मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार निकाह और मुता विवाह में क्या अंतर है?
नई दिल्ली: विवाह आपसी सहयोग और परिवारों के निर्माण के उद्देश्य से एक पुरुष और महिला के बीच यौन गतिविधियों को कानूनी तौर पर वैध बनाता है, जिसे समाज में एक आवश्यक इकाई माना जाता है. कानूनी रूप से संतानोत्पत्ति की इच्छा को पूरा करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को विवाह करना आवश्यक है. इस्लाम में, विवाह एक अनुबंध (contract) होता है और कई इस्लामिक दार्शनिकों के अनुसार, इस्लाम में विवाह एक धार्मिक कर्तव्य है.
मुस्लिम कानून विभिन्न संहिताबद्ध और असंहिताबद्ध स्रोतों जैसे- कुरान, इजमा, क़ियास, रीति-रिवाजों, मिसालों, समानता और विभिन्न विधानों से प्राप्त किया गया है. विचारों के 4 प्रमुख सुन्नी स्कूल हैं- हनीफा, हम्बली, मलिकी और शाफाई. भारत में इस्लामी कानून का हनीफा स्कूल प्रमुख है.
आपको बता दे कि मुस्लिम विवाह की अवधारणा हिंदू अवधारणा से भिन्न है जहां विवाह केवल नागरिक अनुबंध है, एक संस्कार नहीं है. Mohammedan कानून के अनुसार, दो तरह के विवाह का उल्लेख है- निकाह और मुता विवाह. आइए विस्तार में इन दोनों के विषय में जानते हैं.
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निकाह क्या है
मुसलिम कानून में, निकाह दो लोगों के बीच एक अनुबंध है. इस प्रक्रिया के दौरान दूल्हा और दुल्हन एक औपचारिक, बाध्यकारी अनुबंध पर हस्ताक्षर करते है व गवाहों के मौजूदगी में धार्मिक रूप से एक दूसरे के साथ विवाह कबुल करते हैं. यह औपचारिक, बाध्यकारी अनुबंध- मौखिक या कागज पर-एक धार्मिक रूप से मान्य इस्लामी विवाह का अभिन्न अंग माना जाता है, और यह दूल्हे और दुल्हन के अधिकारों और जिम्मेदारियों को रेखांकित करता है.
निकाह एक स्थायी विवाह है और इसमें दूल्हा और दुल्हन दोनों को अपनी मर्जी से शादी के लिए सहमति देनी होती है.
मुता विवाह क्या है
अरबी शब्दकोशों में मुता का अर्थ है 'आनंद के लिए' (For Pleasure or Enjoyment). आनंद का अभिप्राय किसी भी प्रकार के सुख से हो सकता है, जैसे- भावनात्मक, कामुक, आर्थिक, आदि. मुता विवाह को निकाह अल-मुताह के रूप में भी जाना जाता है. मुता विवाह एक मुस्लिम पुरुष के साथ निश्चित अवधि के लिए अस्थायी शादी है. यह एक निजी अनुबंध है (मौखिक या लिखित) जिसमें शादी करने के इरादे से शर्तों की स्वीकृति के बाद निकाह किया जाता है.
मुता विवाह एक नियत अवधि के लिए विवाह संबंध है और जो स्त्री इस प्रकार का अस्थाई विवाह संबंध स्वीकार करती है, उसे पुरुष द्वारा स्रीधन (मेहर के तौर पर) दिया जाता है. इसका कोई निर्धारित न्यूनतम या अधिकतम समय सीमा नहीं है. यह अवधि एक दिन, एक महीने या वर्ष के लिए हो सकता है. निर्धारित अवधि की समाप्ति के बाद विवाह स्वयं भंग हो जाता है, हालांकि यदि ऐसी कोई समय सीमा व्यक्त या लिखित नहीं हो, तो विवाह को स्थायी माना जाता है.
भारत में आंशिक रूप से लिव-इन संबंधों को सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकृति दी है; जबकि विवाह के इस रूप (मुता) को संवैधानिक रूप से अमान्य करना सर्वोच्च न्यायालय के लिए अभी भी काफी कठिन होगा. आधुनिक समय में, जहां दुनिया भर के नारीवादी इस व्यवस्था को वेश्यावृत्ति के बराबर देखते हैं, निकाह मुता के कई पैरोकार हैं जो मानते हैं कि एक अनुबंध होने के नाते, यह व्यवस्था लिव-इन रिलेशनशिप से बेहतर है.
मुस्लिम विवाह पंजीकरण अधिनियम 1981 की धारा 3 के अनुसार- मुसलमानों में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य है, क्योंकि मुस्लिम विवाह को एक नागरिक अनुबंध के रूप में माना जाता है. इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद मुसलमानों के बीच अनुबंधित प्रत्येक विवाह, निकाह समारोह के समापन से तीस दिनों के भीतर पंजीकृत किया जाता है.
निकाह तथा मुता विवाह में अंतर
इस्लाम में, निकाह तथा मुता विवाह दोनों ही एक वैवाहिक अनुबंध है. परन्तु ये एक दूसरे से कई कारणों से भिन्न पाए जाते है. जैसे-
निकाह एक स्थायी विवाह है जबकि मुता विवाह एक अस्थायी विवाह है.
मुता विवाह संबंध केवल शिया संप्रदाय के मुसलमानों द्वारा ही मान्य होता है वहीं निकाह शिया तथा सुन्नी दोनों संप्रदायों द्वारा मान्य विवाह संबंध है.
निकाह द्वारा स्थापित वैवाहिक संबंध मृत्यु या तलाक से ही समाप्त हो सकता है, जबकि मुता विवाह में अपनी निर्धारित अवधि समाप्त हो जाने के बाद स्वत: सहमति से पहले ही संबंध समाप्त हो जाता है.
निकाह के बाद पति पत्नी दोनों को ही एक-दूसरे की संपत्ति पर उत्तराधिकार प्राप्त हो जाता है, परन्तु मुता विवाह के अंतर्गत ऐसे अधिकारों के उदय का कोई जिक्र नहीं है.
निकाह के बाद चाहे पति पत्नी ने समागम द्वारा विवाह को पूर्णता प्रदान की हो या नहीं, पत्नी पूरे मेहर (Dower) की अधिकारिणी होती है, पर मुता विवाह के बाद यदि पति-पत्नी ने समागम से विवाह पूर्ण न किया हो तो पत्नी केवल आधे मेहर की अधिकारिणी मानी जाती है.
निकाह द्वारा स्थापित वैवाहिक संबंध से सभी अधिकारों और कर्तव्यों का उदय स्वत: ही हो जाता है, निकाहनामा में उन्हें लिखे जाने की आवश्यकता नहीं होती. लेकिन मुता विवाह में ऐसा नहीं होता है. मुता विवाह में केवल सामान्य अधिकारों और कर्तव्यों के अतिरिक्त सभी शर्तों को अनुबंध में उल्लेख किया जाना आवश्यक है.
निकाह में मेहर की धनराशि निश्चित करके प्रत्यक्ष रूप से घोषित करना अनिवार्य नहीं है, यानी मेहर अभिव्यक्त या अनुमानित हो सकता है. मुता विवाह में यह आवश्यक है कि मेहर को निश्चित धनराशि के रूप में अभिव्यक्त कर दिया जाए. फलत: यदि मेहर की धनराशि प्रत्यक्ष नहीं की जाती है तो यह विवाह अवैध हो जाता है अर्थात उपलक्षित मेहर(implied dower) मान्य नहीं होती.