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विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34 क्या है? यह अदालत द्वारा पीड़ित पक्ष को कब प्रदान की जाती है

Specific Relief Act

कई बार अनुबंध का कोई पक्षकार नियमों का उल्लंघन करता है जिसके कारण दूसरी पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ता है.

Written By My Lord Team | Published : May 12, 2023 5:22 PM IST

नई दिल्ली: अनुबंध एक ऐसा कानूनी दस्तावेज होता है जिसमें कई तरह के नियमों और शर्तों को शामिल किया जाता है. कोई भी पक्ष उसका उल्लंघन नहीं कर सकता है. कई बार अनुबंध का कोई पक्षकार नियमों का उल्लंघन करता है जिसके कारण दूसरी पार्टी को नुकसान का सामना करना पड़ता है. ऐसे ही लोगों को विशिष्ट राहत अधिनियम (The Specific Relief Act) की धारा 34 मदद प्रदान कराती है. इस धारा के अंतर्गत क्या प्रावधान किया गया है चलिए जानते हैं.

जब भी अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) के किसी हिस्सेदार के द्वारा नियमों का उल्लंघन किया जाता है, तो दूसरा पक्ष निम्नलिखित दो उपाय कर सकता है-

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1.अनुबंध के उल्लंघन से अगर किसी पक्ष को आर्थिक नुकसान हुआ है तो वह मुआवजे की मांग कर सकता है

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2. अनुबंध के उल्लंघन के लिए जो भी पार्टी जिम्मेदार है उनके द्वारा विशिष्ट प्रदर्शन (स्पेसिफिक परफॉर्मेंस) किया जाता है

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कौन दे सकता है विशिष्ट राहत और कब

जिस पक्षकार को नुकसान होता है अगर वह अदालत में यह साबित कर दे कि आर्थिक मुआवजा नुकसान की भरपाई नहीं कर पाएगा यानि यह पर्याप्त मुआवजा नहीं होगा. उन्हे इसके बदले विशिष्ट राहत प्रदान की जाए. तो ऐसे में अदालत यह राहत देती है. यह राहत केवल अदालत द्वारा ही प्रदान की जाती है.

इस प्रकार, विशिष्ट प्रदर्शन अदालत द्वारा प्रभावित पक्ष को प्रदान किया गया एक विवेकाधीन (डिस्क्रिशनरी) उपाय है. स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट, 1963 द्वारा शासित विशिष्ट प्रदर्शन अदालतों द्वारा प्रतिवादी पर लगाया गया कर्तव्य है. जिसे उसने निभाने का वादा किया था और वह वादी (प्लेनटिफ) के साथ किए गए अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्रदर्शन करने के लिए बाध्य (बाउंड) है.

विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34

विशिष्ट राहत अधिनियम अधिनियम की धारा 34 में यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी संपत्ति का कानूनी हकदार है और कोई उसे अपने अधिकारों का इस्तेमाल करने से रोक रहा है तो वह उस व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दायर कर सकता है.

अदालत ऐसे मामलों में पीड़ित पक्ष को उसके अधिकार की घोषणा कर सकती है. इस तरह की घोषणा के बाद पक्ष कोई और राहत नहीं मांग सकता. एक्ट निषेधाज्ञा के रूप में निवारक राहत का भी प्रावधान करता है. इसका मतलब है कि अदालत प्रतिवादी की उस गतिविधि को तुरंत रोकने का निर्देश दे सकती है जिससे अनुबंध का उल्लंघन हो रहा है.

हालिया मामला

हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ इस तरह के एक मामले पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने यह पाया कि वादी द्वारा बिक्री विलेख को रद्द करने के मुकदमे में कब्जे की राहत की मांग करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जब वादी वाद संपत्ति में सह-हिस्सेदार है. जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34 के प्रावधान के तहत मुकदमा नहीं चलेगा.

मोहम्मद अली बनाम जगदीश कलिता में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताते हुए, अदालत ने कहा कि "सुप्रीम कोर्ट के पहले के आदेश के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि विभाजन के एक मुकदमे में, जब संपत्ति एक सह-हिस्सेदार की है, तो यह उस सह-हिस्सेदार द्वारा दूसरे सह-हिस्सेदार की ओर से धारित मानी जाएगी और ऐसी परिस्थितियों में, इस अदालत की सुविचारित राय में, वादी-सह-हिस्सेदार द्वारा विशेष रूप से कब्जे का दावा करने की भी आवश्यकता नहीं है, और इस प्रकार, मुकदमा विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 की धारा 34 के तहत वर्जित नहीं होगा.

याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि वाद संपत्ति प्रतिवादी में से एक के कब्जे में होने के बावजूद, प्रतिवादी/वादी ने अपने वाद में उस पर कब्जे की राहत नहीं मांगी. यह दावा किया गया था कि उसी के आधार पर, सूट विशिष्ट राहत अधिनियम की धारा 34 के प्रावधान से प्रभावित हुआ और वाद OVII R11 सीपीसी के तहत खारिज होने के लिए उत्तरदायी था.