क्या है Scheduled Caste से सम्बंधित Article 341 को लागू करने हेतु जारी संवैधानिक आदेश?
नई दिल्ली: भारत एक लोकतान्त्रिक देश है जिसे विविधता का प्रतीक माना जाता है; जहां अलग-अलग धर्म, समुदाय और जातियों के लोग एक साथ रहते हैं। भारत के संविधान (The Constitution of India) में सभी तरह के धर्मों, समुदायों, लिंग, जातियों के लिए अधिकार निहित हैं जिनका पालन किया जाता है।
देश में अल्पसंख्यक समुदायों में अनुसूचित जाति (Scheduled Castes) की भी गिनती होती है जिनके लिए संविधान में एक खास प्रावधान है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341 और 342 (Article 341 and 342 of The Constitution of India) खास 'अनुसूचित जाति' और 'अनुसूचित जनजाति' (Scheduled Tribes) को लेकर है।
संविधान में अनुच्छेद 341?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 341 में यह स्पष्ट किया गया है कि देश के तमाम राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों में वो कौन हैं जिनकी गिनती 'अनुसूचित जाति' में की जाएगी।
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अनुच्छेद 341 का पहला पॉइंट यह कहता है कि देश के राष्ट्रपति, किसी भी राज्य या केंद्र-शासित प्रदेश में राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, एक सार्वजनिक अधिसूचना के जरिए स्पष्ट कर सकते हैं कि किसी भी जाति, मूलवंश या जनजाति के अंतर्गत कौन सी जातियां, मूलवंश या जनजातियां के भाग या वर्ग होंगे। इन्हें संविधान के प्रयोजनों के लिए यथास्थिति, उस राज्य या केंद्र-शासित प्रदेश में 'अनुसूचित जाति' समझा जाएगा।
इस अनुच्छेद का दूसरा पॉइंट यह कहता है कि किसी भी जाति, जनजाति या मूलवंश के अंतर्गत आने वाली जातियों, मूलवंशों और जनजातियों के वर्गों या भागों में से, जिनको 'अनुसूचित जाति' की सूची में शामिल किया गया है, संसद कानून के माध्यम से किसी को भी इसमें शामिल कर सकता है या हटा सकता है।
अनुच्छेद 341 को लागू करने हेतु जारी संवैधानिक आदेश
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 341 को अच्छी तरह लागू किया जा सके, इसके लिए एक संवैधानिक आदेश जारी किया गया था- 'संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950' (The Constitution (Scheduled Castes) Order, 1950)।
यह संवैधानिक आदेश, अनुच्छेद 341 के तहत, राष्ट्रपति द्वारा, तमाम राज्यों के राज्यपाल और राजप्रमुखों से परामर्श के बाद जारी किया गया था। इस आदेश का पैराग्राफ तीन यह कहता है कि कोई भी शख्स जो हिंदू (सिख या बुद्धिस्ट) धर्म को नहीं मानता है और किसी और धर्म का पालन करता है, उसे 'अनुसूचित जाति' का सदस्य नहीं बनाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में दायर इससे संबंधित याचिका
बता दें कि कुछ समय पहले, उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें यह मांग की गई है कि 'अनुसूचित जाति' का दर्जा को 'धर्म-निष्पक्ष' (Religion Neutral) होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में याचिकाकर्ता ने 'संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950' के पैराग्राफ तीन को असंवैधानिक मानने और रद्द करने की मांग की है, जिसका उल्लेख यहां किया गया है।
याचिकाकर्ता का यह कहना है कि देश में 'अनुसूचित जाति' का दर्जा धर्म के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए जिससे इस जाति के ईसाइयों (Christians) और मुसलमानों (Muslims) को भी इसका फायदा मिल सके। याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी स्पष्ट किया गया है कि अनुच्छेद 341 में कहीं भी 'धर्म' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है और ऐसे में उसको लागू करने के लिए जारी संवैधानिक आदेश में भी इसका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए।
याचिकाकर्ता का कहना है कि संवैधानिक आदेश का तीसरा पैराग्राफ संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 25 का उल्लंघन कर रहा है और इसलिए इसे तुरंत हटा देना चाहिए। फिलहाल इस मामले में कोई सुनवाई नहीं हुई है।