Split Verdict क्या होता है और ऐसी स्थिति में किस तरह होती है अदालत में कार्यवाही?
नई दिल्ली: भारत देश एक लोकतान्त्रिक देश है जो कि मूलतः तीन स्तंभों पर खड़ा हुआ है. इस लोकतान्त्रिक ढांचे में तीसरा स्तंभ न्यायपालिका (Judiciary) है जिसके तहत सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India), उच्च न्यायालय (High Court) और निचली अदालत (Lower Courts) आते हैं. इस व्यस्था के तहत ही देश के नागरिक न्याय पाने के लिए जाते हैं।
आमतौर पर न्यायाधीश मामले में फैसला सुना देते हैं लेकिन अगर दो या उससे ज्यादा न्यायाधीशों की पीठ फैसला सुना रही होती है, तो कभी-कभी उनमें आपस में ही फैसले को लेकर मतभेद हो जाता है।
न्यायाधीशों की पीठ में यदि दो जज एक ही मामले में अलग-अलग मत रखते हों और एकमत फैसला सुनाने में असक्षम हों, तो उनके वर्डिक्ट को 'स्प्लिट वर्डिक्ट' (Split Verdict) कहा जाता है। इसकी परिभाषा क्या है और ऐसी में मामले की अदालत में कार्यवाही आगे कैसे बढ़ती है, आइए सबकुछ विस्तार से समझते हैं.
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क्या होता है 'स्प्लिट वर्डिक्ट'?
किसी भी मामले पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाते समय यदि दो न्यायाधीशों का उस एक मामले में अलग मत है, वो एक दूसरे से सहमत न हों और उनका जजमेंट एकमत न हो, तो उस तरह के फैसले को 'स्प्लिट वर्डिक्ट' या 'खंडित फैसला' कहा जाता है।
आमतौर पर यह तब होता है जब एक पीठ में न्यायाधीशों की संख्या ईवन नंबर में होती है और इसलिए बड़े और अहम मामलों के लिए न्यायाधीशों की पीठ का जब गठन होता है, तो उसमें जजों की संख्या ऑड नंबर में रखी जाती है।
ऐसी स्थिति में कैसे होती है कार्यवाही?
यदि किसी मामले में 'खंडित फैसला' सुनाया जाता है तो मामला एक नई पीठ को सौंप दिया जाता है। यह पीठ पिछली पीठ से बड़ी होती है और कोशिश यही होती है कि इसमें जजों की संख्या ऑड नंबर में हो।
इस पीठ का गठन उस राज्य के मुख्य न्यायाधीश द्वारा किया जाता है जिस राज्य के उच्च न्यायालय में मामला सुना जा रहा होता है। मामले की सुनवाई अगर सर्वोच्च न्यायालय में हो रही होती है तो बड़ी पीठ का गठन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (Chief Justice of India) द्वारा किया जाता है और इसमें जजों की संख्या आमतौर पर तीन रखी जाती है।
मामला अगर बहुत बड़ा या अहम होता है तो इसे पांच या उससे ज्यादा न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के समक्ष रखा जाता है।
इन मामलों में पीठ ने सुनाया 'खंडित फैसला'
आइए कुछ ऐसे बड़े मामलों के बारे में जानते हैं, जिनमें अदालत ने 'खंडित फैसला' सुनाया है। कर्नाटक में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने वाला मामला (Karnataka Hijab Ban Case) जब कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) से सुप्रीम कोर्ट में गया, तो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश हेमंत गुप्ता (Justice Hemant Gupta) और न्यायाधीश सुधांशु धूलिया (Justice Sudhanshu Dhulia) की पीठ ने एक 'खंडित फैसला' सुनाया।
इसके बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश डीए वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud) से अनुरोध किया गया कि वो एक बड़ी पीठ का गठन करें; फिलहाल इस मामले में फाइनल जजमेंट नहीं आया है।
मुंबई के सीरियल ब्लास्ट्स में दोषी याकूब मेमन को मृत्युदंड (Yakub Memon Death Sentence) दिया गया था जिसपर रोक लगाने के लिए याचिका दायर की गई थी। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश ए आर दवे (Justice AR Dave) ने याकूब मेमन की याचिका को खारिज किया लेकिन न्यायाधीश क्यूरिएन जोसेफ (Justice Kurien Joseph) का यह कहना था कि इसपर सुनवाई होनी चाहिए।
ऐसे में तब के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू (Chief Justice of India HL Dattu) ने तीन न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया और इस पीठ ने याचिका को रद्द करते हुए याकूब मेमन के मृत्युदंड को बरकरार रखा।
हाल ही में, सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ (Teesta Setalvad), जिनपर 2002 में हुए गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में आरोप लगाए गए हैं, उनकी अंतरिम राहत को लेकर भी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अभय एस ओका (Justice Abhay S Oka) और न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा (Justice Prashant Kumar Mishra) ने 'खंडित फैसला' सुनाया था।
इसके बाद न्यायाधीश बी आर गवई (Justice BR Gavai), न्यायाधीश ए एस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) और न्यायाधीश दीपांकर दत्ता (Justice Dipankar Dutta) की नई पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाया और तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम राहत दी।
इसके अलावा, तमिल नाडु मंत्री वी सेंथिल बालाजी (V Senthil Balaji) की अंतरिम जमानत के लिए उनकी पत्नी ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी जिसपर हाईकोर्ट की न्यायाधीश निशा बानु (Justice Nisha Banu) और न्यायाधीश डी भरत चक्रवर्ती (Justice D Bharatha Chakravarthy) की पीठ ने 'स्प्लिट वर्डिक्ट' सुनाया।
अब मद्रास उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस एस वी गंगापुरवाला (Chief Justice SV Gangapurwala) से अनुरोध किया गया है कि वो एक नई पीठ का गठन करें जिससे इस मामले में फैसला लिया जा सके।