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मुस्लिम कानून के तहत पत्नी, तलाकशुदा महिला और बच्चों के लिए भरण पोषण का क्या प्रावधान है?

Divorce in Muslim Law

दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 125 के अनुसार भरण पोषण का एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) नियम है.

Written By My Lord Team | Published : June 6, 2023 6:15 PM IST

नई दिल्ली: जब भी पति या पत्नी तलाक लेते हैं तो आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष को कानूनी रूप से भरण पोषण के रूप में आर्थिक मदद दी जाती है. तलाक के बाद मिलने वाला भरण पोषण व्यक्ति के धर्म से सम्बंधित कानून के तहत मिलता है. दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 125 के अनुसार भरण पोषण का एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) नियम है.

आपको बता दे कि हिंदुओं के भरण-पोषण के नियम उनके निजी कानून (हिन्दू लॉ) में बताए गए हैं, वहीं मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (मुस्लिम लॉ) में मुसलमानों के भरण पोषण के बारे में प्रावधान किया गया है. जानते हैं कि मुस्लिम कानून के तहत पत्नी, तलाकशुदा महिला और बच्चों के लिए भरण पोषण के क्या नियम हैं.

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मुस्लिम कानून के तहत भरण पोषण

भऱण पोषण को मुस्लिम कानून के तहत नफकाह कहा जाता है. इस कानून के तहत हर वो तलाक ले चुकी मुस्लिम महिला जिनका निकाह मुस्लिम कानून के तहत संपन्न हुआ है वह भऱण पोषण (नफकाह) लेने की हकदार है. नफकाह के तहत रोटी कपड़ा और मकान इन सभी खर्चों को शामिल किया जाता है. अगर निकाह अमान्य है अनियमित है तो पति नफकाह देने के लिए बाध्य नहीं है.

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मुस्लिम महिला अधिनियम

मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत भरण पोषण से संबंधित कई प्रावधान किए गए हैं. कानून के अनुसार मुस्लिम पत्नी को इद्दत अवधि के समय सहायता पाने का हक है.

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इस कानून के मुताबिक, एक पति का अपनी पत्नी के प्रति दायित्व इद्दत अवधि के अंत तक जारी रहता है. वहीं इद्दत अवधि खत्म होने के बाद महिला खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ है तो वह अपने उन रिश्तेदारों से जो उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति प्राप्त करने के हकदार होंगे से उचित और समान भरण-पोषण की मांग कर सकती है.

पुनर्विवाह तक भरण पोषण

मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा(3)(a) के अनुसार मुस्लिम पति अपनी तलाकशुदा पत्नी के भविष्य के लिए पर्याप्त और न्यायसंगत भरण पोषण प्रदान करने के लिए बाध्य है. अधिनियम की धारा 3(1)(a) के तहत, पति को इद्दत अवधि से परे पत्नी की मदद के लिए उचित प्रावधान प्रदान करना चाहिए.

बच्चों के लिए भरण पोषण

बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पिता की होती है, इसका प्रावधान मुस्लिम कानून में किया गया है जैसे -

1-जब तक उसका बेटा किशोरावस्था तक नहीं पहुंच जाता;

2- अविवाहित बेटी;

3-अगर उसकी विवाहित बेटी का पति उसका भरण-पोषण करने में असमर्थ है;

४- अगर उसका वयस्क बेटा अपंग, पागल, या खुद का समर्थन करने में असमर्थ है, तो पिता को आर्थिक मदद देनी होगी

हनफ़ी कानून: इस कानून के तहत, अगर पिता अपने बच्चों की आर्थिक रूप से मदद करने में सक्षम नहीं है, तो उनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी मां को दी जाती है.

शेफाई कानून: वहीं अगर शेफाई कानून की बात करें तो यदि पिता अपने बच्चों की देखभाल करने में असमर्थ है, तो उनके भरण-पोषण की जिम्मेदारी दादा पर आ जाती है, बावजूद इसके कि मां आर्थिक रूप से मजबूत हो और अपने बच्चों का पालन-पोषण करने में सक्षम हो

साथ ही अगर कोई बच्चा अपने माता-पिता के तलाक के बाद अपनी मां के साथ रहता है, इन हालातों में मां तब तक पिता से समर्थन पाने की हकदार होती है जब तक कि उसका लड़का वयस्क नहीं हो जाता और बेटी कानूनी रूप से शादी नहीं कर लेती.