Indian Contract Act के तहत 'जबरदस्ती' और 'अनुचित प्रभाव' में क्या है अंतर? इसमें कौन सा कृत्य है दंडनीय अपराध
नई दिल्ली: भारतीय संविदा अधिनियम 1872 (The Indian Contract Act, 1872) के तहत दो ऐसे शब्द है, जिनका काफी इस्तेमाल होता है लेकिन इनमें से एक का प्रयोग दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है । इस अधिनियम के अंतर्गत 'जबरदस्ती' (Coercion) और 'अनुचित प्रभाव' (Undue Influence) के बीच का क्या अंतर है और दोनों में से कौनसा कृत्य एक दंडनीय अपराध है, आइए जानते हैं.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारतीय संविदा कानून, 1872 की धारा 2(h) के तहत 'अनुबंध' शब्द को परिभाषित किया गया है। इस धारा के तहत 'अनुबंध' एक ऐसा समझौता है जो कानून द्वारा लागू करने योग्य हो।
इस अधिनियम की धारा 15 में 'जबरदस्ती' (Coercion) और धारा 16 में 'अनुचित प्रभाव' (Undue Influence) शब्दों का इस्तेमाल किया गया है; आइए समझतें हैं कि इनका मतलब क्या है और इनके बीच क्या अंतर है।
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क्या है 'जबरदस्ती'?
भारतीय संविदा कानून, 1872 के तहत 'जबरदस्ती' शब्द को परिभाषित किया गया है। आसान भाषा में, इस प्रावधान के तहत 'जबरदस्ती' यानी किसी को धमकी देकर, उनकी मर्जी के खिलाफ, गैर-कानूनी तरीके से उन्हें एक समझौते या अनुबंध में शामिल करना है। किसी को धमकाकर या फिर शारीरिक बल के जरिए उसे किसी एग्रीमेंट में शामिल करना 'जबरदस्ती' है।
उदाहरणार्थ - किसी ने आपको यह कहकर अनुबंध साइन करने के लिए मजबूर कर दिया कि वो आपको या आपके किसी परिजन को जान से मार देंगे, या फिर आपके साथ हाथापाई करेंगे।
'अनुचित प्रभाव' का क्या मतलब है?
जिस तरह 'जबरदस्ती' शब्द को इस अधिनियम की धारा 15 में एक्सप्लेन किया गया है, 'अनुचित प्रभाव' की परिभाषा भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 16 में दी गई है।
एक मसौदा साइन करने के लिए 'अनुचित प्रभाव' का इस्तेमाल तब किया जाता है जब कोई एक पार्टी ज्यादा शक्तिशाली हो या बाकी पार्टियों पर हावी हो। 'अनुचित प्रभाव' तब भी काम में आता है जब दो पार्टी एक दूसरे के साथ 'फिडूशिएरी रिलेशनशिप' (Fiduciary Relationship) में हों।
'फिडूशिएरी रिलेशनशिप' एक ऐसा रिश्ता है जिसमें एक शख्स सामने वाली पार्टी के हित में काम करने के लिए कार्यबद्ध है और वो पार्टी इस पर बहुत विश्वास करती है।
'जबरदस्ती' और 'अनुचित प्रभाव' में से कौन सा कृत्य है दंडनीय?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 'जबरदस्ती' और 'अनुचित प्रभाव' में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है, लेकिन इनमें से एक, दंडनीय अपराध है। 'जबरदस्ती' एक क्रिमिनल ऑफेंस है और भारतीय दंड संहिता के तहत इसके लिए आपको सजा भी हो सकती है। वहीं, 'अनुचित प्रभाव' दंडनीय अपराध की श्रेणी में नहीं आता है।
जहां 'जबरदस्ती' में शारीरिक बल (Force) और धमकी का इस्तेमाल करके किसी को मसौदे में आने के लिए मनाया जाता है, जो राजी नहीं है वहीं 'अनुचित प्रभाव' में मानसिक शक्ति का इस्तेमाल किया जाता है, प्रभाव के जरिए आप एक कॉन्ट्रैक्ट में आते हैं।