Indian Contract Act में क्या है Partnership और इसकी अनिवार्यता, जानिए कुछ अहम बातें
नई दिल्ली: भागीदारी किसी भी व्यावसायिक उद्यम के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. एक साझेदारी खुद को विभिन्न रूपों में प्रकट करती है, जिसमें व्यवसाय तकनीकी ज्ञान और विचारों को साझा करते हैं. भारत तीव्र गति से विकसित हो रहा है और भारत में व्यावसायिक गतिविधियों के संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिए, भागीदारी व्यवसायों में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिल रही है.
आपको बता दें कि व्यवसायों को नियमित करने के उद्देश्य से भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 (Indian Partnership Act) को 1 अक्टूबर 1932 को लागू किया गया था. इस अधिनियम ने भागीदारी (Partnership) से संबंधित पहले के कानून को रद्द कर दिया था, जो 1872 के भारतीय अनुबंध अधिनियम (Indian Contract Act, 1872) के अध्याय XI में निहित था.
भागीदारी (Partnership) का मतलब
भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 की के अनुसार कोई भी व्यापार जो किसी विशेष अनुबंध के अंतर्गत एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा संचालित किया जाता है, इस प्रकार का व्यापार "भागीदारी व्यापार" कहलाता है. इस तरह का व्यवसाय, उनमें से एक व्यक्ति द्वारा सभी की ओर से या सभी सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जा सकता है.
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एक भागीदारी (Partnership), अनुबंध (Contract) से ही उत्पन्न होती है, और इसलिए, ऐसा अनुबंध न केवल उस संबंध में भागीदारी अधिनियम के प्रावधानों द्वारा शासित होता है, बल्कि ऐसे मामलों में अनुबंध से संबंधित सामान्य कानून भी लागू होता है, जब भागीदारी अधिनियम विशेष रूप से कोई प्रावधान नहीं करता है.
भागीदारी व्यवसाय के आवश्यक तत्व
साझेदारी व्यवसायों में कई व्यक्ति शामिल हो सकते हैं, इसलिए इन व्यवसायों के समुचित कार्य के लिए नियमों का एक समूह होना अत्यंत आवश्यक है. पार्टनरशिप व्यवसाय के पांच (5) आवश्यक तत्व हैं, जिसके ना होने पर एक व्यवसाय को पार्टनरशिप व्यवसाय के रूप में नहीं पहचाना जा सकता है.
1. भागीदारी का अनुबंध (Partnership Contract)
व्यवसाय में व्यक्तियों के बीच एक उचित अनुबंध आवश्यक है. यदि किसी परिवार के कुछ सदस्य संयुक्त रूप से व्यवसाय चला रहे हैं, तो यह नहीं कहा जा सकता कि वे व्यवसाय में भागीदार हैं. व्यवसाय केवल वे व्यक्ति होते हैं जो व्यापार करने के उद्देश्य से एक अनुबंध में प्रवेश करते हैं और उस पर हस्ताक्षर करते हैं. संयुक्त हिंदू परिवार (HUF) के मामले में, सदस्य भागीदार नहीं हो सकते. यदि परिवार का कोई सदस्य किसी व्यवसाय में भागीदार बनना चाहता है, तो उसे अन्य सदस्यों के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर करना होगा.
2. भागीदारों की संख्या (Number of Partners)
एक भागीदारी व्यापार के लिए अनुबंध में कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है. वहीं, यदि कोई बैंकिंग क्षेत्र का व्यापार है, तो अधिकतम दस (10) भागीदार हो सकते हैं, जबकि किसी अन्य क्षेत्र के व्यवसाय में, यह संख्या 20 है. यदि भागीदारों की संख्या इन सीमाओं से अधिक है, तो भागीदारी व्यापार को अवैध घोषित किया जाएगा.
3. व्यापार (Business)
भागीदारी अधिनियम के अंतर्गत कोई भी करार किसी व्यापार को करने के उद्देश्य से किया जाता है. किसी व्यापार का उद्देश्य लाभ कमाना होता है. कोई भी काम लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जा रहा है तो वह व्यापार कहलाता है. अगर कोई व्यापार उपरोक्त भागीदारी के अंतर्गत किया जा रहा है तो भागीदारी व्यापार माना जाएगा.
भारतीय भागीदारी अधिनियम 1932 की धारा 2 (ख) के अंतर्गत “कारोबार” की परिभाषा दी गई है, जिसके अनुसार प्रत्येक व्यापार, पेशा कोई वृत्ति से है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि जहां एक से अधिक व्यक्ति मिलकर लाभ कमाने के उद्देश्य से कोई व्यापार या वाणिज्य पेशा (Commercial Profession) कर रहे हैं, तो इस प्रकार के कारोबार को भागीदारी कारोबार कहा जाता है.
4. लाभ में हिस्सेदारी (Sharing of Profits)
साझेदारी व्यवसाय द्वारा अर्जित लाभ को प्रत्येक सदस्य के बीच विभाजित किया जाना अनिवार्य है. भागीदारों के बीच शेयर अनुपात सदस्यों द्वारा स्वयं तय किया जा सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है कि केवल एक या दो सदस्यों को ही सारा मुनाफा मिले.
साझेदारी में हुए नुकसान के लिए कोई निर्धारित नियम नहीं हैं; इसे प्रत्येक सदस्य या कुछ सदस्यों द्वारा ही साझा किया जा सकता है. यह भागीदारों पर निर्भर करता है. सबसे अधिक देनदारी वाले साझेदारों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है. आम तौर पर, वे लाभ में हिस्सेदारी के समान ही हानि में हिस्सा लेते हैं.
5. पारस्परिक अभिकर्ता (Mutual Agency)
साझेदारी में किसी भी भागीदार द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय का सभी को पालन करने की आवश्यकता है. किसी भी भागीदार द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय के लिए भागीदारी के सभी सदस्य समान रूप से जिम्मेदार होंगे. एक भागीदार एक एजेंट के साथ-साथ व्यवसाय के प्रमुख के रूप में कार्य करता है. कोई भी एक भागीदार, सभी भागीदारों की ओर से व्यवसाय का प्रतिनिधित्व कर सकता है.
इस प्रकार भागीदारी (Partnership) बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में हम साझेदारी समझौते में प्रवेश करते हैं और भागीदारों को बड़े लक्ष्यों को संयुक्त और अधिक संख्या में लोगों की मदद से प्राप्त किया जाता है. सभी सदस्यों के संयुक्त प्रयासों से कार्यों की सफल सिद्धि होती है और उस कार्य या नौकरी को आसानी से वहन किया जा सकता है. कार्य विभाजन (Division of Work) से विभिन्न भागीदारों के बीच कार्य कुशलता में वृद्धि होती है.