RTE Act क्या है और संविधान के तहत क्या है इसकी अनिवार्यता
नई दिल्ली: Delhi High Court में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान जवाब पेश करते हुए Bar Council of India (BCI) ने अदालत को बताया कि वह बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम यानी Right To Education (RTE), 2009 को सभी लॉ कॉलेज और विश्वविद्यालय में छात्रों के लिए एक अनिवार्य विषय बनाने के लिए एक प्रतिवेदन पर विचार करेगा और जल्द ही निर्णय लेगा. क्या आप जानते हैं कि जिस अधिनियम की इतनी चर्चा हो रही है वह क्या है और इसके तहत संविधान में किस तरह के अधिकार के दिए गए हैं.
शिक्षा का अधिकार का अधिनियम
शिक्षा का अधिकार पहले एक संवैधानिक अधिकार था लेकिन अब एक मौलिक अधिकार है. प्रत्येक व्यक्ति को उनकी जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, जातीयता, या राजनीतिक झुकाव को परवाह किए बिना मुफ्त प्राथमिक शिक्षा को ग्रहण करने का अधिकार है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21(A) के अनुसार, यह हमारे देश में 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा की आवश्यकता बताता है. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009, या आरटीई अधिनियम 2009, भारतीय संसद द्वारा 4 अगस्त 2009 को पारित किया गया था.
86वें संशोधन के बाद संविधान में जुड़ा अनुच्छेद 21(A)
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भारतीय संविधान में 86वें संशोधन अधिनियम 2002 के तहत अनुच्छेद 21(A) को जोड़ा गया था. यह संविधान संशोधन प्रावधान करता है कि राज्य कानून बनाकर 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का बंदोबस्त करेगा. इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया. जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ था. इस कानून के तहत ऐसे बच्चों के पढ़ाई का खर्च केंद्र और राज्य सरकार दोनों को मिलकर उठानी होगी.
अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान
संविधान के अनुच्छेद 21(A) के तहत देश में 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य होगा. वहीं 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के अशिक्षित और जो विद्यालय में शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं वैसे बच्चों को चिन्हित करने की जिम्मेदारी स्थाई विद्यालय की प्रबंध समिति और स्थानीय निकायों की होगी. स्थानीय निकाय ही बच्चों के परिवारों का सर्वेक्षण करेगा. इस तरह के सर्वेक्षण नियमित रूप से आयोजित किए जाएंगे. इससे प्राथमिक शिक्षा से वंचित बच्चों की सूची बनाने में मदद मिलेगी.
प्राइवेट स्कूल के लिए सख्त प्रावधान
इस अधिनियम का उद्देश्य यही है कि देश का कोई भी बच्चा किसी भी सामाजिक या आर्थिक कारण से शिक्षा से वंचित ना रह जाए. इसलिए अगर कोई माता पिता गरीब हैं और वह अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं तो इसका खर्च राज्य सरकार को उठाना होगा. इतना ही नहीं हर प्राइवेट स्कूल को 25 प्रतिशत सीट ऐसे बच्चों के लिए रखना होगा जो आर्थिक रुप से कमजोर हैं. स्कूल प्रबंधन ऐसे बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करेगा.
शिक्षा के अधिकार के तहत कोई भी स्कूल किसी बच्चे को प्रवेश देने से मना नहीं कर सकता है, और ना ही किसी बच्चे को अगली क्लास में जाने से रोक सकता है या फिर बच्चे को स्कूल से निकाल सकता है.