CrPC में Summon Trial की क्या है पूरी प्रक्रिया? आइए जानते हैं
नई दिल्ली: जब भी कोई अपराध घटित होता है तो पुलिस का कार्य यह होता है कि वो आरोपी व्यक्ति से पूछताछ करें और जिसके लिए पुलिस आरोपी से अपेक्षा करता है की वो बुलाए जाने पर पुलिस थाने या फिर किसी निश्चित स्थान पर आए और जब आरोपी आने से मना करता है या फिर वो नहीं आता तो फिर पुलिस उस आरोपी को बुलाने के लिए कानूनी कार्यवाही का सहारा लेती है, और फिर वो दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 251 के तहत उसे न्यायालय से एक लिखित आदेश की आवश्यकता होती है।
इस लिखित आदेश को ही समन के रुप में जाना जाता है, आइये जानते है समन के विषय में विस्तार से -
समन एक दस्तावेज है जो एक व्यक्ति को अदालत के सामने पेश होने और उसके खिलाफ की गई शिकायत का जवाब देने का आदेश देता है। मजिस्ट्रेट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 204(1)(A) के तहत आरोपी को समन जारी किया जाता है। समन मामले का मतलब एक ऐसे अपराध से संबंधित मामला है, जो वारंट मामला नहीं है।
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IPC की धारा 251- इस धारा का उद्देश्य केवल यह है कि आरोपी व्यक्ति को उस अपराध के विवरणों से अवगत कराना है, जो उसके खिलाफ आरोप लगाया गया है। यह केवल उससे पूछताछ करना है कि क्या वह दोषी है या उसके पास खुद के बचाव के लिए कोई दलील है।
दोषियों के द्वारा दोष की स्वीकृति पर दोषसिद्धि
धारा 252 और 253 दोषी के द्वारा दोष की स्वीकृति पर दोषसिद्धि प्रदान करती है। धारा 252 सामान्य रूप से दोषी के द्वारा दोष की स्वीकृति का नियम बताती है, और धारा 253 छोटे मामलों में दोषी के द्वारा दोष की स्वीकृति का प्रावधान करती है।
यदि आरोपी अपना दोष स्वीकार करता है, तो उत्तर कानून के अनुसार सकारात्मक होता है, अदालत आरोपी के सटीक शब्दों में उसकी स्वीकृति दर्ज करती है जिसके आधार पर आरोपी को न्यायालय के विवेक पर दोषी ठहराया जा सकता है, और यदि नकारात्मक जवाब आता है तो अदालत को धारा 254 के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।
यदि आरोपी अपना दोष स्वीकार करता है, और उसके खिलाफ लगाए गए आरोप कोई अपराध नहीं बनते हैं, तो केवल स्वीकृति के आधार पर ही आरोपी की दोषसिद्धि नहीं होगी।
चूंकि मजिस्ट्रेट के पास उसकी स्वीकृति पर उसे दोषी ठहराने या न ठहराने का विवेक है, तो अगर स्वीकृति पर आरोपी को दोषी ठहराया जाता है तो मजिस्ट्रेट धारा 360 के अनुसार आगे बढ़ेगे, अन्यथा आरोपी को सजा के सवाल पर सुनेंगे और उसे कानून के तहत सजा दी जाएगी। यदि दोषी की स्वीकृति को स्वीकार नहीं किया जाता है तो मजिस्ट्रेट धारा 254 के अनुसार कार्यवाही करेंगे। क्या है धारा 254 आइये जानते है.
अगर आरोपी को स्वीकृति पर दोषी नहीं ठहराया जाता है तो उसके लिए प्रक्रिया धारा 254 में अभियोजन (प्रॉसिक्यूशन) और बचाव, दोनों मामलों के बारे में प्रावधान है। मजिस्ट्रेट आरोपी की बात सुनेंगे और सारे सबूत लेंगे। विचारण में अभियोजन पक्ष को उन तथ्यों और परिस्थितियों को रखकर अपना मामला खोलने का मौका दिया जाएगा जो मामले का गठन करते हैं और उन सबूतों को प्रकट करते हैं जिन पर उसने भरोसा किया था की वह मामले को साबित करने के लिए आवश्यक होंगे।
अभियोजन पक्ष के आवेदन पर मजिस्ट्रेट किसी भी गवाह को उपस्थित होने और कोई दस्तावेज या चीज पेश करने के लिए समन जारी करते है। मजिस्ट्रेट धारा 274 के अनुसार साक्ष्य का ज्ञापन (मामले का सार) तैयार करेंगे। समन मामलों में अन्य विचारण की तरह ही मजिस्ट्रेट धारा 279 इसका मतलब आरोपी को साक्ष्य की व्याख्या और धारा 280 अर्थात गवाहों के आचरण की रिकॉर्डिंग का पालन करेंगे।
बचाव पक्ष की सुनवाई
धारा 254 के तहत अभियोजन के साक्ष्य और धारा 313 के तहत बचाव पक्ष की जांच के बाद, अदालत धारा 254 (1) के तहत बचाव पक्ष के विचारण के साथ आगे बढ़ेगी। बचाव पक्ष के विचारण में आरोपी से अभियोजन पक्ष के साक्ष्य के विरुद्ध साबित करने के लिए कहा जाएगा। किसी भी मामले में आरोपी सुनवाई में विफलता आपराधिक मुकदमे में मौलिक त्रुटि होगी और इसे धारा 465 के तहत ठीक नहीं किया जा सकता है।
आरोपी द्वारा पेश किए गए साक्ष्य उसी तरह दर्ज किए जाएंगे जैसे धारा 274, 279, 280 के तहत अभियोजन के मामले में दर्ज किए गए थे। बचाव पक्ष को साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद, उसे धारा 314 के तहत अपने तर्क प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाएगी।
Acquittal and Conviction Section 254 - इसके तहत साक्ष्य दर्ज करने के बाद मजिस्ट्रेट आरोपी को दोषी न पाए जाने पर बरी कर देंगे। यदि आरोपी दोषी है तो मजिस्ट्रेट धारा 360 या 325 के अनुसार कार्यवाही करेंगे अन्यथा उसे कानून के अनुसार सजा देंगे।
शिकायतकर्ता का उपस्थित न होना
धारा 256 के तहत आरोपी की उपस्थिति के लिए निर्धारित तिथि पर, शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति अदालत को आरोपी को बरी करने का अधिकार देगी जब तक कि अदालत के पास मामले को किसी और दिन के लिए स्थगित करने का कारण न हो। शिकायतकर्ता की मृत्यु के मामले में भी धारा 256(1) लागू होती है। यदि मृत शिकायतकर्ता का प्रतिनिधि (representative) 15 दिनों तक उपस्थित नहीं होता है, जहां प्रतिवादी पेश हुआ, तो प्रतिवादी को न्यायालय द्वारा बरी किया जा सकता है।
समन मामलों में कार्यवाही पर रोक
धारा 258 के तहत किसी भी स्तर पर प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व मंजूरी के साथ कार्यवाही को रोक सके। इसलिए यदि वह सबूत को रिकॉर्ड करने के बाद’ कार्यवाही को रोक देते है, तो यह बरी होने के फैसले की घोषणा होगी, और यदि वह मामले में सबूत को रिकॉर्ड करने से पहले’ रोक देते है, तो यह माना जाएगा की मामले को रोक दिया गया है।