क्या है पार्टनरशिप और को-ओनरशिप के बीच है अंतर? जानें क्या कहता है कानून
अनन्या श्रीवास्तव
जमीन और प्रॉपर्टी की बात करें तो दो शब्द जो जरूर सामने आते हैं, वो हैं 'भागीदारी' (Partnership) और 'सह स्वामित्व' (Co-Ownership)। इन शब्दों को कई बार आपस में बदलकर भी इस्तेमाल कर लिया जाता है लेकिन इनका शाब्दिक अर्थ और महत्व एक दूसरे से बहुत भिन्न है। भागीदारी और सह स्वामित्व के बीच का मूल अंतर क्या है, कानून इस बारे में क्या कहता है, आइए जानते हैं.
'पार्टनरशिप' की परिभाषा
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कानून की बात करें तो पार्टनरशिप यानी भागीदारी, भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 4 (Section 4 of The Indian Partnership Act, 1932) के तहत उन लोगों के बीच का रिश्ता है, जो एक व्यवसाय से मिलने वाले लाभ को आपस में बांटने के लिए तैयार होते हैं; किसी भी भागीदारी में कम से कम दो लोग होने चाहिए। भारतीय भागीदारी अधिनियम की धारा 5 का यह कहना है कि भागीदारी का रिश्ता दर्जे या हैसियत से नहीं बल्कि एक अनुबंध से बनता है।
बता दें कि 'भागीदारी' का रिश्ता सिर्फ तभी बन सकता है जब उद्देश्य बिजनेस करना हो। इसी अधिनियम की धारा 2(b) में यह स्पष्ट किया गया है कि हर व्यापार, पेशा और व्यवसाय 'बिजनेस' के तहत आता है।
'को-ओनरशिप' क्या है?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'को-ओनरशिप' उर्फ 'सह स्वामित्व' की बात भारतीय भागीदारी अधिनियम के तहत नहीं बल्कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 44 (Section 44 of The Transfer of Property Act, 1882) में की गई है। इस अधिनियम की धारा 44 में प्रॉपर्टी के 'सह स्वामित्व' से जुड़े कानून और अधिकारों के बारे में बताया गया है।
जहां भागीदारी बिजनेस के लिए किसी के साथ रिश्ता बनाना है, वहीं सह-स्वामित्व किसी भी जमीन या प्रॉपर्टी के एक साथ मालिक होना है। यदि आप किसी प्रॉपर्टी का सह-स्वामित्व कर रहे हैं, तो आपके पास मूल रूप से तीन अधिकार हैं- कब्जे का अधिकार (Right to Possession), उपयोग करने का अधिकार (Right to Use) और अपने हिस्से के निस्तारण का अधिकार (Right to Dispose Off Share)।
'भागीदारी' और 'सह-स्वामित्व' के बीच मूल अंतर
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'भागीदारी' और 'सह-स्वामित्व' के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि 'भागीदारी' व्यवसाय के लिए की जाती है बल्कि 'सह-स्वामित्व' का उद्देश्य पैसे कमाना नहीं होता है। एक 'भागीदारी' हमेशा अनुबंध के आधार पर खड़ी होती है बल्कि 'सह-स्वामित्व' कानून के संचालन के जरिए भी होता है (पिता के मरने के बाद दोनों भाइयों को प्रॉपर्टी मिल जाना)।
भागीदारी में एक भागीदार अपना फायदा किसी अजनबी के हाथ में नहीं दे सकता है, उसे पहले बाकी भागीदारों से अनुमति लेनी होगी। बता दें कि 'सह-स्वामित्व' में दो या उससे ज्यादा लोग एक प्रॉपर्टी के मालिक होंगे लेकिन आप अपने हिस्से को अपने हिसाब से अंतरित कर सकते हैं।
जहां 'सह-स्वामित्व' में प्रॉपर्टी के बंटवारे की मांग की जा सकती है, 'भागीदारी' में यह मांग नहीं की जा सकती है, यहां भागीदार सिर्फ बिजनेस के अपने हिस्से के पैसे ले सकता है। उसी तरह, यदि एक भागीदार बिजनेस के लिए कुछ पैसे खर्च करता है, तो वो उसकी प्रतिपूर्ति (Reimbursement) की मांग कर सकता है लेकिन यदि एक मालिक अपने हिस्से पर पैसे खर्च करता है, तो उसे इसका मुआवजा नहीं मिलेगा।