Public Servants के रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार होने पर क्या है सजा का प्राविधान?
नई दिल्ली: समाज में लोक सेवकों (Public Servants) खासकर पुलिस से उच्चतम मानकों (Highest Standard ) के आचरण की आशा रहती है, उनके पेशेवर जिम्मेदारी के कारण। लेकिन पुलिस अधिकारियों द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग भारतीय समाज में एक खुला परिदृश्य बन गया है।
पुलिस कदाचार या अवैध कार्य जैसे -झूठी गिरफ्तारी या झूठा कारावास के माध्यम से या फिर सबूतों का मिथ्याकरण (Falsification) कर, पुलिस रिपोर्ट को झुठलाना, गवाह के साथ छेड़छाड़, झूठी गवाही के लिए मजबूर करना, पुलिस बर्बरता और घूस लेना इत्यादि कहीं न कहीं पुलिस के आचरण को व्यक्त करती है ।
ऐसा नहीं है कि इन कृत्यों हेतु सम्बंधित लोगो के विरुद्ध क़ानूनी प्रावधान नहीं है लेकिंन ज्यादातर लोग डर से चुप रहते है, तो आइये समझते है कि कानून के तहत क्या प्रावधान मौजूद हैं.
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जो भी लोक सेवक रिश्वत लेते हुए पाया जाता है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा: परन्तु सत्कार के रूप में रिश्वत केवल जुर्माने से ही दण्डित किया जायेगा।
Prevention of Corruption Act, 1988 की धारा 13 आपराधिक अवचार पर प्रावधान करती है। यह अधिनियम रिश्वतखोर अधिकारियों को दंडित करने के उद्देश्य से कड़े से कड़े प्रावधान करता है।
(1) कोई लोक सेवक आपराधिक अवचार का अपराध करने वाला कहा जाएगा. (क) यदि वह लोक सेवक के रूप में अपने को सौंपी गई किसी संपत्ति या अपने नियंत्रणाधीन किसी संपत्ति का अपने उपयोग के लिए बेइमानी से या कपटपूर्वक दुर्विनियोग करता है या उसे अन्यथा संपरिवर्तित कर लेता है या किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा करने देता है; या यदि वह अपनी पदावधि के दौरान अवैध रूप से अपने आशय को समृद्ध करता है|
किसी व्यक्ति के बारे में यह उपधारणा की जाएगी कि उसने अवैध रूप से अपने को साक्ष्य समृद्ध बनाया है, यदि वह या उसकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति अपनी पदावधि के दौरान किसी समय अपनी आय के ज्ञात स्त्रोतों से अननुपातिक घनीय संसाधन (Disproportionate cubic resource) या संपत्ति उसके कब्जे में है या रही है, जिसके लिए लोक सेवक समाधानप्रद रूप से हिसाब नहीं दे सकता है ।
पद “आय के ज्ञात स्त्रोत“ से किसी विधिपूर्ण स्त्रोत से प्राप्त आय साशय है ।
(2) कोई लोक सेवक जो आपराधिक अवचार करेगा ऐसे अवधि के करावास से दण्डित किया जायेगा जो चार वर्ष से कम की नही होगी किन्तु जो दस वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से भी दंडनीय किया जायेगा |
अगर सरकारी जांच एजेंसी द्वारा कोई अधिकारी रिश्वत लेता हुआ पकड़ा जाता है तो उसे एजेंसी (Prevention of Corruption Act, 1988 के अंतर्गत गिरप्तार कर लेती है और जेल भेज देती है। जितने दिन अधिकारी जेल या लॉकअप में रहा है उस अवधि को डीम्ड सस्पेंडेड माना जाता है।
किसी भी जांच एजेंसी को किसी सरकारी अधिकारी पर सरकारी कार्य मे मुकदमा चलाने के लिये उसके नियोक्ता (employer) से अनुमति लेनी जरूरी है। अगर नियुक्ता ने अनुमति नही दी तो सरकारी अधिकारी पर केस नही चलाया नही जा सकता। यह प्रावधान किसी अधिकारी को झूंठे केस से बचाने के लिये किया गया है।
अभी हाल ही में राजस्थान का एक मामला सामने आया जहां थानाधिकारी व हैड कांस्टेबल 1.50 लाख रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार हुए है, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की टीम ने जालोर जिले में सोमवार देर (१० जुलाई) रात परिवादी से 1.50 लाख रुपये की कथित रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ गिरफ्तार किया।
मंगलवार को जारी बयान के अनुसार, रिश्वतखोरी के मामले में करड़ा थाने के थानाधिकारी, पुलिस निरीक्षक अमर सिंह व इसी थाने के हैड कांस्टेबल प्रतापाराम को गिरफ्तार किया गया है।
समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, परिवादी ने शिकायत की कि पुलिस थाना करड़ा में आबकारी अधिनियम के तहत दर्ज मामले में मुलजिम नहीं बनाने व गिरफ्तार मुलजिम से हिरासत में मारपीट नहीं करने की एवज में थानाधिकारी अमर सिंह व हैड कांस्टेबल द्वारा एक लाख 80 हजार रुपए की रिश्वत राशि मांग कर परेशान किया जा रहा है।
एसीबी की टीम ने शिकायत का सत्यापन कर सोमवार देर रात आरोपी थानाधिकारी अमरसिंह व हैड कांस्टेबल प्रतापाराम को परिवादी से एक लाख 50 हजार रुपये रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार किया। इसके अनुसार, आरोपियों के आवास व अन्य ठिकानों की तलाशी ली जा रही है तथा उनसे पूछताछ जारी है।