क्या होता है गवाहों का परीक्षण CrPC के तहत और यह Judicial Confession से कैसे होता है अलग - जानिए
नई दिल्ली: पूछ-ताछ किसी भी जांच का एक महत्वपूर्ण अंग है. हर केस में जांच की प्रक्रिया मामले के तह तक पहुंचने का एक जरिया होता है ताकि सच्चाई को बाहर लाया जा सके. यद्यपि न्याय व्यवस्था में गवाहों का काफी महत्वपूर्ण स्थान होता है लेकिन कई मामलों में उनके ऊपर खतरा होता है इसलिए उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गवाह कैसे लेना है इसकी भी एक कानूनी प्रक्रिया है. जिसके बारे में सीआरपीसी की धारा 161 में बताया गया है. इसके साथ ही जब कोई अपराधी अपना गवाह कबूल करना चाहता है तो उसकी क्या प्रक्रिया होती है उसके बारे में भी बताया गया है.
किसी भी गवाह के बयान को दर्ज करने की एक कानूनी प्रक्रिया होती जिसे वही पूरा करता है जिसको कानून के द्वारा अधिकार दिए जाते हैं. आपको बताते हैं कि ये अधिकार किसके पास होता है और इसकी क्या प्रक्रिया होती है.
गवाही लेने का अधिकार
जब भी किसी मामले में न्यायिक प्रक्रिया शुरू होती है. तो पुलिस द्वारा केस से संबंधित हर पहलू की जांच की जाती है. CrPC की धारा 160 में पुलिस अधिकारी को यह अधिकार दिया गया है कि वो हर उस व्यक्ति को बुलाकर गवाही ले सकता है जिसका उस मामले से कोई संबंध है. इस प्रक्रिया के तहत सबसे पहले एक जांच अधिकारी को उन लोगों से संपर्क करना चाहिए जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से संबंधित प्रतीत होते हैं.
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वही इस धारा के उपधारा धारा -1 में बताया है कि पुलिस कैसे अपने उस अधिकार का प्रयोग कर सकती है. एक जांच अधिकारी किसी भी व्यक्ति को उसके सामने उपस्थित होने का आदेश निम्नलिखित तरीके से दे सकता है अगर उसका केस से कोई लेना देना है तो:
1.सबसे पहले अगर कोई अधिकारी किसी व्यक्ति को बुला रहा है तो वो आदेश लिखित में होना चाहिए.
2.जिस व्यक्ति को सम्मन किया जा रहा है वो व्यक्ति मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से भली भांति परिचित होना चाहिए.
3. जारी सम्मन में जांच अधिकारी का नाम, रैंक और पता और प्राथमिकी (FIR) और अपराध की पूरी जानकारी होनी चाहिए.
4. जांच के लिए जिस व्यक्ति को बुलाया जाता है वो जांच करने वाले अधिकारी के पुलिस स्टेशन या किसी पड़ोसी पुलिस स्टेशन के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आता है.
इस धारा के अन्य नियम
15 वर्ष से कम आयु के पुरुषों और महिलाओं को पुलिस स्टेशन जाने की जरुरत नहीं होगी. पुलिस उनके बयानों की जांच और रिकॉर्डिंग उनके घर पर ही करती है.
यह प्रावधान धारा 160(1) के तहत पुलिस द्वारा अपने अधिकार के दुरुपयोग के कारण होने वाले अपमान और असुविधाओं से बच्चों और महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है. ऐसा होता है कि कुछ अधिकारी अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल करते हैं. अगर कोई पुलिस अधिकारी किसी बच्चे और महिला को डरा धमकाकर अपने हिसाब से गलत फायदे के लिए उनके गवाह को बदलने की कोशिश करता है तो ऐसे में यह धारा उनकी रक्षा करता है.
साथ ही अगर कोई ऐसे लोक सेवक के सवालों का सही-सही जवाब नहीं देता है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 174 के तहत उन्हें एक महीने की जेल या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है. आईपीसी में लोक सेवक का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो सरकार के अधीन कार्यरत हैं.
गवाहों का Examination
यदि कोई व्यक्ति पेश होने के लिए दिए गए नोटिस के बाद पुलिस स्टेशन पहुंचता है तो जांच अधिकारी धारा 161 के तहत मौखिक परीक्षण आयोजित कर सकता है. जिसमें उनसे सवाल- जवाब किए जाते हैं.
इस धारा के अनुसार, गवाह लोक सेवक के द्वारा पूछे गए सवालों का सच्चाई से जवाब देने के लिए बाध्य है. अगर जवाब देने से इनकार करता है, जानबूझकर चूक करता है और गलत जानकारी देता है तो गवाह को आईपीसी की धारा 179, 202 और 203 के तहत सजा हो सकती है.
धारा 161 का अहम उद्देश्य होता है सच जानना. ताकि उस सबूत को अदालत में पेश किया जा सके. सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई या वारंट-मामले की सुनवाई की स्थिति में, धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ आरोप दायर किया जा सकता है. यह धारा पुलिस को जांच के समय गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार देती है.
धारा 161 की उपधारा 1 किसी ऐसे व्यक्ति के मौखिक परीक्षण की अनुमति देती है जिसे मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में जानकारी हो. इस धारा के तहत एक पुलिस अधिकारी व्यक्ति की जांच करता है. धारा 161 (1) में किसी भी व्यक्ति’ का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति को शामिल करने के लिए किया जाता है जिस पर अपराध का आरोप लगाया जा सकता है और साथ ही संदेह भी किया जा सकता है.
पाकला नारायण स्वामी बनाम एंपरर (1939)
इस मामले में यह निर्धारित किया गया था कि व्यक्ति’ शब्द में कोई भी व्यक्ति शामिल है जिसे बाद में अभियुक्त बनाया जा सकता है.
धारा 161 की उपधारा 2 में बताया गया है कि जांच के दौरान पुलिस द्वारा पूछताछ किए जाने वाले व्यक्ति को सभी सवालों का ईमानदारी से जवाब देना होगा, लेकिन यह उस व्यक्ति को उन सवालों का जवाब देने से भी रोकता है जो बाद में उस व्यक्ति को दोषी ठहरा सकता हैं.
नंदिनी सत्पथी बनाम पी एल दानी (1978)
इस केस में अदालत ने कहा था कि किसी अभियुक्त व्यक्ति को उसके खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. व्यक्ति अगर किसी सवाल पर चुप रहना चाहता है तो उसे पूरी आजादी है. हालांकि, ऐसे व्यक्ति की सुरक्षा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब तक दोष साबित नहीं हो जाता है तब तक वो व्यक्ति निर्दोष ही माना जाता है.
धारा 161 की उपधारा 3 के तहत इस गवाह के परीक्षण के दौरान शपथ या प्रतिज्ञान की जरुरत नहीं होती है. यह उपधारा रिकॉर्ड किए गए बयान का सारांश तैयार करने पर भी रोक लगाती है. यह प्रावधान कहता है कि इस उपधारा के तहत दिए गए बयानों को ऑडियो-वीडियो तकनीकी विधियों का इस्तेमाल करके तैयार किया जा सकता है. इसके अलावा, महिला द्वारा दिए गए बयान को कोई महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा ही रिकॉर्ड किया जाना चाहिए.
Judicial Confession किसे कहते हैं?
CrPC 161 की उपधारा 3 में यह बताया गया है कि अगर किसी गवाह का परीक्षण लिया जाता है तो उस दौरान उससे शपथ या प्रतिज्ञान दिलाने की जरूरत नहीं होती है लेकिन जब Judicial Confession यानि की न्यायिक संस्वीकृति की जाती है तो उसमें शपथ दिलाई जाती है क्योंकि यह कंफेशन मजिस्ट्रेट या न्यायालय के सामने विधिक कार्यवाहियों के दौरान की जाती हैं. जिसके बारे में धारा 164 में प्रावधान किया गया है.
इस तरह का कंफेशन अभियुक्त अपनी मर्जी से करता है और उसे मामले के बारे में पूरी जानकारी होती है.
जिस व्यक्ति को ज्यूडिशियल कंफेशन करना होता है उसे अदालत के सामने या मजिस्ट्रेट के सामने साक्षी के रूप में पेश किया जाता है.
इस तरह के कंफेशन के बाद अभियुक्त को सजा देने के लिए किसी अन्य गवाह या साक्ष्य की जरुरत नहीं पड़ती कि वो सच कह रहा है या झूठ.