हमला और बैटरी में क्या अंतर है? किस तरह की सजा का प्रावधान है इन मामलों में
नई दिल्ली: असाल्ट (Assault) और बैटरी (Battery) अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं लेकिन वे अलग हैं. वे दोनों एक आपराधिक अपराध (criminal offence) और टॉर्ट कानून (Tort Law) के तहत एक सिविल अपराध हैं. हर बैटरी में असाल्ट शामिल होता है लेकिन हर असाल्ट में बैटरी शामिल नहीं होता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 350 में बैटरी को आपराधिक बल बताया गया है, जबकि धारा 351 में असाल्ट का उल्लेख किया गया है.
क्या है बैटरी?
बैटरी का सीधा सा मतलब है, जब कोई व्यक्ति आपकी सहमति के खिलाफ आपको नुकसान या परेशान करने के लिए बल का उपयोग करता है. इसका अर्थ है कि जब कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के शारीरिक संपर्क में आता है या उस व्यक्ति से संबंधित चीजों को दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से छूता है तो इसे बैटरी के रूप में जाना जाता है .
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इसमें मुख्य घटक शारीरिक संपर्क है, जब आरोपी किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने के इरादे से शारीरिक संपर्क में आया तो बैटरी का अपराध होगा. हर बैटरी में हमला शामिल होता है इसलिए इन दोनों को ज्यादातर एक साथ ही इस्तेमाल किया जाता है.
जब बैटरी का आपराधिक मुकदमा चलाया जाता है तो इसका मतलब है कि जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने/मारने के इरादे से शारीरिक संपर्क बनाता है, तो इसे बैटरी अपराध माना जाता है, इसमें अन्य व्यक्ति को मारने का इरादा ही महत्वपूर्ण होता है.
बैटरी कब दंडनीय होता है?
किसी व्यक्ति को बैटरी के अपराध के तहत दोषी ठहराए जाने के लिए दो चीजें आवश्यक हैं, जो बल का प्रयोग है और कानूनी अधिकार क्षेत्र के बिना है. बल का प्रयोग किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के लिए किया गया है, भले ही नुकसान छोटा हो या मामूली.
बैटरी का अपराध गठित करते समय बल का प्रयोग आवश्यक है. यह छड़ी, मुट्ठी या किसी अन्य वस्तु से किया जा सकता है जो किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुंचाएगा.
अभियुक्त द्वारा प्रयोग किया जाने वाला बल अवैध होना चाहिए. आरोपी को अपनी कार्रवाई को सही ठहराने के लिए कोई कानूनी औचित्य नहीं होना चाहिए. वही अभियुक्त का किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुँचाने या मारने का इरादा होना चाहिए.
डर पैदा करना ही असाल्ट है
एक अपराध गठित होने के लिए, शारीरिक चोट या नुकसान आवश्यक नहीं है, लेकिन केवल आपके के खिलाफ बल या हमला करने का डर ही अपराध गठित करने के लिए काफी है. इसका प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 351 में दिया गया है, जहां इसे असॉल्ट के रूप में परिभाषित किया गया है.
धारा 351 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति जो कुछ ऐसा इशारा करता है, या कोई कार्य करता है यह जानते हुए भी कि इस तरह के इशारे या कार्य या उसके हाव्-भाव से, उपस्थित से किसी भी व्यक्ति के अंदर डर पैदा होगा की उस परितिथि में उसके ऊपर आपराधिक बल का उपयोग किया जायेगा तो इसे असॉल्ट कहते है.
केवल किसी व्यक्ति को कुछ कहना, असॉल्ट की श्रेणी में नहीं आएगा, लेकिन जो कार्य उसके साथ में किया जाता है, जैसे तैयारी, इशारे, या उसका हावभाव, असॉल्ट की श्रेणी में आएंगे. एक असॉल्ट का गठन करने के लिए कुछ खतरनाक शारीरिक कार्य होना चाहिए जिसके द्वारा अपराधी जानबूझकर दूसरे व्यक्ति को यह यकीन करवाने का कारण बनता है कि उसके खिलाफ आपराधिक बल किया जाने वाला है.
बैटरी और असाल्ट में अंतर
बैटरी और असाल्ट दोनों ही अपराध हैं, वे समान नहीं हैं और अलग हैं. लोगों के लिए दोनों शब्दों का उपयोग सामान रूप से करना आम बात है जैसे कि वे सामान हों, जब की दोनों में महत्वपूर्ण अंतर है.
किसी व्यक्ति को केवल बैटरी के लिए हिरासत में लिया जा सकता है जब उसने किसी को वास्तविक शारीरिक नुकसान पहुँचाया हो, जबकि किसी व्यक्ति पर असाल्ट का आरोप लगाया जा सकता है जब केवल नुकसान का खतरा पैदा किया हो.
बैटरी में दूसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संपर्क होना आवश्यक है, जबकि असाल्ट में केवल नुकसान की धमकी ही काफी है इसलिए शारीरिक नुकसान या संपर्क की कोई आवश्यकता नहीं है.
बैटरी में किसी अन्य व्यक्ति को वास्तविक नुकसान हो रहा होगा, जबकि हमला तभी होता है जब कोई खतरा होता है जिससे नुकसान हो सकता है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 352 में असॉल्ट और बैटरी दोनों के लिए सजा का प्रावधान है। जो कोई भी IPC की धारा 351 के तहत असॉल्ट का अपराध करता है या IPC की धारा 350 के तहत बैटरी का अपराध करता है
उसे IPC की धारा 352 के तहत दंडित किया जाएगा, जिसमें उसे, 3 महीने तक की कारावास की सजा हो सकती है, या जुर्माना जो 500 रुपये तक बढ़ाया जा सकता है, या दोनों.