Advertisement

भारतीय संविधान में National Emergency क्या हैं? क्या इसके दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?

राष्ट्रपति युद्ध या सशस्त्र विद्रोह या बाहरी आक्रमण की वास्तविक घटना के होने से पहले ही, देश के नागरिकों की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है.

Written By My Lord Team | Published : March 20, 2023 11:56 AM IST

नई दिल्ली: भारत में आपातकाल की स्थिति एक संवैधानिक व्यवस्था के तहत शासन की अवधि को संदर्भित करती है. जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा घोषित किया जा सकता है, जब वे आंतरिक और बाहरी स्रोतों से या संकट की वित्तीय स्थितियों से राष्ट्र के लिए गंभीर खतरों को देखते हैं. यह एक असाधारण स्थिति है जहां कानूनों को निलंबित किया जा सकता है और राष्ट्रपति को शासन करने का अधिकार प्राप्त होता है. जबकि राज्यों में, शासन का नियंत्रण राज्यपाल के पास होता है और वह राष्ट्रपति की ओर से कार्य करता है.

संविधान के अंतर्गत आपातकाल तीन प्रकार से वर्णित है जो की अनुच्छेद 352, 356 और 360 के तहत उल्लेखित है - राष्ट्रीय आपातकाल, राज्य आपातकाल और वित्तीय आपातकाल. यहां हम अनुच्छेद 352 पर चर्चा करेंगे जो राष्ट्रीय आपातकाल है.

Advertisement

आजादी के बाद से इस तरह की असाधारण स्थिति के तहत अनुच्छेद 352 का प्रयोग तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने के लिए किया गया है- पहली बार 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान, दूसरी बार 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान और तीसरी बार 1975 में "आंतरिक गड़बड़ी" के कारण.

Also Read

More News

1975 के बाद, आपातकाल की शक्तियों को कम करने के लिए भारतीय संविधान के 44वें संशोधन के माध्यम से राष्ट्रीय आपातकाल के प्रावधान में संशोधन किया गया.

Advertisement

आपातकाल कब और किस परिस्थिति में लागू होता है

राष्ट्रपति द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा की जा सकती है जब उन्हें लगता है कि एक गंभीर आपातकाल मौजूद है जो भारत की सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. जिन दो कारणों से आपातकाल की घोषणा की जा सकती है वे बाहरी खतरे हैं, जिसका अर्थ है देश को बाहर से खतरा, जैसे युद्ध या कोई बड़ा आतंकवादी हमला.

दूसरा कारण देश के अंदर सशस्त्र विद्रोह होना जिसमे गृहयुद्ध की स्थिति हो सकती है. 44 वें संशोधन से पहले अनुच्छेद 352 में आपातकाल के आधार के रूप में "आंतरिक गड़बड़ी" थी, लेकिन क्योंकि इसे अस्पष्ट माना गया था, इसे 1978 में "सशस्त्र विद्रोह" में बदल दिया गया.

राष्ट्रपति युद्ध या सशस्त्र विद्रोह या बाहरी आक्रमण की वास्तविक घटना के होने से पहले ही, देश के नागरिकों की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकता है.

राष्ट्रीय आपातकाल घोषित करने की प्रक्रिया क्या है?

राष्ट्रपति के पास आपातकाल घोषित करने का अधिकार है और यह घोषणा करना तभी आवश्यक होती है जब उनके पास प्रधान मंत्री और उनके मंत्रिमंडल द्वारा आपातकाल घोषित करने का लिखित अनुरोध किया गया हो.

पहले केवल प्रधान मंत्री ही राष्ट्रपति को आपातकाल घोषित करने के लिए कह सकते थे लेकिन 44वें संशोधन के बाद से इसे बदल दिया गया है और कैबिनेट मंत्रियों को भी शामिल किया गया है. राष्ट्रपति कैबिनेट के अनुरोध को अस्वीकार कर सकते हैं लेकिन अगर कैबिनेट इसे फिर से राष्ट्रपति के पास भेजती है तो वह आपातकाल की घोषणा करने के लिए बाध्य है.

जारी आपातकाल की प्रत्येक उद्घोषणा को संसद के प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित किया जाना चाहिए (जिसका अर्थ है कि सदन के 2/3 सदस्यों को इसके पक्ष में मतदान करना चाहिए).

प्रस्ताव पारित होने के बाद, आपातकाल एक महीने की अवधि के लिए प्रभावी रहेगा जब तक कि दोनों सदनों में आपातकाल को छह महीने तक बढ़ाने के लिए एक और उद्घोषणा पारित नहीं की जाती है, लेकिन यदि दोनों सदनों में ऐसी कोई उद्घोषणा नहीं लाई जाती है या इसे बहुमत नहीं प्राप्त होता तब एक महीना बीत जाने के बाद आपातकाल स्वतः समाप्त हो जाएगा.

क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?

आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों का निलंबन 1974 के आपातकाल से ही चर्चा का विषय रहा है. अनुच्छेद 358 और 359 मौलिक अधिकारों पर आपातकाल के प्रभाव के मुद्दे से संबंधित हैं. जैसा कि अनुच्छेद 358 में कहा गया है, अनुच्छेद 19 (जो कि मुक्त भाषण है) स्वचालित रूप से निलंबित हो जाएगा क्योंकि राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा की जाती है.

हालांकि अनुच्छेद 359 में उल्लेख है कि अन्य मौलिक अधिकारों को आपातकाल के दौरान निलंबित किया जा सकता है जैसा कि राष्ट्रपति के आदेश में उल्लेख किया गया है, हालांकि अनुच्छेद 20 और 21 जो कि अपराधों के लिए सजा के संबंध में संरक्षण है और जीवन के अधिकार को आपातकाल के दौरान भी निलंबित नहीं किया जा सकता है.

आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित इसलिए किया जा सकता है, क्योंकि मौलिक अधिकार पूर्ण नहीं हैं और उचित प्रतिबंध के अधीन हैं. जबकि मौलिक अधिकारों के निलंबन का मतलब है कि आपातकाल के दौरान इन अधिकारों का प्रयोग या लागू नहीं किया जा सकता है और अगर इन अधिकारों का उल्लंघन होता है तो लोग इसे लागू करवाने के लिए अदालत में नहीं जा सकते हैं.