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तलाक़ क्या है? मुस्लिम कानून में कितने प्रकार से वर्णित है, और यह किन परिस्थितियों में मान्य नहीं होता

मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के अनुसार, पति या पत्नी एक दूसरे को तलाक दे सकते है. इसका ज्यादातर इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब पति और पत्नी को लगता है कि वे एक साथ नहीं रह सकते है, तो वे अदालत में इस अधिनियम के तहत तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.

Written By My Lord Team | Published : March 16, 2023 8:05 AM IST

नई दिल्ली: मुस्लिम लॉ के अंतर्गत तलाक, विवाह को समाप्त करने की प्रक्रिया है जो की शादी के कानूनी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को रद्द करने या पुनर्गठित से सम्बंधित है. इस प्रक्रिया के तहत एक विवाहित जोड़े के बीच वैवाहिक सम्बन्ध समाप्त हो जाता है.

मुस्लिम कानून में तलाक का प्रावधान है लेकिन यह अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल करने के लिए निर्धारित है जब पति पत्नी वैवाहिक बंधन में खुश न हो और जब उनका एक साथ रहना असंभव हो गया है.

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आपको बता दे की मुस्लिम कानून में कई प्रकार के तलाक के बारे में बताया गया है जिन्हे लागू करने के लिए अलग- अलग प्रक्रिया है.

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मुस्लिम कानून विशेषज्ञ ने तलाक को चार श्रेणियों में बांटा है;

1.पति द्वारा तलाक

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2.पत्नी द्वारा तलाक

3.आपसी सहमति से तलाक

4.न्यायिक प्रक्रिया से तलाक

पति द्वारा दिया गया तलाक : मुस्लिम कानून के तहत पति को अपनी पत्नी को तलाक देने का अधिकार है और वह इसे चार तरीकों से कर सकता है:

पति द्वारा दिया गया तलाक

मुस्लिम कानून के तहत एक पति को अपनी पत्नी को तलाक देने का अधिकार है और वह इसे चार तरीकों से कर सकता है:

तलाक-ए-अहसन

तलाक़-ए-अहसन में तुहर (अर्थात जब महिला अपने मासिक धर्म से मुक्त होती है) की अवधि में अगर पति अपनी पत्नी को "तलाक़", शब्द कहता है, यह व्यक्त करते हुए, की वह अपनी पत्नी को तलाक़ देगा. इसमें पति तुहर के अवधि के साथ-साथ इद्दत की पूरी अवधि के दौरान अपनी पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाता है.

आपको यहां बता दे की इद्दत की अवधि तीन महीने की होती है, जिसमे मुस्लिम महिला अपने आप को समाज से अलग कर लेती है और इस अवधि में वह शादी नहीं कर सकती, इद्दत की अवधि तलाक से पहले या पति की मृत्यु के बाद होती है.

इद्दत की अवधि के दौरान तलाक को रद्द किया जा सकता है लेकिन इद्दत की अवधि के बाद इसे रद्द नहीं किया जा सकता. तलाक-ए-अहसन का लाभ यह है कि इसे इद्दत की अवधि पूरी होने से पहले किसी भी समय रद्द किया जा सकता है और इस प्रकार जल्दबाजी और विचारहीन तलाक को रोका जा सकता है.

तलाक़-ए-हसन

तलाक़-ए-हसन में, पति क्रमिक रूप से तुहर की अवधि के दौरान तीन बार अपनी पत्नी को "तलाक" कहता है अर्थात तलाक का उच्चारण करता है, इसलिए इसे “तलाक के बाद तलाक” भी कहा जाता है. यदि पत्नी मासिक धर्म की उम्र पार कर चुकी है, तो तलाक की घोषणा क्रमिक उच्चारणों में 30 दिनों के अंतराल तक, तीन बार दी जाएगी. जब तलाक तीसरी बार तीसरे तुहर में कहा जाता है, तो तलाक सम्पन्न और अपरिवर्तनीय हो जाता है.

तलाक-ए-हसन में जब पति तीसरी बार तलाक की घोषणा करता है तो विवाह अपरिवर्तनीय रूप से ख़त्म हो जाता है और पुनर्विवाह तब तक असंभव हो जाता है जब तक कि पत्नी कानूनी रूप से दूसरे पति से शादी नहीं कर लेती है और दूसरा पति कानूनी रूप से शादी के बाद उसे तलाक नहीं दे देता है.

यह उस बर्बर प्रथा को रोकने के लिए स्वीकृत किया गया है जहां पति अपनी पत्नियों को तलाक देते रहते हैं और फिर तलाक़ वापस लेकर अपनी पत्नी को वापस बुला लेते है.

पत्नी को छोड़ना

यह एक प्रकार का तलाक है जहां पति को "तलाक" शब्द का उपयोग नहीं करना पड़ता है, लेकिन जब वह अपनी पत्नी को चार महीने के लिए छोड़ देता है और शपथ लेता है कि उसका उससे कोई लेना-देना नहीं है, तो चार महीने बाद शादी अपने आप खत्म हो जाती है. हालांकि पति चार महीने ख़त्म होने से पहले अपनी पत्नी के साथ रहना जारी रखकर, इसे रद्द कर सकता है और शादी रद्द नहीं होगी.

पत्नी द्वारा तलाक़

मुस्लिम कानून के अनुसार, एक पत्नी अपने पति को केवल तभी तलाक दे सकती है जब उसे उसके पति द्वारा अतीत में तलाक देने के लिए अधिकृत किया गया हो. इस तरह के तलाक को "तौफीद" कहा जाता है. पति पूरी तरह या सशर्त, अस्थायी या स्थायी रूप से इसे अपनी पत्नी को अधिकृत कर सकता है.

आपसी सहमति से तलाक

ऐसा तब होता है जब पति-पत्नी दोनों आपसी सहमति से एक-दूसरे को तलाक देने के लिए राजी हो जाते हैं. मुस्लिम कानून के अनुसार यह दो तरह से किया जा सकता है, खुला और मुबारत.

1.खुला- ऐसा तब होता है जब पत्नी के कहने पर पति अलग होने के लिए राजी हो जाता है, इस शर्त पर कि पत्नी को अपने पति को कुछ राशि देनी होगी. ऐसे में लेनदेन की शर्तें पति-पत्नी के बीच होती है, जहां वह सामान्य निर्णय पे उतरते है.

2.मुबारत- यह पति और पत्नी के बीच अलग होने की आपसी सहमति है, यह पति या पत्नी में से किसी एक के कहने पर हो सकता है, लेकिन एक बार इसे स्वीकार कर लेने के बाद, शादी ख़त्म हो जाती और यह एक अपरिवर्तनीय तलाक के रूप में बन जाता है. जिसमे पति और पत्नी फिर शादी नहीं कर सकते है.

न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से तलाक

तलाक के बारे में ऊपर वर्णित सभी प्रक्रियाओं के अलावा, तलाक एक न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से दिया जा सकता है. भारतीय कानून ने मुस्लिम जोड़ों के लिए प्रावधान प्रदान किए हैं, जिसमे मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 के माध्यम से पति या पत्नी एक दुसरे को तलाक दे सकते है.

इसका ज्यादातर इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब पति और पत्नी को लगता है कि वे एक साथ नहीं रह सकते है, तो वे अदालत में इस अधिनियम के तहत तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.

भारतीय न्यायपालिका तलाक के संबंध में सक्रिय रही है क्योंकि शायरा बानो बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक-ए-बिद्दत पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे 'ट्रिपल तलाक' के रूप में भी जाना जाता है.