना जा सकता.

अपवाद

इस अधिनियम की धारा 10 और धारा 25 के अनुसार, अनुबंध बिना प्रतिफल के शून्य है, इसलिए नियम "कोई प्रतिफल नहीं, कोई अनुबंध नहीं" है. हालांकि, अनुबंध अधिनियम की धारा 25 के तहत इस सिद्धांत के कुछ अपवादों का उल्लेख भी किया गया है, जिसके तहत बिना प्रतिफल के किये गए कुछ समझौते शून्य नहीं माने जाते, जैसे- प्रतिफल की अपर्याप्तता, एक एजेंसी के निर्माण के दौरान (अधिनियम की धारा 185), जमानत के अनुबंध को प्रभावी बनाने के लिए (धारा 148), आदि में किसी प्रतिफल की आवश्यकता नहीं है.