Temporary Injunction क्या है? इसे CPC के किन प्रावधानों के तहत प्राप्त किया जा सकता है
नई दिल्ली: निषेधाज्ञा (Injunction) एक न्यायिक प्रक्रिया है जिसके तहत किसी पक्ष को कोई भी कार्य करने या करने से बचने की आवश्यकता होती है. यह किसी व्यक्ति को संबोधित न्यायालय के आदेश के रूप में उपचार है जो या तो उसे ऐसा करने से रोकता है या ऐसे कार्य को जारी रखने से रोकता है.
उदाहरण के लिए, एक निषेधाज्ञा (Injunction) का उपयोग हड़ताली श्रमिकों को अपना कार्य फिर से शुरू करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, जब हड़ताली ट्रेड यूनियन और श्रमिकों को नियुक्त करने वाली प्रतिष्ठानों के बीच सिविल वाद (Civil Suit) लंबित है.
क्या होती है अस्थायी निषेधाज्ञा
एक अस्थायी या अंतरिम निषेधाज्ञा एक पक्ष को अस्थायी रूप से निर्दिष्ट कार्य करने से रोकती है और केवल मुकदमे के निपटान तक या अदालत के अगले आदेश तक ही दी जा सकती है. इसे सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 39 (Order 39) के प्रावधानों के तहत विनियमित किया जाता है और इसे मुकदमे के किसी भी चरण पर दिया जा सकता है.
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कौन आवेदन कर सकता है और किसके खिलाफ निषेधाज्ञा जारी की जा सकती है
वादी और प्रतिवादी दोनों एक दूसरे के खिलाफ निषेधाज्ञा (Injunction) के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं.
वहीं, एक निषेधाज्ञा केवल मुक़दमे के एक पक्ष के खिलाफ जारी की जा सकती है और केवल कुछ ही असाधारण मामलों में इसे किसी अजनबी या तीसरे पक्ष के खिलाफ जारी किया जा सकता है.
किन आधारों पर अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश पारित किया जाता है
सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 39 नियम 1 में बताया गया है कि अदालत द्वारा अस्थायी निषेधाज्ञा निम्नलिखित आधारों पर दी जा सकती है:
· विवाद में संपत्ति के बर्बाद होने, क्षतिग्रस्त होने या किसी भी पक्ष द्वारा अलग-थलग होने या उस संपत्ति को डिक्री के निष्पादन (Execution of Decree) में गलत तरीके से बेचे जाने का खतरा है.
· जहां प्रतिवादी: लेनदारों को धोखा देने की दृष्टि से अपनी संपत्ति को हटाने या बेचने की धमकी देता है या उसका इरादा रखता है.
· जहां प्रतिवादी: विवाद में संपत्ति के संबंध में वादी को बेदखल करने या अन्यथा वादी को चोट पहुंचाने की धमकी देता है.
· प्रतिवादी शांति या अनुबंध या अन्यथा का उल्लंघन करने वाला है या लगातार उल्लंघन करता आ रहा है (आदेश 39 नियम 2).
· जहां अदालत की राय में इस तरह की निषेधाज्ञा का आदेश देना न्याय का हित के लिए आवश्यक है.
अस्थायी निषेधाज्ञा देने की शर्तें:
निषेधाज्ञा विवेकाधीन उपाय (Discretionary Remedy) है और इस प्रकार, अस्थायी निषेधाज्ञा देने से पहले, निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है:
· प्रथम दृष्टया (Prima Facie) मामला वादी के पक्ष में और प्रतिवादी के खिलाफ है.
· वादी को अपूरणीय क्षति (Irreparable Loss) होने की संभावना है, जिसकी भरपाई धन के रूप में नहीं की जा सकती है.
· सुविधा संतुलन (Balance of Convenience) वादी के पक्ष में और प्रतिवादी के विरुद्ध है.
· आवेदक द्वारा उठाया गया विवाद वास्तविक विवाद है और इस बात की संभावना है कि आवेदक उसके द्वारा दावा की गई राहत का हकदार होगा. इसी के साथ वादी ने बिना देर किए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
इस प्रकार, सबूत का भार (Burden of Proof) आवेदक पर है, जो राहत के लिए प्रार्थना कर रहा है. उपरोक्त शर्तों में से किसी एक का मात्र प्रमाण किसी व्यक्ति को अस्थायी निषेधाज्ञा के आदेश का अधिकार नहीं देता है.
अवज्ञा या निषेधाज्ञा के उल्लंघन के परिणाम
आदेश 39 नियम 2A के अनुसार यदि कोई व्यक्ति आदेश 39 के नियम 1 और नियम 2 के तहत पारित किए गए आदेश का अनुपालन नहीं करता है तो:
1. दोषियों की संपत्ति को जब्त किया जा सकता है.
2. सिविल जेल (Civil Prison) में बंद किया जा सकता है जिसकी अवधि 3 महीने से अधिक नहीं हो सकती है.
जब्ती की अधिकतम समय सीमा:
· यह 1 वर्ष से अधिक की नहीं हो सकती है.
· यदि अवज्ञा या उल्लंघन 1 साल से अधिक समय के लिए जारी रहती है, तो जब्त की गई संपत्ति को बेचा भी जा सकता है.
तो इस प्रकार, न्यायलय मुक़दमे के किसी पक्ष को अपूरणीय क्षति (Irreparable Loss) से बचाने के उद्देश्य से अस्थायी निषेधाज्ञा (Temporary Injunction) का आदेश पारित कर सकते हैं. इसे पारित करते समय न्यायलय को उपरोक्त शर्तों का पालन करना होगा. यदि कोई व्यक्ति जिसकी खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा (Temporary Injunction) का आदेश पारित किया गया है, उस आदेश की अवमानना करता है तो उसे सख्त करवाई का सामना करना पड़ सकता है.