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क्या होती है समीक्षा याचिका, जिसमें सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट खुद के आदेशों में कर सकते हैं संशोधन

कई बार फैसले लिखते समय लिपिकीय गलती या त्रुटि हो सकती है, ऐसी स्थिति में जब अदालत से खुद से निर्णय में कोई स्पष्ट गलती या त्रुटि हुई है, तब अदालत खुद भी समीक्षा कर सकती है

Written By My Lord Team | Published : February 2, 2023 4:54 AM IST

नई दिल्ली: हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के बाध्यकारी निर्णय की भी समीक्षा की जा सकती है, लेकिन ये समीक्षा केवल सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट द्वारा ही की जा सकती है. यदि कोई भी पक्ष सुप्रीम कोर्ट या किसी भी हाई कोर्ट के निर्णय से असंतुष्ट है और उसे ऐसा लगता है कि न्यायालय द्वारा उसके फैसले में त्रुटि हुई है, तो वह उस निर्णय के खिलाफ समीक्षा याचिका दायर कर सकता है.

समीक्षा’ शब्द से आम तौर पर मतलब पुन: परीक्षण या सत्यापन होता है. कानूनी तौर पर समीक्षा याचिका से तात्पर्य है कि अदालत के समक्ष तथ्यों की फिर से जांच करना और उनके द्वारा सुनाए गए निर्णय से संबंधित अभिलेखों के सत्यापन के संदर्भ में आवेदन दायर करना. यह कानूनी रूप से पीड़ित पक्ष के पास एक और मौका है कि वह अपने लिए न्याय की मांग कर सकें.

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फैसले की समीक्षा का आधार

सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XLVII, नियम 1(1) के अनुसार एक सिविल मामले में समीक्षा याचिका दायर की जा सकती है, जब उस मामले में नए और महत्वपूर्ण मामला सामने आया हो, या नए साक्ष्य मिले है जिसे समीक्षा याचिका करने वाले को पहले ज्ञात नहीं थे, जिसके चलते फैसले से पूर्व वह जानकारी अदालत के समक्ष पेश नहीं कर सका.

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कई बार फैसले लिखते समय लिपिकीय गलती या त्रुटि हो सकती है, ऐसी स्थिति में जब अदालत से खुद से निर्णय में कोई स्पष्ट गलती या त्रुटि हुई है, तब अदालत खुद भी समीक्षा कर सकती है और पीड़ित पक्ष द्वारा याचिका दायर करने पर भी उसे सुधार किया जा सकता है.

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इसके साथ ही कोई अन्य पर्याप्त कारण के चलते भी फैसले में पुनर्विचार की मांग की जा सकती है.

अपराधिक याचिका में

दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत एक आपराधिक समीक्षा याचिका (Criminal Review Petition) केवल तब दायर की जा सकती है जब न्यायालय के निर्णय में कोई स्पष्ट त्रुटि या गलती हुई हो अन्यथा किसी भी परिस्थिति में आपराधिक मामलों में समीक्षा याचिका दायर नहीं की जा सकती है.

पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ बनाम फैकल्टी एसोसिएशन (1998) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि इस आधार पर एक समीक्षा याचिका को स्वीकार किया जा सकता है कि कानून के गलत उपयोग पर पहले का आदेश दिया गया था.

लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013) के ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि समीक्षा याचिका का इस्तेमाल अपील के रूप में नहीं किया जा सकता है, और इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्याय की हार न हो और न्याय को विफलता की ओर ले जाने वाली त्रुटियों को दूर किया जाए.

समीक्षा याचिका का इस्तेमाल केवल तब किया जा सकता है जब न्यायालय के निर्णय में कोई स्पष्ट त्रुटि या गलती हो, इसके अलावा सभी मामलों में अपील दायर की जाने की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट का विशेष अधिकार

संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत, सुप्रीम कोर्ट खुद के किसी भी फैसले या आदेश की समीक्षा कर सकता है. हालांकि यह अधिकार, इसके सम्बन्ध में बनाए गए किसी भी कानून और अनुच्छेद 145 के अंतर्गत बनाए गए नियमों के प्रावधानों के अधीन होगा. सुप्रीम कोर्ट नियम, 1966 के तहत इस तरह की कोई भी याचिका को फैसले या आदेश की तारीख से 30 दिनों के भीतर दायर करना आवश्यक है.

एक समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद भी, सुप्रीम कोर्ट, किसी भी न्यायालय की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने और घोर अन्याय को ठीक करने के लिए एक उपचारात्मक याचिका (Curative Petition) पर विचार कर सकता है. उपचारात्मक याचिका एक ऐसी याचिका है, जिसमें समीक्षा याचिका के खारिज या इस्तेमाल किए जाने के बाद भी कोर्ट से खुद के फैसले की समीक्षा और संशोधन करने के लिए अनुरोध किया जा सकता है.