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रासुका क्या होती है और कब लगाई जाती है? अभियुक्त की जमानत कैसे होती है?

हमारे देश में कुछ कानून ऐसे हैं जिसके तहत गिरफ्तारी हो जाने पर जमानत मिलना बहुत कठिन होता है यहां तक कि गिरफ्तारी के वक्त उसकी वजह भी नहीं बताई जाती है.

Written By My Lord Team | Published : April 12, 2023 9:30 AM IST

नई दिल्ली: अलगाववादी अमृतपाल सिंह के करीबी सहयोगी पपलप्रीत सिंह को सोमवार को अमृतसर जिले से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत गिरफ्तार किया गया है. अमृतपाल के गुरु’ माने जाने वाले पपलप्रीत सिंह को मंगलवार को असम की डिब्रूगढ़ जेल भेज दिया गया, न्यूज एजेंसी भाषा के अनुसार.

लेकिन क्या आप जानते हैं कि रासुका कानून क्या है और यह कब लगाई जाती है और इसके तहत किसी को जमानत कैसे मिलती है.

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रासुका को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Act -NSA) कहते हैं और इस कानून के तहत ऐसे व्यक्ति को एहतियातन महीनों तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है जिससे प्रशासन को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा महसूस हो. इस कानून के तहत केंद्र और राज्य सरकार किसी भी संदिग्ध नागरिक को हिरासत में ले सकतें है.

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रासुका या NSA कानून 23 सितंबर 1980 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लागू किया गया था. इस कानून के तहत किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है.

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रासुका कब लगाई जाती है

  • जब सरकार को लगता है कि किसी व्यक्ति से देश की सुरक्षा पर बात आ सकती है तो ऐसे में व्यक्ति को रासुका के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है.
  • अगर कोई व्यक्ति कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में बाधा या अड़चन डालेगा तो उस पर सरकार रासुका लगा सकती है और उसे हिरासत में लेने का आदेश दे सकती है.

रासुका के तहत कारावास

NSA में यह प्रावधान है कि सरकार, किसी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रख सकती है. सरकार अगर नए सबूत पेश करती है तो इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है. अगर कोई अधिकारी किसी संदिग्ध को गिरफ्तार करता है तो उसके द्वारा राज्य सरकार को गिरफ़्तारी का कारण बताना अनिवार्य होता है.

जब तक राज्य सरकार इस अधिनियम के तहत हुए गिरफ्तारी का अनुमोदन (Approval) नहीं करती है तब तक गिरफ़्तारी की अधिकतम अवधि बारह दिन से ज्यादा नहीं हो सकती है. ध्यान रहे कि गिरफ़्तारी का आदेश, जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस आयुक्त अपने संबंधित क्षेत्राधिकार के तहत जारी कर सकते हैं.

रासुका सलाहकार बोर्ड

रासुका के तहत किसी की गिरफ्तारी और उसके जमानत की प्रक्रिया में रासुका सलाहकार बोर्ड एक अहम कड़ी है. रासुका अधिनियम 1980 की धारा 9 के तहत सलाहकार बोर्ड का गठन करने का प्रावधान किया गया है.

इसमें यह बताया गया है कि केंद्र और प्रत्येक राज्य सरकार जब आवश्यक समझे एक या अधिक सलाहकार बोर्ड का गठन कर सकती है. इस तरह के प्रत्येक बोर्ड का गठन तीन लोगों से मिल कर किया होता है. इस बोर्ड के सदस्य वही हो सकते हैं जो हाई कोर्ट के न्यायाधीश के नियुक्ति के योग्य हों या रह चुके हों और ऐसे व्यक्ति समुचित सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएंगे. चुने गए बोर्ड के मेंमबर्स में से ही किसी एक को अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है.

रासुका के अन्य प्रावधान

  • यह अधिनियम, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को किसी व्यक्ति को देश की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने, दूसरे देशों के साथ भारत के संबंधों को खराब करने, सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव या आपूर्ति को बाधित करने, ड्यूटी पर तैनात किसी पुलिसकर्मी पर हमला करने के जुर्म में गिरफ्तार करने की ताकत देता है.
  • रासुका के तहत, संबंधित अधिकारी के पास यह शक्ति होती है कि वह संदिग्ध व्यक्ति को बिना कारण बताये 5 दिनों तक कैद में रख सकता है जबकि विशेष परिस्थितियों में यह अवधि 10 दिन तक हो सकती है. इसके बाद उसे राज्य सरकार की अनुमति जरूरी है.
  • NSA के तहत, गिरफ्तार व्यक्ति सरकार द्वारा गठित सिर्फ हाई कोर्ट के सलाहकार बोर्ड के समक्ष अपील कर सकता है, लेकिन उसे मुक़दमे के दौरान वकील की सहायता प्राप्त करने का हक़ नहीं है.

जमानत कैसे मिलती है ?

रासुका में सामान्य तौर पर जमानत नहीं मिलती क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला होता हैं. इस तरह के मामलों में किसी बंदी के रिहाई में रासुका बोर्ड का अहम किरदार होता है. रासुका सलाहकार बोर्ड इन मामलों में विचार करने के बाद और बंदी की बात सुनने के बाद संबंधित व्यक्ति की हिरासत की तारीख से सात सप्ताह के भीतर सरकार को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है.

बोर्ड अपनी रिपोर्ट में यह बताता है कि उस व्यक्ति को हिरासत में रखने के लिए दिए गए कारण पर्याप्त है या नहीं. ऐसे मामलों में सलाहकार बोर्ड अगर बताता है कि संबंधित व्यक्ति को हिरासत में लेने के लिए पर्याप्त कारण हैं, सरकार हिरासत आदेश की पुष्टि कर सकती है और उस अवधि के लिए हिरासत जारी रख सकती है.

अगर बोर्ड ने रिपोर्ट में ये कह दिया कि हिरासत का कोई पर्याप्त कारण नहीं है, तो सरकार हिरासत के आदेश को रद्द कर सकती है और बंदी को तुरंत रिहा कर दिया जाएगा. एक हिरासत में लिए गए व्यक्ति को तीन महीने से अधिक की अवधि के लिए सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना जेल में रखा सकता है, लेकिन यह छह महीने से अधिक नहीं हो सकता है.